हास्य-व्यंग्य ..भाईसाहब को ऑक्टोपस चाहिए....
....क्या है कि भाई साहब अब मेरे पड़ोस में रहने आ गए है... पहले दो गलियाँ छोड़ कर रहा करते थे..मकान भी अपना ही था ....लेकिन उनका अपने किराएदार से झगडा हो गया...उन्हों ने सोचा कि' इतना अच्छा , शरीफ और मोटी रकम किराए के तौर पर देने वाला किरायेदार ...दीया ले कर ढूंढने से शायद मिल भी जाए... लेकिन इतना कष्ट करे कौन?... इससे अच्छा है खुद ही किराए के मकान में शिफ्ट किया जाए!...'
.....मेरी ग्रहदशा उस समय अच्छी नहीं चल रही थी... पड़ोस के मकान से जैसे ही सामान अगले दरवाजे से बाहर जा रहा था...पिछले दरवाजे से भाई साहब का सामान अंदर दाखिल हो रहा था!... यह तो तब पता चला जब अंत में भाई साहब अपनी नेम-प्लेट बाहर टांग रहे थे...और हम पतिदेव के साथ सब्जी खरीदने बाजार जा रहे थे!
"चलो अच्छा ही हुआ कि हम आप के पड़ोस में आ गए!" भाई साहब मेरी तरफ देख कर बोले जो मेरे पतिदेव को जरा भी नहीं सुहाया!
" पता नहीं मैंने सुबह सुबह किसका मुंह देखा था... " पतिदेव दरवाजे पर ताला मढ़ते हुए बोले!
" अजी साहब!... मेरा भी दिन खराब ही रहा... मेरा अपना मकान मुझे खाली करना पड़ा.... मेरे किरायेदार को मैंने अपनी पत्नी के साथ बतियाते हुए रंगे हाथो पकड़ लिया... क्या ज़माना आया है...क्या बताऊ?" ..कहते हुए भाईसाहब मेरे नजदीक आए और मेरे कंधे पर हाथ रखते हुए मेरे पतिदेव को आगे की कहानी सुनाने लगे...
...मैंने घुर कर देखा तो उन्हों ने हाथ हटा लिया और आगे की कहानी अधुरी रह गई!
...और आज तो सुबह सुबह भाई-साहब के शोर- शराबे से ही नींद खुल गई!
हम क्या हुआ..देखने के लिए दरवाजा खोल कर बाहर निकले तो पता चला कि भाईसाहब का झगडा दूधवाले से हो रहा था!
" बड़ा ही बेशर्म है रे तू!.... तूने मेरा हाथ पकड़ा ही क्यों? ... इसका मतलब तू रोज ही मेरी पत्नी का हाथ पकड़ता है?...और क्या क्या करता है रे निर्लज्ज?" भाई साहब चिल्ला चिल्ला कर दूधवाले की खाट खड़ी कर रहे थे!
..हमने और वहां इकठ्ठे हुए दूसरे पड़ोसियोंने देखा कि भाई साहब,.. पत्नी का पीले रंग का लाल फूलों वाला गाउन पहने हुए है... हमारा हंसने का मन भी हुआ लेकिन मामला कुछ गंभीर लगा तो हंसी को अंदर ही समेट लिया!...पूछने पर पता चला कि उनका नाईट-गाउन बारिश कि वजह से सुखा नहीं था सो उन्होंने पत्नी का गाउन पहन लिया था और आज पत्नी की जगह खुद दूध लेने पतीला ले कर दूध वाले के सामने आ गए थे!
...दूधवाला भी गुस्से से लाल पिला हो कर बता रहा था कि " भाई साहब के हाथ से , दूध से भरा पतीला छूटने ही वाला था... इसलिए मैंने आगे बढ़ कर उनका हाथ पकड़ लिया और पतीले को गिरने से बचा लिया!... मैं कसम खाता हूँ अपनी भैस की... एक पैसे का भी झूठ बोला तो मेरी भैस नरक में जाए! "
" सच बोल अबे!... तूने मुझे जनानी समझा था या नहीं?... जनानी समझ कर मेरा हाथ पकड़ा था या नहीं?... " भाई साहब ने आवाज और ऊँची कर दी!
" अँधा हूँ मैं?...मुझे दिखाई नहीं देता....शेर की खाल ओढने से गधा शेर नहीं दिखता!... मैंने जनानी समझ कर नहीं बल्कि भाईसाहब समझकर ही आप का हाथ पकड़ा था!" दूधवाले ने अब मूंछो पर ताव दिया!
" अभी पता चल जाएगा!... अभी इसी जगह दूध का दूध और पानी का पानी हो जाएगा"....कहते हुए भाई साहब जमा हुए हम पड़ोसियों की तरफ घुमे...और ख़ास लहजे में बोले...
" अजी है किसी के पास ऑक्टोपस?... अभी फैसला हो जाएगा...ऑक्टोपस बता देगा कि दूधवाले ने मेरा हाथ जनाना समझ कर पकड़ा था या मर्द समझकर !..."
" ...लेकिन कैसे बताएगा ऑक्टोपस?" मैंने शंका जताई!
" सीधी सी बात है ... ये आपका हाथ है और ये मेरा हाथ है... अगर ऑक्टोपस ने आप के हाथ की तरफ इशारा किया तो समझ लीजिए कि दूधवाले ने मेरा हाथ ...मेरी पत्नी का हाथ समझ कर पकड़ा था...फिर मैं उसकी धुनाई करूँगा .... और अगर ऑक्टोपस ने मेरे हाथ की तरफ इशारा किया तो दूधवाले को राहत मिल सकती है!"
" ये रही आपकी पत्नी..इसका हाथ पकडिये और मेरी पत्नी का छोड़ दीजिये !" मेरे पति अब तक अंदर सो रही भाईसाहब की पत्नी को जगा कर बाहर ले आए !...और " मैं ऑक्टोपस लेने जा रहा हूँ..." कहते हुए चले गए...
...तीन घंटे हो चले है ..लेकिन मेरे पति अब तक ऑक्टोपस ले कर लौटे नहीं है!
15 comments:
अब तो हर मुहल्ले में एक ऑक्टोपस होना चाहिए .. पर क्या सबों को यह वरदान मिला होगा ??
गहरा कटाक्ष...अब एक महल्ले में एक ओक्टोपस होना ही चाहिए :)
जब आक्टोपस मिल जय तो बता देना वैसे अब उसकी सिर्फ ६ महीने ही उम्र बाकि है |अच्छा व्यग्य |
अरे कपुर साहब को क्यो भेज दिया आंकटो पस लेने, मुझे बोले यहां से भेज दुंगा, ओर सिर्फ़ जर्मनी के अकटो पुस ही सच बोलते है जी
बात का बतंगड, भई वाह
आपने भी शाह नवाज़ साहब के ब्लोग टिप्पणी दे मारी कि शर्मा ज़ी ने बेटे बेटी में फ़र्क किया।
बिना शर्माजी की मूल पोस्ट पढे?
बात का बतंगड
हा हा हा एक हमे भी चाहिये अगर मिले तो भेज दें। मस्त पोस्ट। बधाई
ऑक्टोपस की बुकिंग चालू है...सप्लाई का कॉन्ट्रेक्ट जर्मनी में भाटियाजी का है!... आप का ऑर्डर बुक हो गया है निर्मलाजी!.. जैसे ही पहली खेप मेरे यहां पहुंचेगी... आप अपना ओक्टोपस लेने आ जाइएगा!...बहुत बहुत धन्यवाद!
भाटिया जी!...नमस्ते!... आप ही वहां से फिल हाल 50 ओक्टोपस भेज दें!..क्यों कि कपूर साहब ने पता लगाया है कि दिल्ली की मार्किट में डुप्लिकेट माल बिक रहा है!
हा हा हा ... बढ़िया ... ओक्टोपस और हमारा समाज ... दोनों को लपेटे में ले लिए ... बहुत खूब ...
वाह! बहुत ही मज़ेदार!:)
हमारे पास तो है, चाहिए तो चले आइए।
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पॉल बाबा की जादुई शक्ति के राज़।
सावधान, आपकी प्रोफाइल आपके कमेंट्स खा रही है।
सुन्दर रचना, आज ऑक्टोपस की कमी तो हर कोई महसूस कर रहा है
सभी चाहते हैं की काश एक ऑक्टोपस मेरे पास भी होता
सत्यप्रकाश जी!..आप के पोस्ट पर मैने कोमेंट दिया है...लेकिन वह नजर नहीं आ रहा!
अरुणा जी सादर नमस्कार,
आपकी बहुमूल्य प्रतिक्रिया प्राप्त हुई,
बहुत-बहुत धन्यवाद
च्च् अबी तक नही आये ऑक्टोपस लेकर तब तो फैसला कैसे होगा ।
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