२. बात का बतंगड़ बनाना...मेरी पुरानी आदत !
मैं अब पड़ोसी के नौकर के साथ सट कर खड़ी थी! नौकर को कोई तकलीफ नहीं थी...क्यों की मैं छोटी बच्ची थी! मुझे लगा की नौकर की पैंट की जेब ....मेरी तरफवाली... कुछ फूली हुई है! मैंने हाथ लगाया तो कुछ सॉलिड सी भी लगी... अब मैं नौकर की दूसरी तरफवाली जेब की तरफ, उसीकी टांगों में से होती हुई चली गई...
...यहाँ की जेब का तो उससे भी बुरा हाल था! ...जेब में इतना कुछ था की जेब, अब फटी और तब फटी! ...और मैंने जेब से साथ पंगा लेना शुरू कर दिया... जरासा जोर लगाया और जेब ने मुंह खोलना शुरू कर दिया...मुजे अब मज़ा आ रहा था!... नौकर सांप का वर्णन करने में मस्त था!
" अजी सांप बिल्कुल बालों के रंग सा ...काला था!...लंबा भी कोई 7 फ़ुट से ज्यादा ही था... अलमारी के उपरसे, मेरे ऊपर कूद पड़ा साहब!... मेरी तो धिग्दी बंद हो गई... आंखे बंद हो गई... मुझे लगा की मैं अब मरा...तब मरा!... जब मैं होश में आया तो पता चला साहब की मैं जिन्दा हूँ!... अब मैं जा रहा हूँ... मुझे नहीं करनी इस घर में नौकरी !..मुझे अपनी बाकी तनख्वाह भी नहीं चाहिए मैं जा रहा हूँ... " कहते हुए नौकर ने अपनी अटैची उठाई!
... इधर मेरे हाथ अपना काम कर रहे थे ...नौकर की पैंट की जेब तक अब मेरा हाथ पहुंच चुका था!...कि मेरे हाथ में घड़ी लग गई!...जो मैंने बाहर निकाल ली!....फ़िर एक सोने की चेन और अंगुठी मेरे हाथ लगा गई!...अब नौकर चलने की तयारी में कदम उठा ही रहा था कि मैं घूम कर उसकी पहले वाली जेब के पास पहुच गई और उसकी जेब कस कर पकड़ते हुए लटक सी गई... अब नौकर को मेरी हरकत का पता चल गया और उसने मुजे धक्का मारते हुए निचे गिरा दिया...और तेज तेज कदमों से भीड़ मेंसे रास्ता निकालता हुआ चल पड़ा!
...हमारे पड़ोसी और इकट्ठा भीड़, अब सांप पकड़ने वाले मदारी को बुलाने के बारे में बहस कर रही थी! ...इच्छाधारी सांप के बारेमें भी एक सज्जन कहानी सुना रहे थे...अब पड़ोसी का नौकर भीड़ मेसे बाहर निकल चुका था और अब गया...तब गया होने वाला था!
...कि मैं अब उठ कर खड़ी...चिल्लाने लगी..." चोर, चोर ..पकडो... पकडो!"
...मेरी तीखी आवाज लोगों के कानो से टकराने में देर नहीं लगी...लेकिन भीड़ मेंसे कोई बोला... " बेवकूफों! पहले सांप को पकड़ने के लिए मदारी को बुलाओ ... बाद में चोर पकड़ने के लिए पुलिस को बुलाओगे तो क्या फर्क पड़ेगा?...और फ़िर चोर तो इस बच्ची ने शायद ही देखा है... किसी कहानी के चोर की बात कर रही होगी! कोई बड़ी बात तो है ही नहीं! नौकर ने तो सांप का पुरा ब्योरा दिया है! "
..."सांप तो नौकर के सिवा किसीने भी नहीं देखा ...लेकिन चोर को तो देखो!...वो जा रहा है! ..... यह उसकी जेब से मैंने घड़ी और अंगुठी निकाल ली है! ...कहते हुए मैंने वो दोनों चीजे लोगों को दिखाई और जाते हुए नौकर की तरफ़ उंगली उठाई !
... अब सांप का और नौकर का ...पर्दाफाश हो चुका था!... नौकर पकड़ा गया उसकी जेब और अटैची से और भी कीमती चिज- वस्तुएं बरामद हुई और अब मदारी की जगह पुलिस को बुलाया गया!... मेरी तब बहुत वाहवाही हुई थी!... कहिए!... बात का बतंगड़ बनाना कई बार फायदेमंद भी साबित होता है कि नहीं?