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Thursday, 13 December 2007

स्कूल-बैग कहाँ मिलेंगे ? सस्ते और टिकाऊ...


हमारे से गलती हो गई। हमारी अमरिका वाली फ्रैंड ने हमारे लिए ....पर्स भेजा था। अजी भेजा क्या था....हमने ही बदोबदी मंगवाया था. झूठ बोल दिया था कि, हम शादी करने वाले है और हमें एक इम्पोर्टेड पर्स चाहिए। हम ने यह भी बोल दिया था कि लड़के को दहेज़ देने के बाद हमारे पास पर्स खरीदने के पैसे तो बचेंगे नही...तो वहां से अगर पर्स मिल जाता है , तो हमारी यह प्रोब्लम तो सोल्व हो ही जायेगी।


...जैसे-तैसे पर्स हमारे पास पहुंच ही गया। पर्स अच्छा तो था... पर पुराना लग रह था। कोई बात नही; हमने कौन सा ख़रीदा था!


...लेकिन भगवान, खुदा और जिजस को हमारी शादी मंजूर होती तो बात ही क्या थी जी? नही हुई हमारी शादी और हम इम्पोर्टेड पर्स ले कर के घुमते रह गए।

..हमारी अमरिका वाली सहेली को यकायक हमारी याद आई। फोन आ गया.....

" तेरी शादी हो गई मोटी? "वह हमे बचपन से ही मोटी कहकर बुलाती है ।

" नही हुई भैंगी!"हम उसे भैंगी कहते आये है। हम ने भी जोरदार अंसर दे डाला।

" हमेशा की तरह इस बार भी झूठ?.... लेकिन कोई बात नही मोटी! हिम्मत मत हारना .... कोई तो मोटू होगा ही अबतक कुंवारा, मिल जाएगा!" भैंगी के दिलासे से हम थोडा खुश हुए।

" बोल अब भैंगी...फोन क्यों किया? मतलब की बात बोल....मेरे पास टाइम नही है। एक लड़का देखने जाना है।" हम घडी देखते हुए बोले।


" तू जा ही रही है तो जल्दी निकल जा। पहले बाजार से मेरे बेटे के लिए एक स्कूल-बैग खरीद लेना समझी ? मैंने जो पर्स भेजा है.... उसी कलर का होगा तो भी चलेगा! जल्दी भिजवा भी देना और सुन..." हमने फोन बंद कर दिया था। एक पर्स के बदले एक स्कूल-बैग मंगवा रही थी....कंजूस , मक्खीचूस कहीं की !


अब हम बाजार में स्कूल-बैग ढूंढ रहे है...... सस्ता और टिकाऊ कहीं से मिल जाये। लड़का तो बाद में भी देखा जा सकता है !