तारे जमीं पर... मेरी नज़र से !
हम सभी फिल्में देखतें है!... कोई ज्यादा , तो कोई कम!... देखने का नजरियाँ भी सभी का अलग अलग ही होता है!... तभी तो कोई फ़िल्म किसी एक व्यक्ति को अच्छी लगाती है ; तो दूसरे व्यक्ति को बोर लगती है; तो तीसरे व्यक्ति को सो सो लगती है!.... कुछ फिल्में ऐसी भी होती है जो बच्चों से लेकर बडो तक सभी को पसंद आती है!... ऐसी फिल्में 'सदाबहार ' फिल्में कहलाती है... बार बार देखने पर भी, एक बार और देखने के लिए मन ललचाता है!
ऐसी ही एक फ़िल्म ' तारे जमीं पर...' मैंने देखी! ...हालाकि यह फ़िल्म लगभग एक साल पहले रिलीज हुई है ...तो इसे अब पुरानी भी कह सकतें है... लेकिन मुझे इस फ़िल्म को देखने का मौका अब हाथ लगा!... वैसे मैं फिल्में कम देखती हूँ; लेकिन जब तक नई पेशकश गिनी जाती है तब तक ही देखती हूँ!... बाद में इंटरेस्ट कम हो जाता है!...खैर!
... तो मैंने 'तारे जमीं पर ...' देखी और मुझे लगा कि अगर यह फ़िल्म देखनी रह जाती तो मैं एक अच्छी और अलग किस्म की फ़िल्म देखने से वंचित रह जाती! ... इस फ़िल्म के बारे में मैंने अख़बार और पत्रिकाओं में बहुत कुछ पढा था!... टी.वी.पर बहुत कुछ सुना भी था... सभी ने इस फ़िल्म के बारे में जी भर कर प्रसंसनीय उदगार लिखे और कहे थे!...
... मैंने जब मौका मिला तो फ़िल्म अपनी नज़र से देखी.... इस फ़िल्म के बारे में पढ़ा और सुना हुआ सबकुछ पहले ही अपने दिमाग़ से बाहर निकाल दिया था!... मैंने पूरी फ़िल्म देखी!... और इस नतीजे पर पहुँची की फ़िल्म शिक्षाप्रद है!... असामान्य बुद्धि और चाल-चलन के बच्चो के साथ, माता-पिता और शिक्षकों को किस तरह से पेश आना चाहिए... यही इस फ़िल्म के माध्यम से बताया गया है!... यही सब विस्तार से अनेक लेखकों और पत्रकारों द्बारा फ़िल्म की समीक्षामें लिखा और कहा भी गया है!
अब मैंने एक अलग चीज महसूस की; और देखी कि.... इस फ़िल्म का बाल कलाकार दर्शिल याने कि फ़िल्म का हीरो ईशान अवस्थी, हम सभी के अदंर छिपा हुआ है!... क्या हम भी ईशान की तरह नहीं है?... मिटटी खोदते हुए मजदूर की शर्ट का टूटा हुआ बटन हमारा भी ध्यान खिंचता है!... पैडल रिक्शा-चालक के हाथ की फूली हुई नसे हमारा ध्यान खिंचती है.... भेल-पुरी वाला और बर्फ के गोले बनाने वाले तेजी से चल रहे हाथ हमें भी अच्छे लगते है!.... ऐसी बहुतसी चीजे है, जो हम ईशान की तरह ही उत्सुकता से ताकते रहते है!
.... आमिर खान निशाना साधने में फ़िर एक बार कामियाब हुए है....और इस फ़िल्म को हिट बनाने में यही नुस्खा सबसे ज्यादा काम आया है!... हम ईशान में अपनी छबि देखते है!... मैंने सही कहा या ग़लत?
8 comments:
आपने फ़िल्म की अच्छी समिक्षा कर दी ! आपने बहुत बारीकी से इसको देखा है और आपकी इस बात से सहमत हूं कि दर्शिल को हम अपने अन्दर महसुस करते हैं और शायद यही इस फ़िल्म की सफ़लता का राज है !
राम राम!
ताऊ को डराने के लिए ताई के लिए, मायावती या उमाभारती का गेट-अप ठीक रहता!... आजमाया हुआ नुस्खा है!(मेरा नहीं)... पढ़ कर बहुत मजा आया, धन्यवाद!
आपकी बातों से सहमत हूं।
badhiya hai.aapane achchha likha.
बहुत अच्छा लेख लिखा आप ने इस लेख के लिये आप का धन्यवाद
बिल्कुल सही कहा आपने. इशान में हर किसी ने कहीं-न-कहीं ख़ुद को पाया. तभी तो उसे इतना स्वीकार किया गया. बहुत कम ऐसी फिल्में आती हैं जो सभी के दिलों को छु जायें.
बहुत सुन्दर मजेदार और यथार्थ दुर्भाग्य से मेने यह मूवी नहीं देखी
pichale 20 saalo mein bani 5 shresht filmo mein ek hai ye mere hisaab se
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