...हाय रे...स्कूल की छुट्टियाँ!(हास्य-व्यंग्य!)
बचपन में जब हम स्कूल में पढ़ा करते थे... तब भी छुट्टियां हमें अच्छी नहीं लगती थी! आज भी अच्छी नहीं लगती!... एक बार पिताजी का तबादला एक छोटेसे गाँव में हुआ था!... पिताजी तो खैर! डॉक्टर थे!... अस्पताल में उनका आना-जाना लगा रहता था;.... लेकिन हम क्या करे?.... हमें तो पढने के लिए स्कूल जाना पड़ता था!...
स्कूल मजेदार था!...उसमें में उतनी ही सुविधाएँ थी; जितनी की छोटेसे गाँव के एक अदद स्कूल में होती है!... धूप की जब बहुतायत होती थी... हमारी क्लास एक घने बरगद के पेड़ के नीचे बैठाई जाती थी... जब ठंड का डंडा लहराता था तब टेंट में सिकुड़कर बैठने की भी सुविधा थी... लेकिन बारिश के मौसम में अक्सर हमें घर जाने के लिए धमकाया जाता था!
....धमकाया इसलिए जाता था, ...क्यों कि हम घर जाने के लिए राजी होते ही नहीं थे!... मास्टरजी से विनती करते थे कि हम पर इतना बड़ा जुल्म ना ढहाया जाये और हमें घर ना भेजा जाये!...हमें स्कूल में ही रहने दीजिए...छुट्टी हमें पसंद नहीं है!... तब स्कूल में पढाने के लिए मास्टरजी ही हुआ करते थे... मैडम का फैशन तो तब मार्किट में नहीं था! .... एक बात हम बताना भूल ही गए कि हमारी क्लास में हमारे समेत तीन लड़कियां और पच्चीस लडके ....जिन्हें विद्यार्थी कहतें है....हुआ करते थे! ..हाँ!..छुट्टी तो किसी को भी पसंद नहीं थी!
...तो हम और हमारे जैसे बहुसंख्य विद्यार्थी घर जाने के लिए राजी नहीं होते थे!... हम तो घर बैठकर होने वाली बोरियत से घबरा जाते थे; जब कि हमारे क्लास-मेट ' घर पर काम करना पडेगा...' की सोच से घबरा कर स्कूल में ही समय गुजारना पसंद करते थे!... कोई गलती से यह न समझ बैठे की हम बहुत ज्यादा पढाकू थे! बारिश के मौसम में, मास्टरजी को घर जाकर मास्टरनी( पत्नी) के हाथ के बने चटपटे पकौडे जो खाने होते थे!... मास्टरजी तो बादल देखकर ही छुट्टी डिक्लेर कर देते थे और सबसे पहले मास्टरजी ही स्कूल से बाहर निकलते थे!...उन्हें छुट्टियों से बड़ा ही लगाव था!
स्कूल में एक और भी मास्टरजी थे...जो हेड-मास्टर कहलातें थे!... वे छुट्टी पर ही रहते थे!...उनके दर्शन स्कूल में 26 जनवरी और 15 अगस्त वाले दिन ही होते थे... अन्यथा वे सरपंच होने के नाते, गांववालों में आपसी झगडे करवाने और फ़िर उन्हें निपटाने में लिप्त रहतें थे!... स्कूल में होने वाली धान्दली से उन्हें कोई लेना देना नहीं था!
...तो गाँव के स्कूल के वे सुनहरे दिन याद करके हम आज भी तरोताजा हो लेते है!... शहरों के अंग्रेजी पढाने वाले ,पब्लिक स्कूल वाले विद्यार्थियों की बुरी हालत आज हम देख ही रहे है!... बेचारे छुट्टी के दिन भी 'ट्यूशन' नाम की राक्षसनी के हाथ से बच नहीं सकतें!
.... वैसे छुट्टियों की कमी तो सरकार ने भी कभी होने नहीं दी!... जितनी छुट्टियाँ स्कूलों के लिए बहाल की जाती है, उतनी किसी और डिपार्टमेंट के लिए उपलब्ध होने का रेकोर्ड हमारे पास नहीं है!... अभी दिवाली गई, ये देखो ईद गई...ये दशहरा आया...ये राम जन्म..ये कृष्ण जन्म...ये माता की नवरात्री.. अब क्रिसमस और फ़िर नया साल!...बीच से शनिवार और रविवार भी तो है... अपरंपार छुट्टियाँ !... किसी को भली लगे या बुरी!...हाय रे छुट्टियाँ!
बचपन में जब हम स्कूल में पढ़ा करते थे... तब भी छुट्टियां हमें अच्छी नहीं लगती थी! आज भी अच्छी नहीं लगती!... एक बार पिताजी का तबादला एक छोटेसे गाँव में हुआ था!... पिताजी तो खैर! डॉक्टर थे!... अस्पताल में उनका आना-जाना लगा रहता था;.... लेकिन हम क्या करे?.... हमें तो पढने के लिए स्कूल जाना पड़ता था!...
स्कूल मजेदार था!...उसमें में उतनी ही सुविधाएँ थी; जितनी की छोटेसे गाँव के एक अदद स्कूल में होती है!... धूप की जब बहुतायत होती थी... हमारी क्लास एक घने बरगद के पेड़ के नीचे बैठाई जाती थी... जब ठंड का डंडा लहराता था तब टेंट में सिकुड़कर बैठने की भी सुविधा थी... लेकिन बारिश के मौसम में अक्सर हमें घर जाने के लिए धमकाया जाता था!
....धमकाया इसलिए जाता था, ...क्यों कि हम घर जाने के लिए राजी होते ही नहीं थे!... मास्टरजी से विनती करते थे कि हम पर इतना बड़ा जुल्म ना ढहाया जाये और हमें घर ना भेजा जाये!...हमें स्कूल में ही रहने दीजिए...छुट्टी हमें पसंद नहीं है!... तब स्कूल में पढाने के लिए मास्टरजी ही हुआ करते थे... मैडम का फैशन तो तब मार्किट में नहीं था! .... एक बात हम बताना भूल ही गए कि हमारी क्लास में हमारे समेत तीन लड़कियां और पच्चीस लडके ....जिन्हें विद्यार्थी कहतें है....हुआ करते थे! ..हाँ!..छुट्टी तो किसी को भी पसंद नहीं थी!
...तो हम और हमारे जैसे बहुसंख्य विद्यार्थी घर जाने के लिए राजी नहीं होते थे!... हम तो घर बैठकर होने वाली बोरियत से घबरा जाते थे; जब कि हमारे क्लास-मेट ' घर पर काम करना पडेगा...' की सोच से घबरा कर स्कूल में ही समय गुजारना पसंद करते थे!... कोई गलती से यह न समझ बैठे की हम बहुत ज्यादा पढाकू थे! बारिश के मौसम में, मास्टरजी को घर जाकर मास्टरनी( पत्नी) के हाथ के बने चटपटे पकौडे जो खाने होते थे!... मास्टरजी तो बादल देखकर ही छुट्टी डिक्लेर कर देते थे और सबसे पहले मास्टरजी ही स्कूल से बाहर निकलते थे!...उन्हें छुट्टियों से बड़ा ही लगाव था!
स्कूल में एक और भी मास्टरजी थे...जो हेड-मास्टर कहलातें थे!... वे छुट्टी पर ही रहते थे!...उनके दर्शन स्कूल में 26 जनवरी और 15 अगस्त वाले दिन ही होते थे... अन्यथा वे सरपंच होने के नाते, गांववालों में आपसी झगडे करवाने और फ़िर उन्हें निपटाने में लिप्त रहतें थे!... स्कूल में होने वाली धान्दली से उन्हें कोई लेना देना नहीं था!
...तो गाँव के स्कूल के वे सुनहरे दिन याद करके हम आज भी तरोताजा हो लेते है!... शहरों के अंग्रेजी पढाने वाले ,पब्लिक स्कूल वाले विद्यार्थियों की बुरी हालत आज हम देख ही रहे है!... बेचारे छुट्टी के दिन भी 'ट्यूशन' नाम की राक्षसनी के हाथ से बच नहीं सकतें!
.... वैसे छुट्टियों की कमी तो सरकार ने भी कभी होने नहीं दी!... जितनी छुट्टियाँ स्कूलों के लिए बहाल की जाती है, उतनी किसी और डिपार्टमेंट के लिए उपलब्ध होने का रेकोर्ड हमारे पास नहीं है!... अभी दिवाली गई, ये देखो ईद गई...ये दशहरा आया...ये राम जन्म..ये कृष्ण जन्म...ये माता की नवरात्री.. अब क्रिसमस और फ़िर नया साल!...बीच से शनिवार और रविवार भी तो है... अपरंपार छुट्टियाँ !... किसी को भली लगे या बुरी!...हाय रे छुट्टियाँ!