अलबेला खत्री जी की हास्य-व्यंग्य प्रतियोगिता हाजिर है!
श्री. अलबेला खत्री जी हास्य कवि है ...लेकिन सिर्फ कविता के माध्यम से ही नहीं... बातों का बतंगड़ बना कर भी हंसाने में ये कवि महाशय माहिर है!...मैंने हाल ही में तिलियार ब्लोगर मेले में इनके द्वारा प्रसारित हास्य की फुआर उडती देखी!....वैसे इन्हों ने, कहते है कि वहां हास्य की गंगा भी बहाई थी.... लेकिन ये साहब जब वहां पहुंचें... लेट ही पहुंचे....तब हम ( मतलब कि मैं और मेरे पति पृथ्वीराज कपूर ) वापसी की ही तैयारी कर रहे थे!...फिर भी आधा घंटा और ठहर गए और इनके सानिंध्य का आनंद उठा ही लिया!... तब बात छिड़ गई थी इनके साथ हुए राखी सावंत की भिडंत की!...हा, हा, हा...
...राखी सावंत के तेवर तो टी.वी.चेनलों का गरम मसाला है ही ! ...लेकिन राखी सावंत को भी अलाबेलाजी ने तीखी हरी मिर्चे चटा दी...सुन कर वहा बैठे सभी वाह वाह कर उठे !...ब्लोगर मेले की असली आप-बिती तो अब राज भाटियाजी सुनाने वाले है!...इन्होने ही इस मेले का भार अपने कंधे पर या कंधों पर उठाया था!....हा, हा, हा!
ताजा समाचार मैं यहाँ दे रही हूँ कि अलबेला खत्री जी ...स्पर्धा क्रमांक -5 का ...हास्य-व्यंग्य प्रतियोगिता का ....आयोजन करने जा रहे है... जैसे कि 1,2,3 और 4 का कर चुके है!...इस बार उनका कहना है कि हास्य-व्यंग्य प्रतियोगियों द्वारा प्रस्तुत किए जाने चाहिए...मतलब कि हंसाने की जिम्मेदारी हम ब्लोगर्स की है...और हंसने की जिम्मेदारी उनकी है!......चाहे कविता हो, गजल हो,लेख हो, कहानी हो, निबंध हो, कार्टून हो ....कुछ भी चलेगा, लेकिन हँसाने में सक्षम होना जरुरी है!....अलबेला जी जरुर हसेंगे ...आप इस स्पर्धा में भाग ले कर तो देखिए...हा, हा, हा!
...एक प्रतियोगी एक ही रचना भेज सकता है! ....रचना भेजने कि अंतिम तारीख 15 दिसंबर है!... इनाम भी देने के लिए उन्होंने तैयार रखे हुए है!...तो Albelakhatri.com पर फ़ौरन दौड़ लगाइए और अपनी क्षमता का परिचय सभी को दीजिये!...हां, हा, हां!
...अगर यह खबर पढ़ कर हंसी आ जाए तो मेरे साथ बेशक ठहाका लगा सकतें है....हा, हा, हा!
बात छोटीसी होती है...उसका बतंगड बना कर उसे बडी बनाई जा सकती है।...जैसे कि गुब्बारा...और राई का पहाड!
Thursday, 25 November 2010
Wednesday, 17 November 2010
चिठ्ठाकारों का संमेलन!..ब्लॉग विमर्श!
चिठ्ठाकारों का सम्मलेन!
ब्लॉग को चिठ्ठा कहा जाए तो ब्लोगर्स चिठ्ठाकार अपने आप ही हो गए!...मैंने भी बिना लाग-लपट के कह दिया रचनाजी!....वैसे आपने जिस संमेलन के बारे में लिखा है वह कब और कहाँ हुआ ...इसका पता आपने दिया नहीं है!...खैर!...जाहिर है इस संमेलन का आयोजन आपने नहीं किया था!...तो संयोजक कौन थे?...कृपया बताने का कष्ट करें!...वैसे आपने सारी जानकारी स्पष्ट रूप से दी है, धन्यवाद!
ब्लॉग विमर्श के लिए कुल 10 पॉइंट्स थे!... सभी पॉइंट्स विचारणीय है!
....अब ब्लॉग के जरिए हिंदी का उत्थान देखें तो यह हिंदी भाषा के प्रचार के लिए उत्तम मार्ग है!....जन साधारण को सिर्फ हिंदी पढने के लिए बाध्य कर के...हिंदी का उत्थान नहीं हो सकता!...उनके लिए लिखने की जगह उपलब्ध होना भी जरुरी है!...उन्हें जब लगेगा कि उनका लिखा हुआ पढ़ा जा रहा है, उस पर अन्य पाठक अपनी राय भी दे रहे है...तो वह और ज्यादा लिखेंगे और इस प्रकार हिंदी का प्रचार आगे बढेगा!..ब्लॉग लेखन इस प्रकार हिंदी भाषा को समृद्ध बना रहा है!
....हिंदी ब्लॉग से कमाई ....इस पॉइंट पर विचार करें तो परिणाम फिल हाल शून्य ही सामने आ रहा है!...और इसी वजह से जैसा कि एक अन्य पॉइंट है....ब्लोगरों कि संख्या घटती जा रही है! अपना बहुमूल्य समय ब्लॉग लिखने में खर्च करना हर किसी के बस की बात नहीं है!... जिन ब्लोगर्स का कमाई का अन्य जरिया बेहतरीन होता है, वही हिंदी ब्लॉग लिखने में रूचि लेते है!... मुझे लगता है मेरे इस विचार से सभी ब्लॉगर्स सहमत होंगे!...अब यह काम उस वेब-साईट का है जो हिंदी ब्लॉग्स के लिए ब्लोगर्स को आमंत्रित कर रहे है!
...ब्लॉग पर साहित्य का सृजन...यह भी एक ध्यान खिंचने वाला पॉइंट है!...माना कि हर लिखने वाला साहित्यिक नहीं होता!...लेकिन अगर कोई साहित्यिक ब्लॉग लिखने पर आमादा हो जाता है तो जाहिर है कि वह सभी के ध्यान अपनी तरफ खिंचता है!...उसकी कलम में यह शक्ति होती है!...लेकिन इसका मतलब यह नहीं कि अन्य ब्लोगर्स हीन भावना का अनुभव करें और पीछे हटें!...इसका अच्छा उदाहरण हमारी फिल्म इंडस्ट्री है!...अमिताभ बच्चन,शाहरुख खान, अक्षय कुमार जैसे बड़े कलाकारों के चलते हुए भी साधारण कलाकारों की तूती बज रही है!... अब साधारण कलाकारों की सूची आप स्वयं तैयार कर सकतें है!... बड़े नामी सिंगर्स के होते हुए भी छोटे सिंगर्स की मांग कम नहीं है!....तो इस बारे में यही कहना है कि ब्लॉग लिखने के लिए साहित्यिक होना जरुरी नहीं है...अपने विचार स्पष्ट रूप से लिख कर व्यक्त करने की कला ही पर्याप्त है!.
गुट बाजी :समीर और अनूप की... यह पॉइंट कैसे दर्ज हुआ यह समझ में नहीं आ रहा!... मैं समझती हूँ कि इस प्रकार की कोई गुट बाजी यहाँ नहीं है!
ब्लॉग पर पाठक बढ़ सकतें है!...ब्लोगर्स की संख्या बढ़ने के साथ साथ ही पाठकों की संख्या भी बढ़ सकती है!...इसके लिए ब्लोगर्स के लिए पारिश्रमिक उपलब्ध होना जरुरी है!...कैसे?...इसके लिए अलग से विमर्श होना चाहिए!..सभी ब्लोगर्स अपनी राय दें...अगर बोलने का मौका नहीं मिलता तो लिख कर अपने विचार सब के सामने रख सकतें है!
रचना जी को मैं यहाँ धन्यवाद देना चाहूंगी!....आपने बहुत महत्वपूर्ण मुद्दे पर विचार व्यक्त करने के लिए आमंत्रित किया है!...
ब्लॉग को चिठ्ठा कहा जाए तो ब्लोगर्स चिठ्ठाकार अपने आप ही हो गए!...मैंने भी बिना लाग-लपट के कह दिया रचनाजी!....वैसे आपने जिस संमेलन के बारे में लिखा है वह कब और कहाँ हुआ ...इसका पता आपने दिया नहीं है!...खैर!...जाहिर है इस संमेलन का आयोजन आपने नहीं किया था!...तो संयोजक कौन थे?...कृपया बताने का कष्ट करें!...वैसे आपने सारी जानकारी स्पष्ट रूप से दी है, धन्यवाद!
ब्लॉग विमर्श के लिए कुल 10 पॉइंट्स थे!... सभी पॉइंट्स विचारणीय है!
....अब ब्लॉग के जरिए हिंदी का उत्थान देखें तो यह हिंदी भाषा के प्रचार के लिए उत्तम मार्ग है!....जन साधारण को सिर्फ हिंदी पढने के लिए बाध्य कर के...हिंदी का उत्थान नहीं हो सकता!...उनके लिए लिखने की जगह उपलब्ध होना भी जरुरी है!...उन्हें जब लगेगा कि उनका लिखा हुआ पढ़ा जा रहा है, उस पर अन्य पाठक अपनी राय भी दे रहे है...तो वह और ज्यादा लिखेंगे और इस प्रकार हिंदी का प्रचार आगे बढेगा!..ब्लॉग लेखन इस प्रकार हिंदी भाषा को समृद्ध बना रहा है!
....हिंदी ब्लॉग से कमाई ....इस पॉइंट पर विचार करें तो परिणाम फिल हाल शून्य ही सामने आ रहा है!...और इसी वजह से जैसा कि एक अन्य पॉइंट है....ब्लोगरों कि संख्या घटती जा रही है! अपना बहुमूल्य समय ब्लॉग लिखने में खर्च करना हर किसी के बस की बात नहीं है!... जिन ब्लोगर्स का कमाई का अन्य जरिया बेहतरीन होता है, वही हिंदी ब्लॉग लिखने में रूचि लेते है!... मुझे लगता है मेरे इस विचार से सभी ब्लॉगर्स सहमत होंगे!...अब यह काम उस वेब-साईट का है जो हिंदी ब्लॉग्स के लिए ब्लोगर्स को आमंत्रित कर रहे है!
...ब्लॉग पर साहित्य का सृजन...यह भी एक ध्यान खिंचने वाला पॉइंट है!...माना कि हर लिखने वाला साहित्यिक नहीं होता!...लेकिन अगर कोई साहित्यिक ब्लॉग लिखने पर आमादा हो जाता है तो जाहिर है कि वह सभी के ध्यान अपनी तरफ खिंचता है!...उसकी कलम में यह शक्ति होती है!...लेकिन इसका मतलब यह नहीं कि अन्य ब्लोगर्स हीन भावना का अनुभव करें और पीछे हटें!...इसका अच्छा उदाहरण हमारी फिल्म इंडस्ट्री है!...अमिताभ बच्चन,शाहरुख खान, अक्षय कुमार जैसे बड़े कलाकारों के चलते हुए भी साधारण कलाकारों की तूती बज रही है!... अब साधारण कलाकारों की सूची आप स्वयं तैयार कर सकतें है!... बड़े नामी सिंगर्स के होते हुए भी छोटे सिंगर्स की मांग कम नहीं है!....तो इस बारे में यही कहना है कि ब्लॉग लिखने के लिए साहित्यिक होना जरुरी नहीं है...अपने विचार स्पष्ट रूप से लिख कर व्यक्त करने की कला ही पर्याप्त है!.
गुट बाजी :समीर और अनूप की... यह पॉइंट कैसे दर्ज हुआ यह समझ में नहीं आ रहा!... मैं समझती हूँ कि इस प्रकार की कोई गुट बाजी यहाँ नहीं है!
ब्लॉग पर पाठक बढ़ सकतें है!...ब्लोगर्स की संख्या बढ़ने के साथ साथ ही पाठकों की संख्या भी बढ़ सकती है!...इसके लिए ब्लोगर्स के लिए पारिश्रमिक उपलब्ध होना जरुरी है!...कैसे?...इसके लिए अलग से विमर्श होना चाहिए!..सभी ब्लोगर्स अपनी राय दें...अगर बोलने का मौका नहीं मिलता तो लिख कर अपने विचार सब के सामने रख सकतें है!
रचना जी को मैं यहाँ धन्यवाद देना चाहूंगी!....आपने बहुत महत्वपूर्ण मुद्दे पर विचार व्यक्त करने के लिए आमंत्रित किया है!...
Tuesday, 31 August 2010
ए. आर. रहमान का संगीत और बवंडर!
एक कलाकार ही तो है... ए.आर. रहमान!
......एक वह दिन भी था जब संगीतकार ए. आर. रहमान को हमी लोगों ने सिर पर उठाया था!... उन्हें महान संगीतकार का दर्जा दिया था!...क्यों कि उन्हों ने तब ऑस्कर अवार्ड भारत की झोली में डाला था! ...तब हमें लगा था कि ये तो देश का गौरव है...देश की शान है.....इनका कद तो बहुत उंचा है!
....और आज यही संगीतकार हमें बौना नजर आ रहा है!...क्यों कि कॉमनवेल्थ गेम्स के लिए तैयार किया गया उनका गीत... 'ओ...यारो ये इंडिया ...बुला लिया!' ....कुछ बड़े लोगों को पसंद नही आया!....छोटे लोगों को पसंद आया कि नही... यह कौन पूछने जाता है!
.... बात १५ करोड़ रुपयों की मांग की भी है!...कहते है की उन्हें साढ़े पांच करोड़ दिए गए है!... ये बात तो अंदर की है!... वैसे उन्हें कुछ भी देने की जरुरत नही थी! ....अगर कॉमनवेल्थ गेम्स देश के लिए हो रहे है तो ...देश के लिए काम करने वाले किसी को भी मेहनताना नही मिलना चाहिए!....फिर ए. आर. रहमान को ही क्यों साढ़े पांच करोड़ रुपये दिए गए?
...चलो दे भी दिए...तो उन्होंने जो भी संगीत दिया उसे अच्छा मान कर स्वीकार कर लेना चाहिए!.... आपने उन्हें गीत-संगीत का जिम्मा सोंपा था... जो उन्होंने निभाया!.....उनकी शकीरा के संगीत से तुलना किसलिए की जानी चाहिए?... रही बात हिंदी की!.... गलती ही निकालनी है तो हिंदी के किसी भी गाने की कहीं से भी निकाली जा सकती है!.... इंग्लिश गानों की भी निकाली जा सकती है!... यहाँ साहित्य की कड़ी परीक्षा नही हो रही....यह नजर-अंदाज करने वाली बात है!
...और ध्यान देने वाली एक बात यह भी है कि ....हर कलाकार अपनी दूसरी कृति , पहली कृति से भिन्न ही बनाएगा!... दूसरी कृति में पहलेवाली कृति की अपेक्षा करना गलत है! ...यही बात ए. आर. रहमान की रचना को भी लागू होती है!
.....मुझे लगता है कि इस बात को ले कर बवंडर उठाना ठीक नही है!
......एक वह दिन भी था जब संगीतकार ए. आर. रहमान को हमी लोगों ने सिर पर उठाया था!... उन्हें महान संगीतकार का दर्जा दिया था!...क्यों कि उन्हों ने तब ऑस्कर अवार्ड भारत की झोली में डाला था! ...तब हमें लगा था कि ये तो देश का गौरव है...देश की शान है.....इनका कद तो बहुत उंचा है!
....और आज यही संगीतकार हमें बौना नजर आ रहा है!...क्यों कि कॉमनवेल्थ गेम्स के लिए तैयार किया गया उनका गीत... 'ओ...यारो ये इंडिया ...बुला लिया!' ....कुछ बड़े लोगों को पसंद नही आया!....छोटे लोगों को पसंद आया कि नही... यह कौन पूछने जाता है!
.... बात १५ करोड़ रुपयों की मांग की भी है!...कहते है की उन्हें साढ़े पांच करोड़ दिए गए है!... ये बात तो अंदर की है!... वैसे उन्हें कुछ भी देने की जरुरत नही थी! ....अगर कॉमनवेल्थ गेम्स देश के लिए हो रहे है तो ...देश के लिए काम करने वाले किसी को भी मेहनताना नही मिलना चाहिए!....फिर ए. आर. रहमान को ही क्यों साढ़े पांच करोड़ रुपये दिए गए?
...चलो दे भी दिए...तो उन्होंने जो भी संगीत दिया उसे अच्छा मान कर स्वीकार कर लेना चाहिए!.... आपने उन्हें गीत-संगीत का जिम्मा सोंपा था... जो उन्होंने निभाया!.....उनकी शकीरा के संगीत से तुलना किसलिए की जानी चाहिए?... रही बात हिंदी की!.... गलती ही निकालनी है तो हिंदी के किसी भी गाने की कहीं से भी निकाली जा सकती है!.... इंग्लिश गानों की भी निकाली जा सकती है!... यहाँ साहित्य की कड़ी परीक्षा नही हो रही....यह नजर-अंदाज करने वाली बात है!
...और ध्यान देने वाली एक बात यह भी है कि ....हर कलाकार अपनी दूसरी कृति , पहली कृति से भिन्न ही बनाएगा!... दूसरी कृति में पहलेवाली कृति की अपेक्षा करना गलत है! ...यही बात ए. आर. रहमान की रचना को भी लागू होती है!
.....मुझे लगता है कि इस बात को ले कर बवंडर उठाना ठीक नही है!
Monday, 30 August 2010
Friday, 6 August 2010
एक उपन्यास' उनकी नजर है हम पर!'
' उनकी नजर है..हम पर ' का लोकार्पण!
कुछ दिनों के अवकाश के बाद मैं लौट आउंगी !... एक बहुत जरुरी काम आ पड़ा है!...ऐसा कई बार हुआ है!...मैं छुट्टी ले कर यहां से गई भी हूँ और वापस आई भी हूँ! !...मेरे साथी ब्लोगर्स भी ऐसा ही कर रहे है! ....मेरी नजर है ...उन पर!
...जाते जाते बता कर जा रही हूँ कि मेरे द्वारा लिखित उपन्यास का नाम है 'उनकी नजर है ..हम पर! ' इस का 11 अगस्त 2010 के रोज लोकार्पण होने जा रहा है!... यह उपन्यास परग्रहियों का हमारी धरती पर उतर आने से संबधित है!... खैर! परग्रहियों को मैंने, आपने या विदेशियों ने भी अब तक देखा नही है; इसके बावजूद भी उनके बारे में बहुत कुछ कहा गया है, लिखा गया है और फिल्में भी बनाई गई है!..
...मेरी कल्पना ,अब तक की परग्रहियों के बारे में की गई कल्पना से अलग है!... इस उपन्यास के परग्रही टेढ़ी-मेढ़ी शकलों वाले, नाटे , मोटे ...... लाल, नीले या हरे रंग के नही है! ... वे उपरसे दिखने में तो हम जैसे ही है ...लेकिन हमारे से अलग किस तरह से है...इसका वर्णन इस उपन्यास में मिलेगा... वे किस ख़ास काम से यहां आए हुए है इसका भी खुलासा होगा!...वे हम से दोस्ती भी निभाएंगे और दुश्मनी भी!
इस उपन्यास को हिन्दयुग्म प्रकाशन का सहयोग प्राप्त हुआ है!... श्री शैलेश भारतवासी प्रकाशक है!... सच पूछो तो शैलेशजी की ही मेहनत के परिणाम स्वरूप इस उपन्यास को 'लोकार्पण ' का सौभाग्य प्राप्त हुआ है!
.... मैं तो बस! झोली फैलाए...आप सभी से शुभ-कामनाएँ मांग रही हूँ! ... ऊपर वाले से प्रार्थना कीजिए कि मेरी इस रचना को सफलता की सीढियाँ चढ़ना नसीब हो!
...मैं यहां आप सभी के लिए प्रार्थना करती हूँ कि आप को अपने इच्छित कार्य में ज्वलंत सफलता मिलें!
कुछ दिनों के अवकाश के बाद मैं लौट आउंगी !... एक बहुत जरुरी काम आ पड़ा है!...ऐसा कई बार हुआ है!...मैं छुट्टी ले कर यहां से गई भी हूँ और वापस आई भी हूँ! !...मेरे साथी ब्लोगर्स भी ऐसा ही कर रहे है! ....मेरी नजर है ...उन पर!
...जाते जाते बता कर जा रही हूँ कि मेरे द्वारा लिखित उपन्यास का नाम है 'उनकी नजर है ..हम पर! ' इस का 11 अगस्त 2010 के रोज लोकार्पण होने जा रहा है!... यह उपन्यास परग्रहियों का हमारी धरती पर उतर आने से संबधित है!... खैर! परग्रहियों को मैंने, आपने या विदेशियों ने भी अब तक देखा नही है; इसके बावजूद भी उनके बारे में बहुत कुछ कहा गया है, लिखा गया है और फिल्में भी बनाई गई है!..
...मेरी कल्पना ,अब तक की परग्रहियों के बारे में की गई कल्पना से अलग है!... इस उपन्यास के परग्रही टेढ़ी-मेढ़ी शकलों वाले, नाटे , मोटे ...... लाल, नीले या हरे रंग के नही है! ... वे उपरसे दिखने में तो हम जैसे ही है ...लेकिन हमारे से अलग किस तरह से है...इसका वर्णन इस उपन्यास में मिलेगा... वे किस ख़ास काम से यहां आए हुए है इसका भी खुलासा होगा!...वे हम से दोस्ती भी निभाएंगे और दुश्मनी भी!
इस उपन्यास को हिन्दयुग्म प्रकाशन का सहयोग प्राप्त हुआ है!... श्री शैलेश भारतवासी प्रकाशक है!... सच पूछो तो शैलेशजी की ही मेहनत के परिणाम स्वरूप इस उपन्यास को 'लोकार्पण ' का सौभाग्य प्राप्त हुआ है!
.... मैं तो बस! झोली फैलाए...आप सभी से शुभ-कामनाएँ मांग रही हूँ! ... ऊपर वाले से प्रार्थना कीजिए कि मेरी इस रचना को सफलता की सीढियाँ चढ़ना नसीब हो!
...मैं यहां आप सभी के लिए प्रार्थना करती हूँ कि आप को अपने इच्छित कार्य में ज्वलंत सफलता मिलें!
Saturday, 31 July 2010
किसीकी प्रशंसा करने में कंजूसी क्यों?
प्रशंसा किसे नही पसंद?
मुझे लगता है... किसी की प्रशंसा करना भी एक कला है,एक आर्ट है, या समझ लीजिए की एक गुण है!...इस गुण से सभी परिपूर्ण बेशक नहीं होते...लेकिन इस गुण को आत्मसात करना कोई कठिन काम नहीं है!...कुछ लोग कहते है कि ' मुझे किसीकी चमचागिरी करने की आदत नहीं है!... '
...चलिए मान लेते है कि आपकी यह आदत अच्छी है ...लेकिन इस आदत के चलते आपको कब कब, कहां कहां और कितना नुकसान उठाना पड़ा है... ज़रा बताएंगे आप? ...और फिर किसी की प्रशंसा करना चाटुकारी या चमचागिरी कैसे हुई?... किसी के लिए दो अच्छे शब्द बोल दिए, तो इससे आपकी प्रतिष्ठा पर आंच आने का सवाल पैदा ही नहीं होता!
... यहाँ मेरे साथ घटी एक घटना पेश करने जा रही हूं! जो प्रशंसा से ही संबंधित है!
......मेरे पड़ोस में एक परिवार रहता है... यह खन्ना परिवार है ..सास, ससुर, बेटा और बहू! ... बहू का पांच महीने का छोटासा बच्चा भी है! ... ऐसे ही दोपहर के समय मैं उनके घर चली गई!... वैसे दिल्ली जैसे महानगर में पास- पड़ोस में जा कर बतियाने का रिवाज तो खत्म सा हो गया है!... सभी अपने में मस्त होते है!... पॉश कोलोनिज में तो और भी बुरा हाल है!...कई कई दिनों या महीनो तक पता भी नहीं चलता कि आपके सामने वाले फ़्लैट में कौन रह रहा है!
... तो मैं खन्नाजी के यहां चली गई!... मेरा मिसेस खन्ना ने तहे दिल से स्वागत किया !... मैंने उनका और उन्होंने मेरा हालचाल पूछा!,,,, बहू बेडरूम में थी; उसे भी मिसेस खन्ना ने बाहर बैठक में बुलाया ...वह अपने छोटे बच्चे को ले कर आ गई और सोफे पर मेरे साथ बैठ गई! ...मिसेस खन्ना इतने में चाय वगैरा ले कर आ गई!...इधर उधर की बातों का सिलसिला जारी था!
" देखिए बहनजी! मेरी बहू ने पोते को कितनी अच्छी तरह से संभाला हुआ है!... उसकी देखभाल यह बहुत ही अच्छे तरीके से करती है.... बच्चे की मालिश , उसे नहलाना-धुलाना , समय पर दूध पिलाना, उसकी दवाइयाँ वगैरे का ध्यान रखना .... मुझे तो कुछ कहना ही नहीं पड़ता!" मिसेस खन्ना अपनी बहू की भूरी भूरी प्रशंसा कर रही थी!
अब बोलने की बारी बहू की थी! वह कहने लगी!
" आंटी!...डिलीवरी के बाद होस्पिटल से छुट्टी मिलने के बाद , मैं मायके ही गई थी!... वहां मैं सवा महीना रही !... मेरी मम्मी ने मेरे लिए मालिश वाली बाई लगवाई थी ... वह मेरी और मेरे बच्चे की मालिश करती थी! ... मेरी मम्मी मेरा बड़ा ही ध्यान रखती थी!... मेरी पसंद की चीजे बना कर खिलाती थी ....वहीँ से मैं सब सीख कर आई कि बच्चे को कैसे संभाला जाता है!"
...बहू ने बिच में एक बार भी अपनी सास का नाम नहीं लिया!... वह कह सकती थी कि 'सासू माँ की मदद ले कर ही मैं बच्चे की अच्छे से देखभाल कर पा रहीं हूँ!...
....मैं जानती थी कि बहू सिर्फ अपने बच्चे के साथ दिन भर अपने बेड-रूम में बंद रहती थी !... चाय बनानी या पानी का गिलास भी वह उठाती नहीं थी! घर में खाना बनाने से ले कर और घर-गृहस्थी के सारे काम सास याने कि मिसेस खन्ना ही करती थी!... सुबह से ले कर रात के ग्यारह बजे तक उसका काम चलता ही रहता था!...ऐसे में अगर बहू अपनी सास के लिए प्रशंसा के दो बोल बोल देती तो उसका क्या बिगड़ने वाला था?
..... यह बात मुझे ही नहीं , मिसेस खन्ना को भी चुभ गई!...क्यों कि बाद में बातों का सिलसिला ठंडा पड़ गया!... भारी मन से मैंने विदा ली और अपने घर वापस आ गई!.......न जाने लोग ऐसा क्यों करते है?... मैं सोच रही थी!...मिसेस खन्ना ने अपने बहू की प्रशंसा ही की थी!... क्या बहू का फर्ज नहीं बनता था कि बदले में ही सही...अपनी सास के लिए कुछ मीठे शब्दों का इस्तेमाल करे?...
.....किसीकी प्रशंसा करने के लिए पैसे तो खर्च नहीं करने पड़ते...फिर लोग दूसरों की प्रशंसा करने में कंजूसी क्यों बरततें है?... जब हम भगवान, अल्लाह या क्राइस्ट के सामने जाते है , तब भी पहले उसकी प्रशंसा करते है कि वह दाता है, महान है , शक्तिमान है , तारणहार है...वगैरा वगैरा!... इसके बाद उससे जो मांगना है, मांगतें है! ... फिर मनुष्य के लिए यह बात क्यों नहीं सोचतें कि प्रशंसा का भूखा तो मनुष्य भी है!
मुझे लगता है... किसी की प्रशंसा करना भी एक कला है,एक आर्ट है, या समझ लीजिए की एक गुण है!...इस गुण से सभी परिपूर्ण बेशक नहीं होते...लेकिन इस गुण को आत्मसात करना कोई कठिन काम नहीं है!...कुछ लोग कहते है कि ' मुझे किसीकी चमचागिरी करने की आदत नहीं है!... '
...चलिए मान लेते है कि आपकी यह आदत अच्छी है ...लेकिन इस आदत के चलते आपको कब कब, कहां कहां और कितना नुकसान उठाना पड़ा है... ज़रा बताएंगे आप? ...और फिर किसी की प्रशंसा करना चाटुकारी या चमचागिरी कैसे हुई?... किसी के लिए दो अच्छे शब्द बोल दिए, तो इससे आपकी प्रतिष्ठा पर आंच आने का सवाल पैदा ही नहीं होता!
... यहाँ मेरे साथ घटी एक घटना पेश करने जा रही हूं! जो प्रशंसा से ही संबंधित है!
......मेरे पड़ोस में एक परिवार रहता है... यह खन्ना परिवार है ..सास, ससुर, बेटा और बहू! ... बहू का पांच महीने का छोटासा बच्चा भी है! ... ऐसे ही दोपहर के समय मैं उनके घर चली गई!... वैसे दिल्ली जैसे महानगर में पास- पड़ोस में जा कर बतियाने का रिवाज तो खत्म सा हो गया है!... सभी अपने में मस्त होते है!... पॉश कोलोनिज में तो और भी बुरा हाल है!...कई कई दिनों या महीनो तक पता भी नहीं चलता कि आपके सामने वाले फ़्लैट में कौन रह रहा है!
... तो मैं खन्नाजी के यहां चली गई!... मेरा मिसेस खन्ना ने तहे दिल से स्वागत किया !... मैंने उनका और उन्होंने मेरा हालचाल पूछा!,,,, बहू बेडरूम में थी; उसे भी मिसेस खन्ना ने बाहर बैठक में बुलाया ...वह अपने छोटे बच्चे को ले कर आ गई और सोफे पर मेरे साथ बैठ गई! ...मिसेस खन्ना इतने में चाय वगैरा ले कर आ गई!...इधर उधर की बातों का सिलसिला जारी था!
" देखिए बहनजी! मेरी बहू ने पोते को कितनी अच्छी तरह से संभाला हुआ है!... उसकी देखभाल यह बहुत ही अच्छे तरीके से करती है.... बच्चे की मालिश , उसे नहलाना-धुलाना , समय पर दूध पिलाना, उसकी दवाइयाँ वगैरे का ध्यान रखना .... मुझे तो कुछ कहना ही नहीं पड़ता!" मिसेस खन्ना अपनी बहू की भूरी भूरी प्रशंसा कर रही थी!
अब बोलने की बारी बहू की थी! वह कहने लगी!
" आंटी!...डिलीवरी के बाद होस्पिटल से छुट्टी मिलने के बाद , मैं मायके ही गई थी!... वहां मैं सवा महीना रही !... मेरी मम्मी ने मेरे लिए मालिश वाली बाई लगवाई थी ... वह मेरी और मेरे बच्चे की मालिश करती थी! ... मेरी मम्मी मेरा बड़ा ही ध्यान रखती थी!... मेरी पसंद की चीजे बना कर खिलाती थी ....वहीँ से मैं सब सीख कर आई कि बच्चे को कैसे संभाला जाता है!"
...बहू ने बिच में एक बार भी अपनी सास का नाम नहीं लिया!... वह कह सकती थी कि 'सासू माँ की मदद ले कर ही मैं बच्चे की अच्छे से देखभाल कर पा रहीं हूँ!...
....मैं जानती थी कि बहू सिर्फ अपने बच्चे के साथ दिन भर अपने बेड-रूम में बंद रहती थी !... चाय बनानी या पानी का गिलास भी वह उठाती नहीं थी! घर में खाना बनाने से ले कर और घर-गृहस्थी के सारे काम सास याने कि मिसेस खन्ना ही करती थी!... सुबह से ले कर रात के ग्यारह बजे तक उसका काम चलता ही रहता था!...ऐसे में अगर बहू अपनी सास के लिए प्रशंसा के दो बोल बोल देती तो उसका क्या बिगड़ने वाला था?
..... यह बात मुझे ही नहीं , मिसेस खन्ना को भी चुभ गई!...क्यों कि बाद में बातों का सिलसिला ठंडा पड़ गया!... भारी मन से मैंने विदा ली और अपने घर वापस आ गई!.......न जाने लोग ऐसा क्यों करते है?... मैं सोच रही थी!...मिसेस खन्ना ने अपने बहू की प्रशंसा ही की थी!... क्या बहू का फर्ज नहीं बनता था कि बदले में ही सही...अपनी सास के लिए कुछ मीठे शब्दों का इस्तेमाल करे?...
.....किसीकी प्रशंसा करने के लिए पैसे तो खर्च नहीं करने पड़ते...फिर लोग दूसरों की प्रशंसा करने में कंजूसी क्यों बरततें है?... जब हम भगवान, अल्लाह या क्राइस्ट के सामने जाते है , तब भी पहले उसकी प्रशंसा करते है कि वह दाता है, महान है , शक्तिमान है , तारणहार है...वगैरा वगैरा!... इसके बाद उससे जो मांगना है, मांगतें है! ... फिर मनुष्य के लिए यह बात क्यों नहीं सोचतें कि प्रशंसा का भूखा तो मनुष्य भी है!
Monday, 12 July 2010
है किसीके पास ऑक्टोपस?
हास्य-व्यंग्य ..भाईसाहब को ऑक्टोपस चाहिए....
....क्या है कि भाई साहब अब मेरे पड़ोस में रहने आ गए है... पहले दो गलियाँ छोड़ कर रहा करते थे..मकान भी अपना ही था ....लेकिन उनका अपने किराएदार से झगडा हो गया...उन्हों ने सोचा कि' इतना अच्छा , शरीफ और मोटी रकम किराए के तौर पर देने वाला किरायेदार ...दीया ले कर ढूंढने से शायद मिल भी जाए... लेकिन इतना कष्ट करे कौन?... इससे अच्छा है खुद ही किराए के मकान में शिफ्ट किया जाए!...'
.....मेरी ग्रहदशा उस समय अच्छी नहीं चल रही थी... पड़ोस के मकान से जैसे ही सामान अगले दरवाजे से बाहर जा रहा था...पिछले दरवाजे से भाई साहब का सामान अंदर दाखिल हो रहा था!... यह तो तब पता चला जब अंत में भाई साहब अपनी नेम-प्लेट बाहर टांग रहे थे...और हम पतिदेव के साथ सब्जी खरीदने बाजार जा रहे थे!
"चलो अच्छा ही हुआ कि हम आप के पड़ोस में आ गए!" भाई साहब मेरी तरफ देख कर बोले जो मेरे पतिदेव को जरा भी नहीं सुहाया!
" पता नहीं मैंने सुबह सुबह किसका मुंह देखा था... " पतिदेव दरवाजे पर ताला मढ़ते हुए बोले!
" अजी साहब!... मेरा भी दिन खराब ही रहा... मेरा अपना मकान मुझे खाली करना पड़ा.... मेरे किरायेदार को मैंने अपनी पत्नी के साथ बतियाते हुए रंगे हाथो पकड़ लिया... क्या ज़माना आया है...क्या बताऊ?" ..कहते हुए भाईसाहब मेरे नजदीक आए और मेरे कंधे पर हाथ रखते हुए मेरे पतिदेव को आगे की कहानी सुनाने लगे...
...मैंने घुर कर देखा तो उन्हों ने हाथ हटा लिया और आगे की कहानी अधुरी रह गई!
...और आज तो सुबह सुबह भाई-साहब के शोर- शराबे से ही नींद खुल गई!
हम क्या हुआ..देखने के लिए दरवाजा खोल कर बाहर निकले तो पता चला कि भाईसाहब का झगडा दूधवाले से हो रहा था!
" बड़ा ही बेशर्म है रे तू!.... तूने मेरा हाथ पकड़ा ही क्यों? ... इसका मतलब तू रोज ही मेरी पत्नी का हाथ पकड़ता है?...और क्या क्या करता है रे निर्लज्ज?" भाई साहब चिल्ला चिल्ला कर दूधवाले की खाट खड़ी कर रहे थे!
..हमने और वहां इकठ्ठे हुए दूसरे पड़ोसियोंने देखा कि भाई साहब,.. पत्नी का पीले रंग का लाल फूलों वाला गाउन पहने हुए है... हमारा हंसने का मन भी हुआ लेकिन मामला कुछ गंभीर लगा तो हंसी को अंदर ही समेट लिया!...पूछने पर पता चला कि उनका नाईट-गाउन बारिश कि वजह से सुखा नहीं था सो उन्होंने पत्नी का गाउन पहन लिया था और आज पत्नी की जगह खुद दूध लेने पतीला ले कर दूध वाले के सामने आ गए थे!
...दूधवाला भी गुस्से से लाल पिला हो कर बता रहा था कि " भाई साहब के हाथ से , दूध से भरा पतीला छूटने ही वाला था... इसलिए मैंने आगे बढ़ कर उनका हाथ पकड़ लिया और पतीले को गिरने से बचा लिया!... मैं कसम खाता हूँ अपनी भैस की... एक पैसे का भी झूठ बोला तो मेरी भैस नरक में जाए! "
" सच बोल अबे!... तूने मुझे जनानी समझा था या नहीं?... जनानी समझ कर मेरा हाथ पकड़ा था या नहीं?... " भाई साहब ने आवाज और ऊँची कर दी!
" अँधा हूँ मैं?...मुझे दिखाई नहीं देता....शेर की खाल ओढने से गधा शेर नहीं दिखता!... मैंने जनानी समझ कर नहीं बल्कि भाईसाहब समझकर ही आप का हाथ पकड़ा था!" दूधवाले ने अब मूंछो पर ताव दिया!
" अभी पता चल जाएगा!... अभी इसी जगह दूध का दूध और पानी का पानी हो जाएगा"....कहते हुए भाई साहब जमा हुए हम पड़ोसियों की तरफ घुमे...और ख़ास लहजे में बोले...
" अजी है किसी के पास ऑक्टोपस?... अभी फैसला हो जाएगा...ऑक्टोपस बता देगा कि दूधवाले ने मेरा हाथ जनाना समझ कर पकड़ा था या मर्द समझकर !..."
" ...लेकिन कैसे बताएगा ऑक्टोपस?" मैंने शंका जताई!
" सीधी सी बात है ... ये आपका हाथ है और ये मेरा हाथ है... अगर ऑक्टोपस ने आप के हाथ की तरफ इशारा किया तो समझ लीजिए कि दूधवाले ने मेरा हाथ ...मेरी पत्नी का हाथ समझ कर पकड़ा था...फिर मैं उसकी धुनाई करूँगा .... और अगर ऑक्टोपस ने मेरे हाथ की तरफ इशारा किया तो दूधवाले को राहत मिल सकती है!"
" ये रही आपकी पत्नी..इसका हाथ पकडिये और मेरी पत्नी का छोड़ दीजिये !" मेरे पति अब तक अंदर सो रही भाईसाहब की पत्नी को जगा कर बाहर ले आए !...और " मैं ऑक्टोपस लेने जा रहा हूँ..." कहते हुए चले गए...
...तीन घंटे हो चले है ..लेकिन मेरे पति अब तक ऑक्टोपस ले कर लौटे नहीं है!
....क्या है कि भाई साहब अब मेरे पड़ोस में रहने आ गए है... पहले दो गलियाँ छोड़ कर रहा करते थे..मकान भी अपना ही था ....लेकिन उनका अपने किराएदार से झगडा हो गया...उन्हों ने सोचा कि' इतना अच्छा , शरीफ और मोटी रकम किराए के तौर पर देने वाला किरायेदार ...दीया ले कर ढूंढने से शायद मिल भी जाए... लेकिन इतना कष्ट करे कौन?... इससे अच्छा है खुद ही किराए के मकान में शिफ्ट किया जाए!...'
.....मेरी ग्रहदशा उस समय अच्छी नहीं चल रही थी... पड़ोस के मकान से जैसे ही सामान अगले दरवाजे से बाहर जा रहा था...पिछले दरवाजे से भाई साहब का सामान अंदर दाखिल हो रहा था!... यह तो तब पता चला जब अंत में भाई साहब अपनी नेम-प्लेट बाहर टांग रहे थे...और हम पतिदेव के साथ सब्जी खरीदने बाजार जा रहे थे!
"चलो अच्छा ही हुआ कि हम आप के पड़ोस में आ गए!" भाई साहब मेरी तरफ देख कर बोले जो मेरे पतिदेव को जरा भी नहीं सुहाया!
" पता नहीं मैंने सुबह सुबह किसका मुंह देखा था... " पतिदेव दरवाजे पर ताला मढ़ते हुए बोले!
" अजी साहब!... मेरा भी दिन खराब ही रहा... मेरा अपना मकान मुझे खाली करना पड़ा.... मेरे किरायेदार को मैंने अपनी पत्नी के साथ बतियाते हुए रंगे हाथो पकड़ लिया... क्या ज़माना आया है...क्या बताऊ?" ..कहते हुए भाईसाहब मेरे नजदीक आए और मेरे कंधे पर हाथ रखते हुए मेरे पतिदेव को आगे की कहानी सुनाने लगे...
...मैंने घुर कर देखा तो उन्हों ने हाथ हटा लिया और आगे की कहानी अधुरी रह गई!
...और आज तो सुबह सुबह भाई-साहब के शोर- शराबे से ही नींद खुल गई!
हम क्या हुआ..देखने के लिए दरवाजा खोल कर बाहर निकले तो पता चला कि भाईसाहब का झगडा दूधवाले से हो रहा था!
" बड़ा ही बेशर्म है रे तू!.... तूने मेरा हाथ पकड़ा ही क्यों? ... इसका मतलब तू रोज ही मेरी पत्नी का हाथ पकड़ता है?...और क्या क्या करता है रे निर्लज्ज?" भाई साहब चिल्ला चिल्ला कर दूधवाले की खाट खड़ी कर रहे थे!
..हमने और वहां इकठ्ठे हुए दूसरे पड़ोसियोंने देखा कि भाई साहब,.. पत्नी का पीले रंग का लाल फूलों वाला गाउन पहने हुए है... हमारा हंसने का मन भी हुआ लेकिन मामला कुछ गंभीर लगा तो हंसी को अंदर ही समेट लिया!...पूछने पर पता चला कि उनका नाईट-गाउन बारिश कि वजह से सुखा नहीं था सो उन्होंने पत्नी का गाउन पहन लिया था और आज पत्नी की जगह खुद दूध लेने पतीला ले कर दूध वाले के सामने आ गए थे!
...दूधवाला भी गुस्से से लाल पिला हो कर बता रहा था कि " भाई साहब के हाथ से , दूध से भरा पतीला छूटने ही वाला था... इसलिए मैंने आगे बढ़ कर उनका हाथ पकड़ लिया और पतीले को गिरने से बचा लिया!... मैं कसम खाता हूँ अपनी भैस की... एक पैसे का भी झूठ बोला तो मेरी भैस नरक में जाए! "
" सच बोल अबे!... तूने मुझे जनानी समझा था या नहीं?... जनानी समझ कर मेरा हाथ पकड़ा था या नहीं?... " भाई साहब ने आवाज और ऊँची कर दी!
" अँधा हूँ मैं?...मुझे दिखाई नहीं देता....शेर की खाल ओढने से गधा शेर नहीं दिखता!... मैंने जनानी समझ कर नहीं बल्कि भाईसाहब समझकर ही आप का हाथ पकड़ा था!" दूधवाले ने अब मूंछो पर ताव दिया!
" अभी पता चल जाएगा!... अभी इसी जगह दूध का दूध और पानी का पानी हो जाएगा"....कहते हुए भाई साहब जमा हुए हम पड़ोसियों की तरफ घुमे...और ख़ास लहजे में बोले...
" अजी है किसी के पास ऑक्टोपस?... अभी फैसला हो जाएगा...ऑक्टोपस बता देगा कि दूधवाले ने मेरा हाथ जनाना समझ कर पकड़ा था या मर्द समझकर !..."
" ...लेकिन कैसे बताएगा ऑक्टोपस?" मैंने शंका जताई!
" सीधी सी बात है ... ये आपका हाथ है और ये मेरा हाथ है... अगर ऑक्टोपस ने आप के हाथ की तरफ इशारा किया तो समझ लीजिए कि दूधवाले ने मेरा हाथ ...मेरी पत्नी का हाथ समझ कर पकड़ा था...फिर मैं उसकी धुनाई करूँगा .... और अगर ऑक्टोपस ने मेरे हाथ की तरफ इशारा किया तो दूधवाले को राहत मिल सकती है!"
" ये रही आपकी पत्नी..इसका हाथ पकडिये और मेरी पत्नी का छोड़ दीजिये !" मेरे पति अब तक अंदर सो रही भाईसाहब की पत्नी को जगा कर बाहर ले आए !...और " मैं ऑक्टोपस लेने जा रहा हूँ..." कहते हुए चले गए...
...तीन घंटे हो चले है ..लेकिन मेरे पति अब तक ऑक्टोपस ले कर लौटे नहीं है!
Friday, 18 June 2010
हंसने वाले के साथ..सब हँसते है!
हंसने वाले के साथ...सब हँसतें है!
...एक जमावड़ा था... किसी लड़की की एंगेजमेंट किसी लडके से होने जा रही थी... हम भी उस जमावड़े में आमंत्रित थे!....खाने-पीने के साथ बातों का दौर भी चल रहा था!... बात हंसने और रोने के बारे में चल पड़ी!...किसी भाईसाहब ने कहा..'अजी , हंसने वाले के साथ सब हंसते है..लेकिन रोने वाले के साथ कोई नहीं रोता!' ...भाई साहब का साथ देते हुए दूसरे भाई साहब और बहनजी ने 'हाँ जी!' ..'हाँ जी' ..कहना शुरू कर दिया! इस पर हमें क्रोध आया!...क्यों कि ऐसा कहते हुए उन भाई साहब ने हमारे कंधे पर अपना हाथ रखा दिया ! हमने उनका हाथ पकड़ कर हटाते हुए कहा..." ऐसा कुछ नहीं है...रोने वालों के साथ रोने वाले भी बहुतेरे होते है!"
इस पर भाई साहब अपनी बात पर अड़ गए ' रोने वालों के साथ कोई नहीं रोता!'
"...नहीं जी ऐसा थोड़े ही होता है?... आप रो कर तो देखिएं!..लोग आपके साथ रोना शुरू कर देंगे! ' हमने भाईसाहब की बात काटने के लिए ऐसा कहा!
" वैसे आप रोए कब थे... " हमने चुटकी ली!
' भला मैं क्यों रोने लगा?... मुझे तो रोना आता ही नहीं है .. मैं बस एक बार रोया था !" कहतें हुए भाई साहब ने फिर मेरे कंधे पर हाथ रखा...फिर मैंने उनका हाथ झटक दिया... लेकिन एकदम से भाई साहब चिल्लाएं.... "ओये!...मर गया रे !"... मैंने देख ही लिया की भाई साहब की भारी भरख़म श्रीमती ने उनका वही हाथ जोर से मरोड़ा था!
... अब सभी लोगों का ध्यान इस तरफ था... कि यहाँ क्या हुआ!
...भाई साहब... 'कुछ नहीं..युंही जरा... हे, हे, हे '... करने पर उतर आए!
" हाँ जी भाईसाहब आप रोएँ कब थे?" अब की बार मैंने फिर पूछा...
" जब मेरे गले में श्रीमती वरमाला डाल रही थी!..तब दहाड़े मार कर रोया था मैं!...लेकिन तब लोगों ने जोर जोर से हँसना शुरू किया था जी...रोया तो कोई नहीं था! " पत्नी की तरफ देखते हुए भाईसाहब बोले..इस समय पत्नी जरा दूर खड़ी थी!... नहीं तो फिर उनके चिल्लाने की आवाज दुगुनी रफ्तार से आती!
" भाई साहब रोने वाले के साथ रोने वालों को हम फिर कभी ढूंढेंगे.... अभी आप अपनी कोई ताजा कविता ही सुना दीजिए!".....भीड़ में से कोई बोला!
भाई साहब अपने आप बहुत उच्च कोटी का कवि समझतें है, यह मुझे मालूम था!... मैंने भी आँखे मटकाकर कहा ' सुनाइए न!' ....और भाई साहब की बांछे खिल गई!
..." सुनिए, सुनिए..मेरी बिलकुल ताजा कविता.... आप को अंदर तक हिला कर रख देगी ... कविता का शीर्षक है.....' सूनी सड़क पर...."
.....और वे अपनी रोत्तल आवाज में कविता सुनाने लग गए...उनकी पत्नी फ़ौरन वहां से दफा हो गई .... शायद पत्नी को भगाने के लिए वह हंमेशा यही नुस्खा इस्तेमाल करतें होंगे!
रफ्ता, रफ्ता...
एक साइकिल...
सड़क पर...
जाती हुई...
मेरी नज़रों से...
हुई ओझल...
क्यों कि मैं....
उस समय ...
jaa रहा था....
बिलकुल अकेला...
और पैदल...
सूनी सड़क पर...
मेरे सामने से...
तेज रफ़्तार...
लाल रंग की कार...
गुजर गई...
मुझे धक्का दे कर...
गिरा दिया...
सूनी सड़क पर....
मैं गिरा...
मैं उठा,
मैं खड़ा हुआ...
मैंने झाडे कपडे....
करता और क्या...
सूनी सड़क पर....
मुझे लगा...
जनम जनम से....
भिखारी हूँ मैं...
बुद्धू भी हूँ मैं...
वरना...
रेलवे-स्टेशन
और मंदिर छोड़कर...
कटोरा लिए हाथमें...
यहाँ क्यों भटकता...
सूनी सड़क पर...
वह साइकिल वाला...
कमबख्त...
फिर आया...
छिना कटोरा मेरा...
फिर हुआ नज़रों से ओझल...
अब मैं बैठा...
सिर पकड़ा...
जार, जार, रोया...
सूनी सड़क पर...
अब बिना कटोरे...
भिखारी!
कौन कहेगा मुझे...
कौन देगा भीख...
भूखा ही मर जाऊँगा...
राम तेरी माया...
अब समझ में आया.....
आंसू बहाता ,
जा रहा हूँ मैं...
सूनी सड़क पर....
...भाई साहब रोए जा रहे थे...शायद वह अपने आप को वही कविता वाला भिखारी ही समझ रहे थे!... कुछ लोग रोने में उनका साथ दे रहे थे!... माहौल गंभीर हो गया था... कि मैंने चुटकी ली....
" भाई साहब मैंने कहा था न कि रोने वाले के साथ भी लोग रोते है?"
...अब भाई साहब मेरी तरफ सरके...वे भिखारी के चोले से बाहर आ गए और फिर एक बार मेरे कंधे पर हाथ रखा!... मैंने फिर उनका हाथ झटक दिया...क्यों कि उनकी श्रीमती आँखे लाल किए बिलकुल सामने खड़ी थी!
...एक जमावड़ा था... किसी लड़की की एंगेजमेंट किसी लडके से होने जा रही थी... हम भी उस जमावड़े में आमंत्रित थे!....खाने-पीने के साथ बातों का दौर भी चल रहा था!... बात हंसने और रोने के बारे में चल पड़ी!...किसी भाईसाहब ने कहा..'अजी , हंसने वाले के साथ सब हंसते है..लेकिन रोने वाले के साथ कोई नहीं रोता!' ...भाई साहब का साथ देते हुए दूसरे भाई साहब और बहनजी ने 'हाँ जी!' ..'हाँ जी' ..कहना शुरू कर दिया! इस पर हमें क्रोध आया!...क्यों कि ऐसा कहते हुए उन भाई साहब ने हमारे कंधे पर अपना हाथ रखा दिया ! हमने उनका हाथ पकड़ कर हटाते हुए कहा..." ऐसा कुछ नहीं है...रोने वालों के साथ रोने वाले भी बहुतेरे होते है!"
इस पर भाई साहब अपनी बात पर अड़ गए ' रोने वालों के साथ कोई नहीं रोता!'
"...नहीं जी ऐसा थोड़े ही होता है?... आप रो कर तो देखिएं!..लोग आपके साथ रोना शुरू कर देंगे! ' हमने भाईसाहब की बात काटने के लिए ऐसा कहा!
" वैसे आप रोए कब थे... " हमने चुटकी ली!
' भला मैं क्यों रोने लगा?... मुझे तो रोना आता ही नहीं है .. मैं बस एक बार रोया था !" कहतें हुए भाई साहब ने फिर मेरे कंधे पर हाथ रखा...फिर मैंने उनका हाथ झटक दिया... लेकिन एकदम से भाई साहब चिल्लाएं.... "ओये!...मर गया रे !"... मैंने देख ही लिया की भाई साहब की भारी भरख़म श्रीमती ने उनका वही हाथ जोर से मरोड़ा था!
... अब सभी लोगों का ध्यान इस तरफ था... कि यहाँ क्या हुआ!
...भाई साहब... 'कुछ नहीं..युंही जरा... हे, हे, हे '... करने पर उतर आए!
" हाँ जी भाईसाहब आप रोएँ कब थे?" अब की बार मैंने फिर पूछा...
" जब मेरे गले में श्रीमती वरमाला डाल रही थी!..तब दहाड़े मार कर रोया था मैं!...लेकिन तब लोगों ने जोर जोर से हँसना शुरू किया था जी...रोया तो कोई नहीं था! " पत्नी की तरफ देखते हुए भाईसाहब बोले..इस समय पत्नी जरा दूर खड़ी थी!... नहीं तो फिर उनके चिल्लाने की आवाज दुगुनी रफ्तार से आती!
" भाई साहब रोने वाले के साथ रोने वालों को हम फिर कभी ढूंढेंगे.... अभी आप अपनी कोई ताजा कविता ही सुना दीजिए!".....भीड़ में से कोई बोला!
भाई साहब अपने आप बहुत उच्च कोटी का कवि समझतें है, यह मुझे मालूम था!... मैंने भी आँखे मटकाकर कहा ' सुनाइए न!' ....और भाई साहब की बांछे खिल गई!
..." सुनिए, सुनिए..मेरी बिलकुल ताजा कविता.... आप को अंदर तक हिला कर रख देगी ... कविता का शीर्षक है.....' सूनी सड़क पर...."
.....और वे अपनी रोत्तल आवाज में कविता सुनाने लग गए...उनकी पत्नी फ़ौरन वहां से दफा हो गई .... शायद पत्नी को भगाने के लिए वह हंमेशा यही नुस्खा इस्तेमाल करतें होंगे!
रफ्ता, रफ्ता...
एक साइकिल...
सड़क पर...
जाती हुई...
मेरी नज़रों से...
हुई ओझल...
क्यों कि मैं....
उस समय ...
jaa रहा था....
बिलकुल अकेला...
और पैदल...
सूनी सड़क पर...
मेरे सामने से...
तेज रफ़्तार...
लाल रंग की कार...
गुजर गई...
मुझे धक्का दे कर...
गिरा दिया...
सूनी सड़क पर....
मैं गिरा...
मैं उठा,
मैं खड़ा हुआ...
मैंने झाडे कपडे....
करता और क्या...
सूनी सड़क पर....
मुझे लगा...
जनम जनम से....
भिखारी हूँ मैं...
बुद्धू भी हूँ मैं...
वरना...
रेलवे-स्टेशन
और मंदिर छोड़कर...
कटोरा लिए हाथमें...
यहाँ क्यों भटकता...
सूनी सड़क पर...
वह साइकिल वाला...
कमबख्त...
फिर आया...
छिना कटोरा मेरा...
फिर हुआ नज़रों से ओझल...
अब मैं बैठा...
सिर पकड़ा...
जार, जार, रोया...
सूनी सड़क पर...
अब बिना कटोरे...
भिखारी!
कौन कहेगा मुझे...
कौन देगा भीख...
भूखा ही मर जाऊँगा...
राम तेरी माया...
अब समझ में आया.....
आंसू बहाता ,
जा रहा हूँ मैं...
सूनी सड़क पर....
...भाई साहब रोए जा रहे थे...शायद वह अपने आप को वही कविता वाला भिखारी ही समझ रहे थे!... कुछ लोग रोने में उनका साथ दे रहे थे!... माहौल गंभीर हो गया था... कि मैंने चुटकी ली....
" भाई साहब मैंने कहा था न कि रोने वाले के साथ भी लोग रोते है?"
...अब भाई साहब मेरी तरफ सरके...वे भिखारी के चोले से बाहर आ गए और फिर एक बार मेरे कंधे पर हाथ रखा!... मैंने फिर उनका हाथ झटक दिया...क्यों कि उनकी श्रीमती आँखे लाल किए बिलकुल सामने खड़ी थी!
Monday, 14 June 2010
बड़ी उम्र में मातृत्व!
स्त्रियों पर अत्याचार इस ढंग से भी ज़ारी है..
क्या कहने!...आज ही सुबह अखबार में पढ़ा...हिसार के सातरोड़ क्षेत्र में रहने वाली 66 वर्षीया भतेरी देवी ने तीन बच्चों को ... तिडवा ...बच्चों को जन्म दिया! अखबार के लिए भले ही यह खबर सनसनी जगाने वाली हो!... लेकिन एक स्त्री होने के नाते मुझे यह खबर विचलित करने के लिए पर्याप्त है!
...अब देखिए!... इसी अखबार में लिखा हुआ है कि भतेरी देवी को संतान प्राप्ति शादी के बाद कुछ वर्षों तक न होने की वजह से इनके पतिदेव ने दूसरी शादी रचाई... दूसरी पत्नी को भी संतान न होने के हालात में इस पतिदेव ने तीसरी शादी रचाई... नतीज़ा फिरभी शून्य रहा !.... इसके बाद ये हुआ कि इस पति महाशय की बाद की दोनों पत्नियां इनसे अलग हो गई!... और पहली पत्नी भतेरी देवी इनके साथ रहने लगी!... यह भी हो सकता है कि अब बुढ़ापा कैसे कटेगा सोच कर ही पतिदेव ने पहली पत्नी के साथ रहना शुरू कर दिया!...
...अब 66 साल के पति- पत्नी संतान के लिए कितने आशान्वित हो सकते है? ...फिरभी देखिये भतेरी देवी का इलाज चलता रहा और नैशनल फर्टिलिटी के डॉ अनुराग मिश्र ने उन्हें इस उम्र में मातृत्व दिलाया!
.... अब इस उम्र में तीन नवजात बच्चों की ...दो बेटे और एक बेटी की ...जिम्मेदारी भतेरी देवी कैसे उठा सकती है?.... उसका शरीर क्या इस उम्र के मातृत्व के लिए तैयार हो सकता है?... उसके पतिदेव तो चलिए इस उम्र में पिता बनकर ठाठ से घुम रहे है!... क्या इस उम्रमें पिता बनने में उन्हें कोई शारीरिक कष्ट हुआ या आगे होने वाला है?... भतेरी देवी के लिए बच्चों के जन्म से ले कर... आगे भी शारीरिक कष्टों की कमी नहीं है! ... इनके पतिदेव ने क्या यह सब सोचा?
... और भी इसी सन्दर्भ में एक उदाहरण है.... जींद की 70 वर्षिया राजोदेवी ने भी इसी सेंटर से , इस उम्र में मातृत्व प्राप्त किया!....
ऐसी खबरें अखबार वाले और असंभव को संभव बनाने वाले डॉक्टरों के लिए गर्व से सिर ऊँचा करने वाली है!... लेकिन उन स्त्रियों के बारे में भी तो सोचना चाहिए जिन्हें इतनी बड़ी उम्र में माताएं बनने के लिए मजबूर किया जाता है!.... मेरी निजी राय है कि बड़ी उम्र में भी मातृत्व अगर प्रदान करना हो तो भी... स्त्री की उम्र 50से ज्यादा न हो इस बात का ख़ास ध्यान रखा जाना चाहिए और यह नेक काम एक डॉक्टर ही कर सकता है!... स्त्रियों पर इस प्रकार से होनेवाला अत्याचार रोका जा सकता है!
क्या कहने!...आज ही सुबह अखबार में पढ़ा...हिसार के सातरोड़ क्षेत्र में रहने वाली 66 वर्षीया भतेरी देवी ने तीन बच्चों को ... तिडवा ...बच्चों को जन्म दिया! अखबार के लिए भले ही यह खबर सनसनी जगाने वाली हो!... लेकिन एक स्त्री होने के नाते मुझे यह खबर विचलित करने के लिए पर्याप्त है!
...अब देखिए!... इसी अखबार में लिखा हुआ है कि भतेरी देवी को संतान प्राप्ति शादी के बाद कुछ वर्षों तक न होने की वजह से इनके पतिदेव ने दूसरी शादी रचाई... दूसरी पत्नी को भी संतान न होने के हालात में इस पतिदेव ने तीसरी शादी रचाई... नतीज़ा फिरभी शून्य रहा !.... इसके बाद ये हुआ कि इस पति महाशय की बाद की दोनों पत्नियां इनसे अलग हो गई!... और पहली पत्नी भतेरी देवी इनके साथ रहने लगी!... यह भी हो सकता है कि अब बुढ़ापा कैसे कटेगा सोच कर ही पतिदेव ने पहली पत्नी के साथ रहना शुरू कर दिया!...
...अब 66 साल के पति- पत्नी संतान के लिए कितने आशान्वित हो सकते है? ...फिरभी देखिये भतेरी देवी का इलाज चलता रहा और नैशनल फर्टिलिटी के डॉ अनुराग मिश्र ने उन्हें इस उम्र में मातृत्व दिलाया!
.... अब इस उम्र में तीन नवजात बच्चों की ...दो बेटे और एक बेटी की ...जिम्मेदारी भतेरी देवी कैसे उठा सकती है?.... उसका शरीर क्या इस उम्र के मातृत्व के लिए तैयार हो सकता है?... उसके पतिदेव तो चलिए इस उम्र में पिता बनकर ठाठ से घुम रहे है!... क्या इस उम्रमें पिता बनने में उन्हें कोई शारीरिक कष्ट हुआ या आगे होने वाला है?... भतेरी देवी के लिए बच्चों के जन्म से ले कर... आगे भी शारीरिक कष्टों की कमी नहीं है! ... इनके पतिदेव ने क्या यह सब सोचा?
... और भी इसी सन्दर्भ में एक उदाहरण है.... जींद की 70 वर्षिया राजोदेवी ने भी इसी सेंटर से , इस उम्र में मातृत्व प्राप्त किया!....
ऐसी खबरें अखबार वाले और असंभव को संभव बनाने वाले डॉक्टरों के लिए गर्व से सिर ऊँचा करने वाली है!... लेकिन उन स्त्रियों के बारे में भी तो सोचना चाहिए जिन्हें इतनी बड़ी उम्र में माताएं बनने के लिए मजबूर किया जाता है!.... मेरी निजी राय है कि बड़ी उम्र में भी मातृत्व अगर प्रदान करना हो तो भी... स्त्री की उम्र 50से ज्यादा न हो इस बात का ख़ास ध्यान रखा जाना चाहिए और यह नेक काम एक डॉक्टर ही कर सकता है!... स्त्रियों पर इस प्रकार से होनेवाला अत्याचार रोका जा सकता है!
Tuesday, 8 June 2010
विज्ञापनों की भी अहमियत होती है!
मेरे ब्लॉग पर...विज्ञापन अंगडाइयाँ ले रहे है!
जी हाँ!... मैंने अपने ब्लॉग पर विज्ञापनों के लिए दरवाजे खोले हुए है!...
मुझे किसीने ई-मेल भेज कर जानना चाहा कि...." क्या आपकी धन कमाने की मनसा है, जो आपने विज्ञापनों को अपने ब्लॉग पर पनाह दी हुई है?"
.... उन महाशय को अलग से जवाब मैं दे सकती थी...लेकिन मैंने सोचा कि और भी कई साथी ब्लोगर्स यही सोच रहे होंगे ...लेकिन पूछने से कतरा रहे होंगे!...तो चलिए ब्लॉग लिख कर ही इसका खुलासा किया जाए!...
... सबसे पहली बात यह कि जो ब्लोगर्स कई सालों से हिंदी में ब्लॉग्स लिख रहे है वे अपना अनुभव बताते हुए कहते है कि ' हिंदी ब्लॉग्स द्वारा धन कमाना...रेत में से तेल निकालने के बराबर है! अपने पास रोजी-रोटी का अच्छा इंतजाम हो; तभी हिंदी ब्लौगिंग की तरफ मुड़ना चाहिए!... कमाई करने का इरादा हो तो, इंग्लिश में ब्लॉग लिखकर कमाई की जा सकती है! '
.... विज्ञापनों द्वारा भी कमाई करने के लिए फिरंगी भाषा का चोला ....मन माने या न माने...ओढ़ना पड़ता है!
... अब मेरे जैसे हिंदी की दिन-रात पूजा करने वाले ब्लॉगर्स ; फिरंगी भाषा का टिका तो माथे पर लगाएंगे नहीं!... कमाई करने की सोचना तो बहुत दूर की बात है!... रही विज्ञापनों को अपने ब्लॉग पर चिपकाने की बात!... तो मैं महज ब्लॉग की सजावट के लिए विज्ञापनों का इस्तेमाल कर रही हूँ! .... वैसे विज्ञापनों को मैं बुरा नहीं मानती!...किसी को कोई खरीदारी करनी हो तो वह जानकारी कहांसे हासिल करेगा?... या किसी को कोई चीज बेचनी हो तो वह क्या करेगा?... आज के जमाने में विज्ञापन की बहुत अहमियत है!
.... मुझे अब तक विज्ञापनों से कोई कमाई हुई नही है... न ही होगी!... लेकिन विज्ञापनों को मैं पनाह देती रहूंगी!... मैं पेशे से आयुर्वेदिक डॉक्टर हूँ ..और अब सिर्फ और सिर्फ हिंदी लेखन कार्य में व्यस्त हूँ! ...मेरा शौक हिंदी लेखन की प्रतियोगिताओं में भाग लेना भी है! अपनी चल-अचल संपत्ति के बारे में या विदेश यात्राओं के बारे में चर्चा करने की ये जगह नहीं है!... इसे अन्यथा भी लिया जा सकता है!
.... फिर एक बार कहने की गुस्ताखी करती हूँ की अपने ब्लॉग पर विज्ञापन मैं सजावट के लिए दे रही हूँ! ... मेरी कम्प्यूटर संबधित जानकारी मर्यादित है; फोटो या अन्य सामगी का सजावट के लिए इस्तेमाल करना मेरे बस की बात नहीं है!...
....हो सकता है बहुतसे ब्लॉगर्स मेरी ही तरह सोचते हुए विज्ञापनों को अपने ब्लॉग पर दे रहे हो!
जी हाँ!... मैंने अपने ब्लॉग पर विज्ञापनों के लिए दरवाजे खोले हुए है!...
मुझे किसीने ई-मेल भेज कर जानना चाहा कि...." क्या आपकी धन कमाने की मनसा है, जो आपने विज्ञापनों को अपने ब्लॉग पर पनाह दी हुई है?"
.... उन महाशय को अलग से जवाब मैं दे सकती थी...लेकिन मैंने सोचा कि और भी कई साथी ब्लोगर्स यही सोच रहे होंगे ...लेकिन पूछने से कतरा रहे होंगे!...तो चलिए ब्लॉग लिख कर ही इसका खुलासा किया जाए!...
... सबसे पहली बात यह कि जो ब्लोगर्स कई सालों से हिंदी में ब्लॉग्स लिख रहे है वे अपना अनुभव बताते हुए कहते है कि ' हिंदी ब्लॉग्स द्वारा धन कमाना...रेत में से तेल निकालने के बराबर है! अपने पास रोजी-रोटी का अच्छा इंतजाम हो; तभी हिंदी ब्लौगिंग की तरफ मुड़ना चाहिए!... कमाई करने का इरादा हो तो, इंग्लिश में ब्लॉग लिखकर कमाई की जा सकती है! '
.... विज्ञापनों द्वारा भी कमाई करने के लिए फिरंगी भाषा का चोला ....मन माने या न माने...ओढ़ना पड़ता है!
... अब मेरे जैसे हिंदी की दिन-रात पूजा करने वाले ब्लॉगर्स ; फिरंगी भाषा का टिका तो माथे पर लगाएंगे नहीं!... कमाई करने की सोचना तो बहुत दूर की बात है!... रही विज्ञापनों को अपने ब्लॉग पर चिपकाने की बात!... तो मैं महज ब्लॉग की सजावट के लिए विज्ञापनों का इस्तेमाल कर रही हूँ! .... वैसे विज्ञापनों को मैं बुरा नहीं मानती!...किसी को कोई खरीदारी करनी हो तो वह जानकारी कहांसे हासिल करेगा?... या किसी को कोई चीज बेचनी हो तो वह क्या करेगा?... आज के जमाने में विज्ञापन की बहुत अहमियत है!
.... मुझे अब तक विज्ञापनों से कोई कमाई हुई नही है... न ही होगी!... लेकिन विज्ञापनों को मैं पनाह देती रहूंगी!... मैं पेशे से आयुर्वेदिक डॉक्टर हूँ ..और अब सिर्फ और सिर्फ हिंदी लेखन कार्य में व्यस्त हूँ! ...मेरा शौक हिंदी लेखन की प्रतियोगिताओं में भाग लेना भी है! अपनी चल-अचल संपत्ति के बारे में या विदेश यात्राओं के बारे में चर्चा करने की ये जगह नहीं है!... इसे अन्यथा भी लिया जा सकता है!
.... फिर एक बार कहने की गुस्ताखी करती हूँ की अपने ब्लॉग पर विज्ञापन मैं सजावट के लिए दे रही हूँ! ... मेरी कम्प्यूटर संबधित जानकारी मर्यादित है; फोटो या अन्य सामगी का सजावट के लिए इस्तेमाल करना मेरे बस की बात नहीं है!...
....हो सकता है बहुतसे ब्लॉगर्स मेरी ही तरह सोचते हुए विज्ञापनों को अपने ब्लॉग पर दे रहे हो!
Wednesday, 28 April 2010
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