Wednesday, 24 December 2008

स्कूल और छुट्टियों का चोली-दामन का साथ

...हाय रे...स्कूल की छुट्टियाँ!(हास्य-व्यंग्य!)



बचपन में जब हम स्कूल में पढ़ा करते थे... तब भी छुट्टियां हमें अच्छी नहीं लगती थी! आज भी अच्छी नहीं लगती!... एक बार पिताजी का तबादला एक छोटेसे गाँव में हुआ था!... पिताजी तो खैर! डॉक्टर थे!... अस्पताल में उनका आना-जाना लगा रहता था;.... लेकिन हम क्या करे?.... हमें तो पढने के लिए स्कूल जाना पड़ता था!...




स्कूल मजेदार था!...उसमें में उतनी ही सुविधाएँ थी; जितनी की छोटेसे गाँव के एक अदद स्कूल में होती है!... धूप की जब बहुतायत होती थी... हमारी क्लास एक घने बरगद के पेड़ के नीचे बैठाई जाती थी... जब ठंड का डंडा लहराता था तब टेंट में सिकुड़कर बैठने की भी सुविधा थी... लेकिन बारिश के मौसम में अक्सर हमें घर जाने के लिए धमकाया जाता था!




....धमकाया इसलिए जाता था, ...क्यों कि हम घर जाने के लिए राजी होते ही नहीं थे!... मास्टरजी से विनती करते थे कि हम पर इतना बड़ा जुल्म ना ढहाया जाये और हमें घर ना भेजा जाये!...हमें स्कूल में ही रहने दीजिए...छुट्टी हमें पसंद नहीं है!... तब स्कूल में पढाने के लिए मास्टरजी ही हुआ करते थे... मैडम का फैशन तो तब मार्किट में नहीं था! .... एक बात हम बताना भूल ही गए कि हमारी क्लास में हमारे समेत तीन लड़कियां और पच्चीस लडके ....जिन्हें विद्यार्थी कहतें है....हुआ करते थे! ..हाँ!..छुट्टी तो किसी को भी पसंद नहीं थी!




...तो हम और हमारे जैसे बहुसंख्य विद्यार्थी घर जाने के लिए राजी नहीं होते थे!... हम तो घर बैठकर होने वाली बोरियत से घबरा जाते थे; जब कि हमारे क्लास-मेट ' घर पर काम करना पडेगा...' की सोच से घबरा कर स्कूल में ही समय गुजारना पसंद करते थे!... कोई गलती से यह न समझ बैठे की हम बहुत ज्यादा पढाकू थे! बारिश के मौसम में, मास्टरजी को घर जाकर मास्टरनी( पत्नी) के हाथ के बने चटपटे पकौडे जो खाने होते थे!... मास्टरजी तो बादल देखकर ही छुट्टी डिक्लेर कर देते थे और सबसे पहले मास्टरजी ही स्कूल से बाहर निकलते थे!...उन्हें छुट्टियों से बड़ा ही लगाव था! 

स्कूल में एक और भी मास्टरजी थे...जो हेड-मास्टर  कहलातें थे!... वे छुट्टी पर ही रहते थे!...उनके दर्शन स्कूल में 26 जनवरी और 15 अगस्त वाले दिन ही होते थे... अन्यथा वे सरपंच होने के नाते, गांववालों में आपसी झगडे करवाने और फ़िर उन्हें निपटाने में लिप्त रहतें थे!... स्कूल में होने वाली धान्दली से उन्हें कोई लेना देना नहीं था!





...तो गाँव के स्कूल के वे सुनहरे दिन याद करके हम आज भी तरोताजा हो लेते है!... शहरों के अंग्रेजी पढाने वाले ,पब्लिक स्कूल वाले विद्यार्थियों की बुरी हालत आज हम देख ही रहे है!... बेचारे छुट्टी के दिन भी 'ट्यूशन' नाम की राक्षसनी के हाथ से बच नहीं सकतें!




.... वैसे छुट्टियों की कमी तो सरकार ने भी कभी होने नहीं दी!... जितनी छुट्टियाँ स्कूलों के लिए बहाल की जाती है, उतनी किसी और डिपार्टमेंट के लिए उपलब्ध होने का रेकोर्ड हमारे पास नहीं है!... अभी दिवाली गई, ये देखो ईद गई...ये दशहरा आया...ये राम जन्म..ये कृष्ण जन्म...ये माता की नवरात्री.. अब क्रिसमस और फ़िर नया साल!...बीच से शनिवार और रविवार भी तो है... अपरंपार छुट्टियाँ !... किसी को भली लगे या बुरी!...हाय रे छुट्टियाँ!



Sunday, 14 December 2008

तारे जमीं पर मेरी नज़र से

तारे जमीं पर... मेरी नज़र से !



हम सभी फिल्में देखतें है!... कोई ज्यादा , तो कोई कम!... देखने का नजरियाँ भी सभी का अलग अलग ही होता है!... तभी तो कोई फ़िल्म किसी एक व्यक्ति को अच्छी लगाती है ; तो दूसरे व्यक्ति को बोर लगती है; तो तीसरे व्यक्ति को सो सो लगती है!.... कुछ फिल्में ऐसी भी होती है जो बच्चों से लेकर बडो तक सभी को पसंद आती है!... ऐसी फिल्में 'सदाबहार ' फिल्में कहलाती है... बार बार देखने पर भी, एक बार और देखने के लिए मन ललचाता है!


ऐसी ही एक फ़िल्म ' तारे जमीं पर...' मैंने देखी! ...हालाकि यह फ़िल्म लगभग एक साल पहले रिलीज हुई है ...तो इसे अब पुरानी भी कह सकतें है... लेकिन मुझे इस फ़िल्म को देखने का मौका अब हाथ लगा!... वैसे मैं फिल्में कम देखती हूँ; लेकिन जब तक नई पेशकश गिनी जाती है तब तक ही देखती हूँ!... बाद में इंटरेस्ट कम हो जाता है!...खैर!


... तो मैंने 'तारे जमीं पर ...' देखी और मुझे लगा कि अगर यह फ़िल्म देखनी रह जाती तो मैं एक अच्छी और अलग किस्म की फ़िल्म देखने से वंचित रह जाती! ... इस फ़िल्म के बारे में मैंने अख़बार और पत्रिकाओं में बहुत कुछ पढा था!... टी.वी.पर बहुत कुछ सुना भी था... सभी ने इस फ़िल्म के बारे में जी भर कर प्रसंसनीय उदगार लिखे और कहे थे!...


... मैंने जब मौका मिला तो फ़िल्म अपनी नज़र से देखी.... इस फ़िल्म के बारे में पढ़ा और सुना हुआ सबकुछ पहले ही अपने दिमाग़ से बाहर निकाल दिया था!... मैंने पूरी फ़िल्म देखी!... और इस नतीजे पर पहुँची की फ़िल्म शिक्षाप्रद है!... असामान्य बुद्धि और चाल-चलन के बच्चो के साथ, माता-पिता और शिक्षकों को किस तरह से पेश आना चाहिए... यही इस फ़िल्म के माध्यम से बताया गया है!... यही सब विस्तार से अनेक लेखकों और पत्रकारों द्बारा फ़िल्म की समीक्षामें लिखा और कहा भी गया है!


अब मैंने एक अलग चीज महसूस की; और देखी कि.... इस फ़िल्म का बाल कलाकार दर्शिल याने कि फ़िल्म का हीरो ईशान अवस्थी, हम सभी के अदंर छिपा हुआ है!... क्या हम भी ईशान की तरह नहीं है?... मिटटी खोदते हुए मजदूर की शर्ट का टूटा हुआ बटन हमारा भी ध्यान खिंचता है!... पैडल रिक्शा-चालक के हाथ की फूली हुई नसे हमारा ध्यान खिंचती है.... भेल-पुरी वाला और बर्फ के गोले बनाने वाले तेजी से चल रहे हाथ हमें भी अच्छे लगते है!.... ऐसी बहुतसी चीजे है, जो हम ईशान की तरह ही उत्सुकता से ताकते रहते है!


.... आमिर खान निशाना साधने में फ़िर एक बार कामियाब हुए है....और इस फ़िल्म को हिट बनाने में यही नुस्खा सबसे ज्यादा काम आया है!... हम ईशान में अपनी छबि देखते है!... मैंने सही कहा या ग़लत?

Sunday, 23 November 2008

वधू चाहियें तो कैसी चाहियें

'वधू चाहिए....' तो कैसी चाहिए?


शादी के 'वधू चाहिए' विज्ञापनों पर आप भी नजर डालते होंगे और मैं भी डालती हूँ.... ऐसे विज्ञापनों से समाचार-पत्र और पत्रिकाएँ, जीवनसाथी और शादी.कॉम जैसी वेब-साइट्स.... भरे पडे है!.... लड़की कुछ ऐसी चाहिए होती है....सुशील , उच्चशिक्षित, संस्कारी, लम्बी, पतली, बड़ों का आदर करने वाली.... दुनियाभर के सभी अच्छे गुणों से युक्त चाहिए होती है!... एक अहम् बात तो यह कि वैसे साथ साथ कामकाजी हो तो सोने पे सुहागा।!..... वैसे साथ साथ उसका घरेलु होना भी जरुरी है !.... लो ....कर लो बात!....ये तो ऐसा है कि लड़की खुलकर हँसे भी ....लेकिन हंसने की आवाज नहीं आनी चाहिए! लड़की को अपनी बात सामने रखने की पुरी स्वतंत्रता है... लेकिन वह अपना मुंह खोल नहीं सकती!...वह चाहे तो अपनी मरजी से लम्बी दौड़ लगा सकती है.... लेकिन शर्त यह कि वह अपनी जगह से हिल नहीं सकती!


कामकाजी लड़कियों की मांग कुछ ज्यादा ही है!.... वैसे महंगाई के जमाने में ये मांग सही भी है....लेकिन!.... यहाँ भी देखिए कि 'लेकिन' रास्ता रोके खड़ा है !.... अब वर पक्ष का कहना है कि लडकी सुशील होनी चाहिए!... अब लड़की अगर अपने कामकाज के क्षेत्र से जुड़े पुरुषों से हँसी मजाक कर लेती है, या किसी के साथ कभी कहीं आती जाती है तो उसकी सुशीलता पर प्रश्नचिंह लगाने से ससुराल वाले चुकते नहीं है!.... तो विज्ञापन में उसकी कमाई पर नजर क्यों रखतें है?


लड़की का कामकाजी होते हुए भी घरेलु होना जरुरी है.... मतलब कि घर के कामों में दक्ष भी हो और करे भी!... चूल्हा-चौका, ससुरालवालों की सेवा , मेहमानों की आवभगत....इतना सबकुछ संभालकर ही वह कामकाज करें!....इसका क्या मतलब? ....इसका मतलब कि वह घर और बाहर....दोनों क्षेत्रों की जिम्मेदारियां सभालें।...ऐसा क्यों?


क्या आज के युवा इतनी संकुचित मानसिकता से भरपूर है?... अगर नही है, तो 'वधू चाहिए' के ऐसे वाहियात विज्ञापनों पर रोक लगा दें।... और विज्ञापन देने से पहले यह तय कर ले कि वधू कामकाजी चाहिए या घरेलु चाहिए।... दो नावों में पैर रखकर यात्रा करने की तमन्ना रखने वालों का हश्र् क्या होता है.....ये हमें बताने की जरुरत नहीं है। लड़की का सुंदर, सुशिल, संस्कारी वगैरा वगैरा होना क्या होता है.... इसकी व्याख्या पहले तय करें!

Sunday, 16 November 2008

धड़ाम से गिर गया शेर

धड़ाम से गिर गया शेर.... आपने आवाज सुनी?


मैंने तो सुनी! ... इंटरनेशनल धमाका था! ... मुझे लगता है, बहरों को भी सुनाई पड़ा होगा! चारों ओर हाहाकार मच गया!... जैसे सुनामी आ गई; जैसे बम-ब्लास्ट हुआ; जैसे भूचाल आ गया, जैसे डमरुवाले बाबा ने तांडव शुरू किया; जैसे पृथ्वी से मंगल आ कर टकराया!.... कोई कुछ समझ बैठा, तो कोई कुछ!


सुननेमें यह भी आया कि कुछ लोगों को बहुत खुशी हुई.... इसलिए कि उन्होंने शेर मार्किट में टके लगाए नहीं थे!... हो सकता है कि उनके पास लगाने के लिए थे ही नहीं ....लेकिन यह तो अंदर की बात है!.... यह लोग लड्डू-पेढे बाट्तें देखे गए!... दूर क्या जाना.... हमारे पड़ोसी ही -शायद पहली बार - हमारे यहाँ मिठाई का डिब्बा लेकर पधारें!... बहाना तो पप्पू के पास होने का था!.... जब कि हम जानतें है कि पप्पू ने हाल ही में कोई परीक्षा नहीं दी है!


...तो शेर गिर गया !.... कुछ लोगों ने बहती गंगा में नहाना मुनासिब समझा! .....जिन लोगों के 20से 50 हजार रुपये शेरने निगले हुए थे; वे बोल रहे थे कि वे 50लाख गवां बैठे !.... एक शेर मार्किट के पुराने खिलाडी .... जिनको हम जानतें है और मानतें है कि .... उनके 20लाख जरुर शेर निगल गया होगा!.... वे लोगों को कहतें फ़िर रहे है कि उन्हें 2 करोड़ का फटका लगा!....अब ऐसे में कई लोग अपने आप को मालदार साबित करने में लगे हुए है ; तो हम क्या करें?


... कुछ कमजोर दिल के लोग .... इतना बड़ा हादसा सहन नहीं कर पाने की वजह से बेहाल हो गए और समाज से कटकर रह गए है!.... कुछेक लोगों की आत्महत्या करने की खबरें भी आ रही है... उनके लिए हमें बेहद अफसोस है!.... काश कि वे इतना बड़ा कदम न उठातें!


... यह तो इंटरनेशनल धमाका है.... शेर के गिरने से जंगल में ....याने कि मार्किट में ..... हायतौबा मची हुई है!... सभी उद्योग-धंदों पर मंदी के बादल छाये हुए है!.... हमें तो दुःख इस बात का है कि .... टी.वी। पर से विज्ञापनों की भीड़ छट गई है!


... तो देखा?...शेर ने गिरकर भी हमारा कुछ नहीं बिगाडा,... फ़िर भी हम कितने दुखी है?....उम्मीद पर दुनिया कायम है!.... हम उम्मीद करतें है कि शेर फ़िर से पेड़ की चोटी पर नजर आए!

Monday, 10 November 2008

चीनी के बदले नमक

'चीनी कम' देखी और हमारा माथा ठनका....


फ़िल्म 'चीनी कम ' नई रिलीज हुई फ़िल्म नहीं है... लेकिन किसी न कीसी वजह से हमारा देखना रह जाता था... इस फ़िल्म के बारे में भी बहुत से लोगों से बहुत कुछ सुना था!.... कल हमारा इन्टरनेट काम नहीं कर रहा था... सो हम टी.वी की तरफ मुड़ गए... चैनल, एक के बाद दूसरा बदलते बदलते हम 'चीनी कम ' फ़िल्म पर रुक गए और पुरी फ़िल्म आराम से देख डाली


... अमिताभ बच्चन और तब्बू की प्रेम कहानी है... लेकिन उम्रका फासला देखा तो , पहले हम समझ ही नहीं पाए कि इस फ़िल्म से कौन सी शिक्षा समाज को दी जा रही है?...चलो शिक्षा न सही; मनोरंजन का उद्देश्य भी यहां नजर नहीं आया... पिछले पोस्ट में हमने 'दूसरी औरत की वजह से उठती समस्या ' पर सवाल उठाया था; ( एक ब्लॉगर साहब ने इस पर बवाल भी उठाया।)..................लेकिन इस फ़िल्म में प्रणय त्रिकोण भी नहीं था!... हीरो और हिरोइन का ही बोलबाला था!... कहानी लन्दन में घटित हो रही थी.... जैसे कि विदेशी प्रृष्ठभूमि का आंचल हर फिल्म में थामा जाता है।

... 64 साल के बच्चन और 34 साल की तब्बू का मिलाना-जुलना, दोनों के बीच प्यार का पनपना और शादी के मंडप तक पहुंचना... शादी भी कर लेना और सुखी वैवाहिक जीवन का आनद भी उठाना.... यह सब एक फ़िल्म में ही हो सकता है... फ़िल्म के बाहर नहीं


.... अमिताभ बच्चन का एक कैंसर पीड़ित बच्ची से मित्रता, हमदर्दी और लगाव .... कहानी का यह हिस्सा ह्रदय को छू लेता है.... तब्बू के साथ रोमांस करना, तब्बू के पिता परेश रावल के विरोध की परवा न करना, अंत में अपनी मनमानी करते हुए शादी कर लेना... समाज को यह फ़िल्म कौनसी दिशा में ले जाना चाहती है?


... कुछ दशकों पहले, समाज में इसी बात का विरोध चलता आ रहा था.... 'बड़ी उम्र के पुरूष अपने से बहुत छोटी उम्र की लड़कियों से शादी न करें, इसके लिए लोगों को समझाया जा रहा था... लोग समझ भी चुके थे; ऐसी शादियाँ होनी लगभग बंद भी हो चुकी थी... तो फ़िर पानी का बहाव ये फ़िल्म वाले, उलटी दिशामें क्यों मोड़ना चाहते है?... क्या फिल्मों के लिए कहानियों का अकाल पड़ गया है, जो ऐसी कहानियाँ लिखी जा रही है? ....ऐसी कहानियाँ जो समाज की मानसिकता को बिगाड़ कर रख दें?


माना कि अमिताभ बच्चन और तब्बू मंजे हुए कलाकर है; लेकिन इनकी कला का इस्तेमाल समाज को सही दिशा में मोडने के लिए होना चाहिए... न कि गलत दिशा में मोडने के लिए।

Monday, 3 November 2008

किस्सा दूसरी औरत का

किस्सा दूसरी औरत का !



यहाँ महिलाओं की कई समस्याओं में से एक समस्या पर हम प्रकाश फेंकने की कोशिश कर रहे है!... अगर हमारी बात गले उतारने लायक या गांठ में बांधने लायक न लगे तो.... इसमें हम कुछ नहीं कर सकतें!... तो समझ लीजिए कि, ये समस्या सदियोंसे चलती आ रही है!... मुगले आज़म के जमाने में भी थी; पं जवाहरलाल जी के जमाने में भी थी; अमिताभ बच्चन- जया भादुडी के जमाने में भी थी;.....और आज भी ज्यूँ की त्यूं है!... ये समस्या दूसरी औरत की है!... बतादें कि इस पोस्ट को पुरूष भी पढ़ सकतें है! वरना बाद में कहेंगे कि.... बताया नहीं तो हम क्यों पढ़तें?



...तो दूसरी औरत का, पति के साथ का चक्कर सहन न करने वाली एक महिला ने खुदकुशी करने की ख़बर अख़बार में पढ़ी और हमारी आँखे नम हो उठी... दिल में एक टीस सी भी उठी और हमने तुंरत कलम उठा ली!


..... सोच विचार के बाद हम इस निष्कर्ष पर पहुंचें। ... वैसे सोच-विचार हम ज्यादा नहीं करते।

1. दूसरी औरत के साथ के पति के संबंध के बारे में ... किसी के कहने पर एकदम से विश्वास न करें !... हो सकता है कि कहनेवाले को कोई ग़लत-फहमी हो गई हो ...या मजे लेने के लिए उसने मन-गढ़ंत कहानी बना कर आपको सुनाई हो!

2.अगर पता भी चल चुका कि पति के जीवन में दूसरी औरत प्रवेश कर चुकी है; तो भी और धीरज से काम लेते हुए सर्व प्रथम तो पति के समक्ष यह जाहिर न होने दें कि आपको पता चल चल चुका है... क्यों कि इससे उस औरत का पति से मिलना-जुलना और भी बढ सकता है... शर्म की एक दीवार जो पति-पत्नी के बीच आवश्यक है; वह ढह सकती है।


3. पता चलने के बाद उस दूसरी औरत के साथ संबंध इतने प्रगाढ बनाएं कि उसकी अच्छाई के साथ साथ उसकी बुराइयां भी पति को नजर आएं... दूसरी औरत के साथ पैसे और दूसरी चिज-वस्तुओं का आदान-प्रदान बढाने से भी वैमनस्य पैदा हो जाता है।... 'पैसों का लेन -देन कलह पैदा करता है'... इस बात को अमल में लाए।


4.दूसरी औरत की बुराइयां पति के सामने करने से, पति की उसकी तरफ और ज्यादा झुकने की संभावना रहती है... अतः चालाकी से और ठंडे दिमाग से उस औरत को हटाने की कोशिश करे॑।...उसकी बुराई ना करें।


5. देखा गया है कि ऐसे संबंध ज्यादा नहीं चलतें... तो जल्दबाजी और गुस्से में अपने पैर पर पत्थर मार कर दूसरी औरत का मार्ग सुगम ना बनाएं। आत्महत्या की तो सोचे भी मत।... सिर सलामत तो पगडी पचास।...अरे भई॥ पति को दूसरी औरत मिल सकती है तो क्या आपको दूसरा पति नहीं मिल सकता? ( वैसे यह विषय सीरियस है..तो मजाक के लिए हम क्षमा चाहतें है।)


.... और फिर अपनी उन कमियों की तरफ भी ध्यान दें... जिनके होते हुए आपके पति दूसरी औरत के चुंगल मे फंसे हुए है।.... उन कमियों के दूर होते ही आपके पति आपको वापस मिल सकतें है और दूसरी औरत वर्तमान से भूत बन सकती है।

Monday, 27 October 2008

अगर बेटियों से है प्यार

...अगर बेटियों से है प्यार!


बेटियाँ किसे प्यारी नहीं होती?.... प्यार तो पुराने जमाने में भी लोग बेटियों से करते ही थे... लेकिन समाज में हालात ही कुछ ऐसे थे कि बेटियों को उनके हिस्से का प्यार नही मिल पाता था !... कुछ रस्मो-रिवाज बेटियों कि खुशियों के आड़े आ जाते थे ! .... और फ़िर दहेज़-प्रथा भी बेटियों की खुशी को ग्रहण लगाने का काम करती थी !... लेकिन आज मैं दहेज प्रथा के बारे में नहीं कहने जा रही; मैं बेटियों की खुशी को ग्रहण लगाने वाले कुछ 'अपनों' के बारे में कहने जा रही हूँ!


...ऐसे अपने ...जो सिर्फ़ अपने होने का स्वांग मात्र रचाते है... उनके मुख में राम और बगल में छुरी होती है!... उन्हें पहचानने का हमारे पास कोई साधन नही होता... हम उन पर आँखें मूंद कर विश्वास कर लेते है कि वे अच्छे है!... और जब बेटियों के साथ कोई न कोई हादसा हो जाता है.... तब तक बहुत देर हो चुकी होती है!


...अब ज्यादा लंबी भूमिका बांधे बगैर मैं यहाँ बता ही दूँ कि ये आपके नजदीकी रिश्तेदार है!... इनमें ज्यादातर महिलाएं होती है! ..... चाची, ताई, मौसी, मामी, बुआ .....और ऐसी ही नजदीकी रिश्तेदारी की आड़ में ये महिलाएं शादीशुदा बेटियों की गृहस्थी में आग लगाने का काम करती है! ...इन्हें बेटियों के ससुराल वालों से दूर रखने में ही बेटियों की भलाई है!... मान लिया कि सभी महिलाएं ऐसी नही होती... लेकिन इनमें से बुरी महिलाओं कि पहचान करना भी तो मुश्किल होता है.... जैसा कि मैंने शुरू में कहा!


....कई घर ऐसी रिश्तेदार महिलाएं उजाड़ चुकी है... तो समय रहते ही सावधानी रखने में कोई बुराई नही है !... नई नई गृहस्थी जिनकी बसी है या बसने जा रही है ; ऐसी बेटियों को जहाँ तक सम्भव हो सके... इनसे बचाएं रखे!


... हाल ही में मैंने एक टूटता हुआ घर देखा और यह सब लिखने से मैं अपने आप को रोक नहीं पाई ! ... फ़िर भले ही इसे बात का बतंगड़ क्यों न कहा जाए ?

Sunday, 19 October 2008

आज हम खुशवंत सिंहजी पर मेहरबान

S...आज हम खुशवंत सिंहजी पर मेहरबान... S

खुशवंत सिंहजी का परिचय देने वाले हम कौन होते है?... फ़िर भी बात का बतंगड़ बनाना ठान ही लिया है, तो इनका परिचय अपने शब्दों में दे ही देते है!

खुशवंत सिंहजी ! पहली बात तो यह कि कुदरत आप पर मेहरबान है और आप सरदारजी है!... तो ,बाई डि-फॉल्ट खुश मिजाज है!... लोगों को देख कर आप खुश होते हो, या ना हो.......लेकिन लोग तो आप कि झलक पाते ही हास्य की मुद्रा में आ जाते है!

दूसरी बात ये है कि आप अंग्रेजों के जमाने के पत्रकार है !....जेलर नहीं है!

तीसरी बात हमें सबसे ज्यादा पसंद है... वो यह की आप हिन्दी में अपनी कलम चलातें है!

चौथी बात यह कि आप कि उम्र 85 के अन्दर बाहर होते हुए भी आप रंगीन मिजाज है!...आप की रंगीली-रसीली चटपटी हरकतों का पुलिंदा खोला जाए ...तो एक पोस्ट लिख कर काम नहीं चलने वाला! ... अभी ज्यादा नहीं, चार-पाँच साल पहले ही आप ने एक भरी सभा में .... एक पाकिस्तानी डिप्लोमेट की जवान और खुबसूरत बेटी का ...........छोडिये भी, हम भी कैसी बात ले बैठे! ....लेकिन उस समय जो हंगामा हुआ था; वो तो हमे अच्छा नही लगा खुशवंत सिंहजी !... आप तो बुझुर्ग है और तब भी थे!...इस कदर आप की पगडी उछालना लोगों को शोभा नही देता .....क्या?

...तो इनका परिचय देने के बाद हम यह कहने जा रहे है कि 18 अक्टूबर 2008 के हिन्दुस्तान अखबार में हम इनका एक लेख पढ़ कर बाग़ बाग़ हो उठे! लेख था ' बुरा मानो या भला : कौन होगा अगला प्रधानमन्त्री !

....अब सरदारजी कह रहे है कि.... हालिया प्रधानमन्त्री मनमोहन सिंहजी जब भी, जो भी कहते है...ठीक ही कहते है ...कि अभी बहुत समय बाकी है, अभी से नए प्रधानमन्त्री के बारे में सोचना ठीक नहीं है!...वगैरा, वगैरा! तो इस पर पब्लिक को यहाँ क्या आपत्ति हो सकती है ?

....लेकिन खुशवंत सिंहजी को मनमोहन सिंहजी में इतनी खुबियाँ नजर आई कि उनका वर्णन करना मुश्किल है!...वैसे खुशवंत सिंहजी पत्रकार है... तुरंत पलटी मारनी भी इन्हे आती है!....आगे कहते है कि मनमोहन सिंहजी में खामियां भी है .......और सुनो!....खामियां भी खुशवंत सिंहजी ऐसी गिनावातें है कि उन्हें हम और आप खामियों का दरज्जा दे ही नही सकतें!...कहतें है कि मनमोहन सिंहजी नारेबाजी नही करतें, चिल्लाकर नही बोलतें... ये तो खामियों की आड़ में फ़िर खूबियाँ ही गिनवा दी न सरदारजी ने!

इस लेख में लालकृष्ण आडवाणीजी की भी खूबियां और खामियां इन्होंने गिनवाई है ; जो सिर्फ़ खामियां ही है!...

...तो पता चला की खुशवंत सिंहजी एक हाथ से कोंग्रेस की पीठ सहला रहे है और दूसरे हाथ से बी. जे .पी. का कान मरोड़ रहे है!

खैर! .....खुशवंत सिंहजी जैसे मंजे हुए पत्रकार तटस्थ रहकर लेख लिखतें, तो पढ़ने में जो मज़ा अब आया....वो तब तो ना आता न?... और फ़िर हमारी भी तो सोचो...हम बात का बतंगड़ कैसे बना सकतें थे?

Thursday, 16 October 2008

सास बहू डे

सास-बहू डे... याने कि कड़वा चौथ!

बस!...हमने डिक्लेर कर दिया सो कर दिया!... आज के दिन को ,कड़वा चौथ को.... हमने सास-बहू डे डिक्लेर कर दिया!... अब देखिए!..मदर्स डे होता है, फादर्स डे होता है, टीचर्स डे होता है...और बहुत से दिन 'डे' होते है! तो सास-बहू का अलग ना सही, ज्वाइंट एक दिन मनाने में हर्ज ही क्या है?

...ऐसा तो नहीं है कि सिर्फ़ भारत में ही सास-बहुएं रहती है: और दुनिया के दूसरे हिस्सों में ये प्राणी नही पाये जाते!....दुनिया के कोने कोने में सास-बहुओं का बसेरा है भाई लोगो!... सास-बहू का जीवन ,एक दूसरे के साथ के बिना अधुरा ही है!... लड़ने-झगड़ने के लिए और बाद में समझौता करने के लिए, ये दोनों जीव... एक दूसरे की राह तकतें है!

...अब कड़वा चौथ को ही लीजिये !.... सभी जानतें है कि इस दिन महिलाएं पति की लम्बी आयु के लिए व्रत रखती है!... कुछ लोग मानतें है कि जन्मो जनम उसी पति की प्राप्ति के लिए भी यह व्रत राम-बाण का काम करता है!... तो आपने क्या समझना , यह तो आप पर निर्भर है!.... लेकिन इस दिन सास बहू को ...और बहू सास को अनेक उपहार देती है!...मसलन कि सास अपनी बहू को गहनें , साडियां, मिठाइयाँ, रुपये-पैसे ...वगैरा वगैरा देती है!...तो बहू भी सास को कई कीमती उपहार दे कर खुश कर देती है!....खैर! लेना देना तो चलता ही रहता है!

...तो इस कड़वा चौथ के दिन ही सही, सास-बहू एक दूसरी के लिए प्रेम-भाव से लबालब हो उठती है!....तो इस दिन का क्यों न फायदा उठाया जाये? ... और सास-बहू डे के तौर पर इसे इंटरनैशनल बनाया जाये?... सास-बहू सिर्फ़ एकता कपूर के सिरियलों की प्रोपर्टी नही है!... हमारे ही समाज का एक अहम् हिस्सा है!... तो मैंने तो सोच लिया की कड़वा चौथ को ' सास-बहू' डे के तौर पर मनाया जाये...क्या आप मुझ से सहमत है?

Tuesday, 14 October 2008

हमने देखा बिग बॉस

हमने देखा बिग-बॉस... क्या आपने भी देखा?

ये तो हम कहने नहीं जा रहे कि आप ये टी.वी.शो अवश्य देखें! .... कलर्स चेनल पर, बिना समय की पाबंदी के आने वाला ये बिग शो .... हमारा मनोरंजन करने में तो नाकामियाब ही रहा!... फ़िर भी हमने यह शो देखा है; तो इसे अपनी तरफ़ से मनोरंजन के रंग में डूबोना हम अपना फर्ज ....मजबूरी में ही सही... इस समय समझ रहे है और जो कुछ देखा , उसे लिख कर आप तक पहुँचा रहे है!

..तो हमने यह शो -बिग-बॉस - टोटल पाँच से छः बार देखा है!...सात बार भी हो सकता है...वो क्या है की हम बचपन से ही गणित में कमजोर रहे है...तो हमारी कमजोरी हम समझतें है कि आप जरुर एडजेस्ट कर लेंगे!

बिग-बॉस में काम करने वाले कलाकार भी बहुत नामी-गिरामी है!...इसमें मोनिका बेदी है! मोनिका बेदी का प्रोफ़ाइल आप फुर्सत में चेक कर सकतें है!.... तो मोनिका बेदी एक मासूम से चेहरे वाली , दुबली-पतली लेकिन चुस्त और घाट घाट का पानी पी कर आई हुई अदाकारा है!...यहाँ कल ही हमने इसे रोटियां सकते हुए देखा और हमारे मुंह में पानी आ गया!... लगता है कि आगे ये लड़की टी. वी. सीरियलों में दमकती नजर आएगी!

दूसरे नामी-गिरामी कलाकार है .... राहुल महाजन! जाने माने दिवंगत नेता प्रमोद महाजन के सुपुत्र होने के बावजूद ....ये अपने ख़ास बलबूते पर भी खबरों में बने रहे है!... बिग -बॉस के घर में ये कैसे पहुँच गए....हमें नहीं मालूम! ..लेकिन इनकी शकल अब पहले से बेहतर नजर आ रही है! अब इनका वजन भी कुछ घट गया है.... सो बड़े ही स्मार्ट नजर आते है!... प्यार का स्वांग रचाने में लगता है कि इनकी मास्टरी है!..लगता है टी.वी. सीरियलों में इन्हे हाथोहाथ उठा लिया जाएगा!

..अब पायल रोहतगी की बात करें तो ये हस्ती भी जानी मानी है!... शकल से ही लगता है कि दूसरों को बेवकूफ बनाना इनका पहला शौक रहा होगा!... राहुल महाजन के साथ चक्कर चलने का खूब नाटक कर रही है!...साथ में अपने आप को उसकी अच्छी दोस्त बताकर सस्पेंस भी पैदा कर रही है!... न्यूज में रहने के लिए यह सब तो करना ही पड़ता है!... है न पायल ?

अब संभावना कि बात करें तो यह एक बडबोली और मुंहफट होने का दिखावा कर रही है!...असल में अगर है भी तो हमें क्या मालूम!...राहुल महाजनका इनके ऊपर भी बड़ा होल्ड है!... लेकिन यह राहुल के विरोध में बोल कर अपना रोष प्रकट कर रही है!...हो सकता है रोष सच्चा भी हो... झूठा भी हो! ...हमें कैसे पता चलेगा?..तो यह भी टी.वी.सीरियलों में डटें रहना चाहती है!...संभावना से इनकार करने वाले हम कौन होते है?

..बिग-बॉस के घर में सभी काम कर रहे है और मौज-मस्ती भी कर रहे है!...आगे आगे देखियें होता है क्या!

Friday, 10 October 2008

२ बात का बतंगड़ बनाना मेरी पुरानी आदत

२. बात का बतंगड़ बनाना...मेरी पुरानी आदत !

मैं अब पड़ोसी के नौकर के साथ सट कर खड़ी थी! नौकर को कोई तकलीफ नहीं थी...क्यों की मैं छोटी बच्ची थी! मुझे लगा की नौकर की पैंट की जेब ....मेरी तरफवाली... कुछ फूली हुई है! मैंने हाथ लगाया तो कुछ सॉलिड सी भी लगी... अब मैं नौकर की दूसरी तरफवाली जेब की तरफ, उसीकी टांगों में से होती हुई चली गई...

...यहाँ की जेब का तो उससे भी बुरा हाल था! ...जेब में इतना कुछ था की जेब, अब फटी और तब फटी! ...और मैंने जेब से साथ पंगा लेना शुरू कर दिया... जरासा जोर लगाया और जेब ने मुंह खोलना शुरू कर दिया...मुजे अब मज़ा आ रहा था!... नौकर सांप का वर्णन करने में मस्त था!

" अजी सांप बिल्कुल बालों के रंग सा ...काला था!...लंबा भी कोई 7 फ़ुट से ज्यादा ही था... अलमारी के उपरसे, मेरे ऊपर कूद पड़ा साहब!... मेरी तो धिग्दी बंद हो गई... आंखे बंद हो गई... मुझे लगा की मैं अब मरा...तब मरा!... जब मैं होश में आया तो पता चला साहब की मैं जिन्दा हूँ!... अब मैं जा रहा हूँ... मुझे नहीं करनी इस घर में नौकरी !..मुझे अपनी बाकी तनख्वाह भी नहीं चाहिए मैं जा रहा हूँ... " कहते हुए नौकर ने अपनी अटैची उठाई!

... इधर मेरे हाथ अपना काम कर रहे थे ...नौकर की पैंट की जेब तक अब मेरा हाथ पहुंच चुका था!...कि मेरे हाथ में घड़ी लग गई!...जो मैंने बाहर निकाल ली!....फ़िर एक सोने की चेन और अंगुठी मेरे हाथ लगा गई!...अब नौकर चलने की तयारी में कदम उठा ही रहा था कि मैं घूम कर उसकी पहले वाली जेब के पास पहुच गई और उसकी जेब कस कर पकड़ते हुए लटक सी गई... अब नौकर को मेरी हरकत का पता चल गया और उसने मुजे धक्का मारते हुए निचे गिरा दिया...और तेज तेज कदमों से भीड़ मेंसे रास्ता निकालता हुआ चल पड़ा!

...हमारे पड़ोसी और इकट्ठा भीड़, अब सांप पकड़ने वाले मदारी को बुलाने के बारे में बहस कर रही थी! ...इच्छाधारी सांप के बारेमें भी एक सज्जन कहानी सुना रहे थे...अब पड़ोसी का नौकर भीड़ मेसे बाहर निकल चुका था और अब गया...तब गया होने वाला था!

...कि मैं अब उठ कर खड़ी...चिल्लाने लगी..." चोर, चोर ..पकडो... पकडो!"

...मेरी तीखी आवाज लोगों के कानो से टकराने में देर नहीं लगी...लेकिन भीड़ मेंसे कोई बोला... " बेवकूफों! पहले सांप को पकड़ने के लिए मदारी को बुलाओ ... बाद में चोर पकड़ने के लिए पुलिस को बुलाओगे तो क्या फर्क पड़ेगा?...और फ़िर चोर तो इस बच्ची ने शायद ही देखा है... किसी कहानी के चोर की बात कर रही होगी! कोई बड़ी बात तो है ही नहीं! नौकर ने तो सांप का पुरा ब्योरा दिया है! "

..."सांप तो नौकर के सिवा किसीने भी नहीं देखा ...लेकिन चोर को तो देखो!...वो जा रहा है! ..... यह उसकी जेब से मैंने घड़ी और अंगुठी निकाल ली है! ...कहते हुए मैंने वो दोनों चीजे लोगों को दिखाई और जाते हुए नौकर की तरफ़ उंगली उठाई !

... अब सांप का और नौकर का ...पर्दाफाश हो चुका था!... नौकर पकड़ा गया उसकी जेब और अटैची से और भी कीमती चिज- वस्तुएं बरामद हुई और अब मदारी की जगह पुलिस को बुलाया गया!... मेरी तब बहुत वाहवाही हुई थी!... कहिए!... बात का बतंगड़ बनाना कई बार फायदेमंद भी साबित होता है कि नहीं?

Sunday, 27 July 2008

baat kaa batangad banaana meri purani aadat

1. बात का बतंगड़ बनाना...मेरी पुरानी आदत!



यह मेरे लिए कोई नयी बात तो है नही... मैं बचपन से ही बात का बतंगड़ बनाती आ रही हूँ! जब मैं आठ साल की बच्ची थी.... यह मत समझना की मैं तब पांचवी कक्षा में पढ़ती थी !....लेकिन तब मैं paanchvi पास वालों से ज्यादा tej थी !... अब देखिए कि मैंने बात का बतंगड़ कैसे बनाया!

शोर मच-मचा गया की पड़ोस के घर में साँप देखा गया....देखने की बात भी उनके नौकर ने प्रसारित की थी! ...रविवार का दिन था...सभी आसपास के पड़ोसी घर में बैठे बोर हो रहे थे.... उस जमाने में इडियट बौक्स ने (....अजी अपना टी.वी.) जनम लिया नहीं था!....सभी भागे भागे बाहर निकल आए... नया शोर मच गया.... ' कहाँ है साँप? ...कहाँ है साँप?'



...अब लोग इकठा हुए थे तो मेरा भी घर से बाहर निकल कर आँगन में आ कर खड़ा होना लाजमी हो गया!... एक तो रविवार; स्कूल की छुट्टी!...कुछ नहीं करो तो मज़ा भी नहीं आता न?... ऐसे में अगर साँप देखने को मिल जाता है, तो इससे बढ़ कर खुशी कौन सी हो सकती है bhaiyaa !

...सबसे पहले तो मई लोगों के पांवो के बीच से रास्ता निकालती हुई पड़ोसी के नोकर तक जा पहुँची!...क्या करें ; हाईट जो छोटा था!

...अब साँप को मैंने कहाँ और कब देखा!..यह मैं अगले पार्ट में bataaugii !...तब तक के लिए इजाज़त!...क्यों की 'बात का बतंगड़ ' बनाने के एक ताजा सिलसिले में मुझसे मिलने या समझ लो की झगडा करने कुछ लोग आए हुए है!

Tuesday, 10 June 2008

टॉम एंड जेरी शो पार्ट 23

अंतिम कडी... जायका के घरमें...
'टॉम एंड जेरी शो' - पार्ट २३


....हम अपनी खुली आंखों से देख रहे थे। वे चार सिरफिरे वैञानिक जेरी चूहे और हमारे ऑल इन वन 'धामी' को ले कर कार में बैठ रहे थे... हाय रे!धामी हमारी तरफ देख भी नही रहा था; उसके हाथ में कमबख्त वैञानिकों ने लॉलिपॉप पकडाया था।...... खैर! गलति तो हमारी ही थी कि हमने धामी को पकड कर अपने साथ घर से बाहर नहीं खिंचा था ।


...दुःख का पहाड हमारे सिर पर टूट पडा था. कार चली गई और हम अंदर आ कर दरवाजा बंद कर लिया और धम्म से सोफे पर पसर गए... अभी हमने आंखे मूंदी भी नहीं थी कि दरवाजे की घंटी बज उठी। ' अब क्या धामी वापस आ गया? ...हां । हां। ....आ सकता है...दरवाजा खोल कर उसे अंदर ले लेना चाहिये...बहुत अच्छा हुआ ये तो!


... मन में सोचते हुए हमने दरवाजा खोला...


" हाय रे.... नामिका । ये तो तू है । हाय रे...." हमने नामिका को गले से लगाते हुए रोना शुरु कर दिया।


" जायका । क्या बताऊ मै?...हाय रे..." नामिका भी दहाडे मार कर रो रही थी। हम समझ रहे थे कि नामिका को पता चल गया कि जेरी चूहे के साथ साथ हमारे धामी के चले जाने की खबर नामिका को मिल गई थी और वह हमारे लिए अफसोस जताने आई थी.

...एक घंटा रोने के बाद पता चला कि वह कुछ और ही बताने आई थी. उसके ऑल इन वन 'डब्बू' का अपहरण हो गया था. वह सुबह दूध लेने गया और वापस नही आया... आया एक फोन । फिरौती की मांग थी.... 10 लाख रुपिये ... बेचारी नामिका के पास तो 10 हजार रुपियों का भी इंतजाम नहीं था । उसने फिरौती मांगने वाले को भारी मन से कह दिया कि,


" हे ! अपहर्ता , अब डब्बू तुम्हारा हो गया । बहुत अच्छा खाना बनाता है; मै अब दूसरा ढूंढ लूंगी....लेकिन फ़िर दूसरे को अगुआ मत करना ।....नहीं तो भगवान तुम्हे कभी माफ नहीं करेगा ।"


.... नामिका यही बुरी खबर सुनाने हमारे यहां आ गई... और यहां उसे हमारी उससे भी बुरी खबर सुननेको मिली।


...अब हम नामिका के साथ गम-गलत करने निकल पडे है! नामिका कार चला रही है और हम साथ बैठे खिडकी से बाहर देख रहे है!


" नामि....रोके ....रोक दे कार...हां, हां,....थोडी बैक कर ले...हां बस ।" हमने कार रुकवाई...क्यों कि दो जवान लडके हाथ हिलाकर लिफ्ट मांग रहे थे!


...अब लडके कार की पिछली सीट पर थे...और हम नामिका के साथ आगे बैठ कर आगे का प्लान बना रहे थे!

Saturday, 7 June 2008

टॉम एंड जेरी शो पार्ट 22

जायका के घरमें....

'टॉम एंड जेरी शो '-पार्ट-22

हमे बहुत अच्छा लग रहा था...लग रहा था की अब हमारी सभी समस्याओं का अंत आ गया। अब हमे ना तो हर काम के लिए ,नामिका का मुंह ताकना पड़ेगा; और ना तो बॉय फ्रेंड की तलाश में जूते घिसाते हुए गली गली में भटकना पड़ेगा ... अब धामी जैसा बॉय फ्रैंड , कम नौकर, कम बॉडीगार्ड भी मिल गया था.... हम बहुत खुश थे!

....अब हम उन चारों वैञानिकों के साथ सर उठाकर खडे हो गए और खुले दरवाजे से बाहर आ गए. अंदर रह गई धुंआ उगालनेवाली मशीन और जेरी चुहा....और अब दरवाजा बंद हो गया. हमें बताया गया था कि धुंए के असर से जेरी चुहा अपनी सुद्-बुध खो बैठेगा और उन जापानी वैञानिकों के पीछे पीछे चलता हुआ ....सीधा जापान पहुंच जाएगा!


... हम बाहर खडॅ खडे सपनों की रंगीन दुनिया की सैर पर चल पडे!...पहले तो हम सीधे जापान पहुंच गए....धामी भी हमारे साथ ही था!....आहाहा!...


...हम जापानी वेश-भूषा में थे और किसी बगिचे की सैर कर रहे थे....धामी हमारे पीछे पीछे गाता हुआ आ रहा था...

' ले गई दिल....गुडीया जापान की, ले गई दिल...

पागल मुझे कर दिया...पागल मुझे कर दिया!


.....और अचानक हमने गाना-गुनगुनाना शुरु भी कर दिया!.. वे चारों वैञानिक भी हमारे गाने का लुफ्त उठाते हुए जूतों से जमीन पर पांव ठपकारते हुए ताल मिलाने लगे!...अब बस! कुछ ही मिनटों की देरी थी; दरवाजा खुलने वाला था और जेरी-चुहा बाहर तशरीफ लाने वाला था!


... इंतजार कब तक?...वह खतम हो गया. अंदर से मशीन ने घंटी बजा कर संदेशा दे दिया कि काम तमाम हो गया है!... मतलब कि दरवाजा खोल कर जेरी को बाहर ले जा सकतें है!... दरवाजा खुल गया और जेरी बाहर आ कर एक जापानी वैञानिक के कंधे पर चढ गया....हम खुश हुए!


..आरे यह क्या?...हमारा जिगरी ऑल इन वन् .....धामी भी बाहर आ गया और दूसरे जापानी वैञानिक के कंधे पर चढने लग गया.. उसे मुश्किल से रोक कर उस वैञानिक ने उसका हाथ पकड लिया!


..अब हमारी समझ में सबकुछ आ गया था... जेरी के साथ धामी भी अंदर ही था और धुंए का असर धामी पर भी हो गया था और अब सीधी सी बात थी...धामी भी जापान जा रहा था!...हाय रे हमारी फूटी किस्मत!कहां हम धामी के साथ जापान की सैर पर निकले थे और...अब कहां ये पागल धामी, हमें छोड कर अकेला ही जापान जा रहा था!

Saturday, 26 April 2008

टॉम एंड जेरी शो पार्ट 21


जायका के घरमें...
'टॉम एंड जेरी शो'-पार्ट 21

....अब वे चारों व्यक्ति हमारे सिर पर सवार थे। गुस्सा आ रहा था, पर करते भी क्या?...चारों इंडियन होते तो हम उन्हें कबके भगा चुके होते.अब उनमें दो फ़ॉरिनर थेः उनकी तो रिस्पेक्ट करनी जरुरी थी। हम उनके सामने इंडिया की नाक नीची नहीं दिखाना चाहते थे.हम अगर ज्यादा नहीं तो थोडे समझदार तो बेशक है!


...अब हमने ध्यान से देखा कि फॉरिनर नज़र आने वाले वे दोनों व्यक्ति जापानी लग रहे थे.अब वे चारों आगंतुक सोफे पर बैठ गए.लीजिए...हमारा धामी धी ग्रेट! चाय की ट्रे हाथ में लिए हाजिर हो गया!


"आप हमें बताएगी मोहतरमा!... कि आपके घर में आप के अलावा कौन कौन रहता है?" चायका कप धामी के हाथ से अपनी पकड में लेते हुए एक इंडियन ने पूछा.


.... हम इधर उधर देखने लगे तो बोला..." आप से पूछ रहा हूं मै यंग लेडी !"


" मुझसे पूछा आपने?...लेकिन आप तो किसी मोहतरमा का नाम ले रहे थे; हम तो जायका है!"…हमने भी अपना चाय का कप उठा लिया.


"ओह ! तो बताइए जायका !...यहा और कौन कौन रह रहा है?" अब दूसरा इडियट सा दिखनेवाला इंडियन बोला. अब उसने धामी से कहा कि वह चाय नहीं पीता.. और उसके लिए कॉफी ठीक रहेगी!...और धामी कॉफी बनाने किचन में चला भी गया....हमें फिर गुस्सा आया.


" यहां हम रहते है!....किचन में जिसे आपने कॉफी बनाने भेज दिया वह धामी है. हमारा नौकर नहीं है समझे?...चलो कोई बात नहीं...हां! यहां कुछ दिनों से एक चूहा रह रहा है, हम उसे 'जेरी' कह कर बुलाते है. टॉम नाम का बिल्ला हमारी फ्रैंड नामिका का है और वो भी परसों से हमारे ही घरमें रह रहा है!...देखिए धामी.." हम आगे बोलने जा रहे थे लेकिन हमें उन दो में से एक जापानी व्यक्ति ने चुप रहने का इशारा किया और हम चुप हो गए.


...हम मन ही मन सोचने लगे….'ये लोग कितने धीठ है! हमारे घर में घुस कर हमें ही चुप रहने के लिए कह रहे है, लेकिन...पता नहीं यहां क्यों आए है?' और हमें अब पता चल ही गया,जब एक इंडियन ने परदाफाश कर दिया...


" ये जापान से आए हुए वैञानिक है.एक चूहे पर जापान में एक्सपेरिमैंट किया गया था.... उसके अंदर से डर की भावना निकाल दी गई थी. वही चूहा जापान से किसी एरोप्लेन में चढ कर इंडिया आ गया. उसकी खोज लेते हुए ये वैञानिक आपके घर तक आ गए है! इनके पास एक ऐसी मशीन है जिसने उस चुहे का पता बता ही दिया. वही चूहा जिसे आप जेरी कह रही है, आप के घर में रह रहा है. अब ये लोग इसे वापस ले जाने के लिए आए है!"


"...लेकिन आपका यहां क्या काम है?" हमने उन इंडियन सज्जन से पूछा.


" हम तो बस इनकी सहायता करने आए है!" एक इंडियन ने हमें लाल आंखों से घुरते हुए जवाब दिया.



" देखिए जायका! हमारे पास एक धुंआ उगालने वाली मशीन है; हम उसे चालू कर देंगे! मशीन चालू करने से पहले हम सब घर से बाहर निकल जाएंगे. घुंए के असर से वह चूहा अपनी सूद-बुध खो बैठेगा और सिर्फ हमारे पीछे चल पडेगा. उसके अंदर और किसी तरह की कोई समझ बाकी नहीं रहेगी!" एक जापानी वैञानिक बोला. उसकी भाषा को हिंदी में ट्रांसलेट करके हमें दुबारा सुनाया गया!


"चलो यह तो अच्छा ही हुआ!...उस जेरी चूहे ने तो हमारा जीना हराम कर रखा था!"…हम मारे खुशी से उछलते हुए बोले!

Monday, 31 March 2008

TOM AND JERRY SHOW Part 20

जायका के घर में...

'TOM AND JERRY SHOW’-Part-20

....अब सुबह होने वाली थी।रात का अंधियारा छँट चुका था. हमने देखा कि हम अपने बेडरुम में, बेड पर लेटे हुए है। अकेले ही है हम....तो क्या धामी वापस आया ही नहीं था? हमने जो कुछ देख था; जो कुछ महसूस किया था...वो एक सपना था?


हमने अपनी आंखे मल-मल कर चारों ओर देखा!अपने आप को दस चुंटियां भी बैठे बैठे काट डाली!.....ऐसा जब भी हम करते थे;बडी ही समझदारी से करते थे! मतलब कि चुंटियां भी हम धीरे से कांटते थे!हमें याद आया.... नामिका को जब किसी चीज पर विश्वास नहीं आता था तो वह अपने ही मुंह पर जोर-जोर से कई थप्पड जड़ देती थी! इस बात की याद आते ही हमने भी आव ना देखा ताव और अपने ही गाल पर एक जोरदार थप्पड़ जड दिया और फिर चिल्लाएं...."ओ मर गई मां रे!"

" क्या हुआ?...क्या हुआ जायका डार्लिंग?" बेडरुम में धामी भागता हुआ चला आया और हमारी हालत देख कर हमारे गाल पर अपना गिला हाथ रखते हुए फिर बोला...

"जायका, तुम्हे किसने थप्पड़ मारा?...क़्या टॉम या जेरी ने मारा?"कहते हुए धामी इधर- उधर देखने लगा, पर उसे कुछ नज़र नहीं आया.

" नहीं!... धामी डियर! उन दोनों का तो कहीं अता-पता भी नहीं है! ये हमें लगा कि हम सो रहे है या जाग रहे है....यही देखने के लिए हमने अपने आप को चुंटियां भी काटी और थपड़ भी मारा!...थप्पड़ ज़रा ज़ोरसे लग गया और हम चिल्लाए डियर!...तुम कहां थे?"

"ओह् मै तो किचन में चाय बना रहा था... जाता हूं!लगता है चाय जल चुकी है!" धामी अपनी नाक पकडता हुआ किचन की तरफ चला गया!


...हम इधर चाय का इंतज़ार कर रहे थे कि अभी धामी चाय ले कर आता ही होगा, ...कि हमारे दरवाज़े की घंटी बज उठी!'ये सुबह, सुबह कौन मुंह उठाकर चला आया!'कहते हुए हम बेडरुम से निकल कर दरवाज़े की तरफ गए!...जैसे ही हमने दरवाज़ा खोला....

" कौन है आप लोग?..और मेरे यहां इतनी सुबह सुबह क्यों आ धमके?...देखिए आज तो 20 तारीख है; और महीना पूरा होने में पूरे 10 दिन बाकी है!...वैसे आप मकान मालिक भी नहीं है. हम उसकी शकल अच्छी तरह से पहचानते है! वो तो टकला, मोटासा, फैनी नाक वाला है ...लेकिन उसकी शकल से हमें क्या लेना देना?......वैसे हर महीने किराया देने तो हम ही उसके घर पर जाते है! उसे यहां कभी आना ही नहीं पड़ा!..अच्छे कियाएदार की यही तो पहचान होती है!"

" अब कुछ हमें भी बोलने देगी या खुद ही बोलती रहोगी?" बाहर खड़े चार व्यक्तियों में से एक बड़ी मुश्किल से बोल पड़ा.
हां! बाहर चार व्यक्ति थे.उनमें से दो इंडियन लग रहे थे और दो फॉरिनर लग रहे थे! अब हमने दरवाजे से हट कर उन चारों को अंदर आने के लिए रास्ता दे दिया!

Friday, 14 March 2008

टॉम एंड जेरी शो पार्ट 19

जायका के घर में...
‘TOM AND JERRY SHOW’-Part-19


...हम धम्म से सोफे पर आ बैठे! धामी चला गया था. पता नहीं इस समय, रात के अंधेरे में कहां गया होगा?...उसके रहने की तो कोई जगह नहीं थी.हम धामी के बारे में ज्यादा कुछ भी नहीं जानते थे; फिर भी हम फफक,फफक कर रो पड़े.

...शायद हमें रोते हुए देख कर हमारा lovely हमारे पास आया और हमारी गोद में छलांग मार कर बैठ गया.अरे! वो दोनों बदमाश टॉम और जेरी भी वहां आ कर हमारे सामने खड़े हो गए.हमें गुस्सा तो आया, पर हम बहुत दुखी हो रखे थे...इसलिए हमने उनकी तरफ कोई ध्यान नहीं दिया. अब हम lovely को गोदी से नीचे उतार कर सोफे पर ही लेट गए और हमारी आंख लग गई.

....सपने में हमने देखा कि टॉम और जेरी धामी को घसीटते हुए हमारे घरमें वापस ला रहे है. धामी कहता जा रहा है कि, "जायका को मेरी वजह से इतनी तकलिफ उठानी पड़ रही है. मै यहां नहीं रहूंगा….वैसे मै जायका से बहुत प्यार करता हूं!"

...टॉम और जेरी धामी को हमारे पास ला कर सोफे पर हमारे पांव के पास बैठा रहे है...और धामी हमारे नर्म मुलायम पांव पर हाथ फेरता हुआ कुछ कह रहा है....

....और हमारी आंख खुल गई.सचमुच ही धामी हमारे पांव पर अपने होठ रखता हुआ," I love you,darling jayaka!!.." बार बार कहे जा रहा था.

...हम एकदम से उठकर बैठ गए.हमने अपने आप को चुंटी काट कर तसल्ली दी कि हम सपना नहीं देख रहे.सच में धामी हमारे घरमें, हमारे दिल में वापस लौट आया है. धामी की हमें और हमें धामी की सख्त ज़रुरत है. नामिका का खयाल इस समय हमारे दिल में आया ही नहीं. लगा कि दुनिया में एक ही मर्द है, धामी! ...और वह हमारे लिए ही दुनिया में आया है.

"धामी, तुम कहां चले गए थे?...तुम्हारी याद में हम आंसू बहाते हुए सो गए थे जानेमन! वो तो अच्छा हुआ कि हमारे दोस्त तुम्हें वापस यहां ले आए, वरना हमें दूसरा boyfriend ढूंढना पड़ता!..और पता नहीं, मिलता भी या नहीं!...I love you dhaami!...so much darling!" हम ने धामी के गले से लग कर फिर गंगा-जमना बहानी शुरु कर दी.

Monday, 10 March 2008

TOM AND JERRY SHOW Part 18

जायका के घर में...
‘TOM AND JERRY SHOW’-Part-18

हम अब खुश थे.हां! धामी ना आता और नामिका डब्बू को ले गई होती...तो हम शायद इस समय जेल की हवा खा रहे होते. ….नही समझे?

...सीधी सी बात है, हम ने नामिका पर जान लेवा धावा बोल दिया होता...नामिका ने तुरन्त 100 नंबर दबा दिया होता....पुलिस जीप समेत हमारे दरवाजे पहुंच गई होती...जीप दरवाजे पर ही खड़ी रहती...पुलिस अंदर आ गई होती...और हमारी एक भी सुने बगैर हमें हथकड़ियां पहना कर....जीप में बैठा कर ले गई होती. डब्बू की नींद तो तब भी कौन सी खुलने वाली थी!

...लेकिन ऐसा अगर कुछ नहीं हुआ तो, धामी की वजह से ही नहीं हुआ था. धामी हमारे सामने था...हमे एक गाना; जो ज्यादा पुराना नहीं है,याद हो आया और हम अपनी फटी तूती जैसी आवाज़ में धामी की आंखों में आखें डालकर गाने लगे....

"तू मेरे सामने, मै तेरे सामने...तूझे देखू कि प्यार करु?...

ये कैसे हो गया,तू मेरा हो गया,...कैसे मै एतबार करु?...."

....धामी भी अब हमें बाहों मे उठाने ही लगा था कि, न जाने TOM, JERRY और कमबख्त हमारा lovely, कहांसे यहां आ धमके और धामी की टांगों मे घुस कर, जोर लगा कर उसे नीचे गिरा दिया. हम तो देखते ही रह गए और तीनों जैसे आए थे, वैसे ही चले भी गए...

"धामी डियर!...ये क्या हो गया? तुम्हें कहीं चोट तो नहीं आई?" अब धामी की मिजाज पुरसी तो करनी ही थी. प्यार करने का आलम तो खत्म हो गया था. हम मन ही मन पता नहीं किस-किसको गालियां दिए जा रहे थे. सबसे ज्यादा गालियां तो नामिका के खाते में दर्ज हो रही थी.

"जायका!... अब मुझे यहां एक पल भी नहीं रहना! सारी मुसीबत की जड़ तो मै ही हूं. अच्छा भला नामिका के घर में सो रहा था. मुझे नींद में बकवास करने की क्या जरुरत आन पड़ी?...ना मै बकवास करता कि मुझे जायका के घर जाना है, ना नामिका मुझे यहां छोड़ने आती, ना डब्बू को वापस ले जाती, ना मै ऐसे गिर जाता...हाय! ….लगता है मेरी पांव की हडडी टूट गई है. अब जैसे भी हो मुझे चलना चाहिए!" कहते हुए धामी खड़ा हो गया और अकड़ कर चलता हुआ दरवाजे की तरफ जाने लगा.

"नहीं धामी! तुम अकड़ कर चल रहे हो!..मतलब कि तुम्हारे पांव की हडडी साबूत है, मतलब कि टूटी नहीं है...रुक जाओ धामी! हम तुमसे कितना प्यार करते है!" हम बोलते रह गए और धामी दरवाज़ा खोल कर बाहर निकल भी गया.


Wednesday, 5 March 2008

TOM AND JERRY SHOW Part 17

जायका के घर में...
‘TOM AND JERRY SHOW’-Part-17

हम नामिका को खरी खोटी सुना ही रहे थे कि...न जाने कहां से TOM बिल्ला और JERRY चुहा वहां आ धमके और जोर लगाके हमें पीछे धकेल दिया. वो तो अच्छा हुआ कि हमारे पीछे धामी खड़ा था.... फट से आगे बढ कर उसने हमें कस कर पकड लिया और हम गिरने से बच गए.

..अगर हम फर्श पर गिर जाते तो कुछ भी हो सकता था....या तो हमारे कूल्हे की हडडी टूट जाती, या तो दांत टूट जाते अगर हम मुंह के बल गिरते, या तो टांग की हडडी टूट कर हमें व्हील चेर पर बैठा देती, या तो उलटे गिरते तो हमारे गोले....जाने भी दो; ऐसा कुछ भी होने से सिर्फ धामी की वजह से बच गया था.

..हमें गुस्सा तो TOM and JERRY पर आ ही रहा था...लेकिन धामी के मजबूत स्पर्श की वजह से थोडा सबसाइड हो गया था. धामी तो अब भी हमें पकड़े हुए था और नामिका सोए हुए डब्बू के होठों पर अपने होठ रख कर ना जाने क्या कर रही थी!...अब हमें ध्यान आया कि नामिका डब्बू को लेने आई है और हमने किसी भी हालत में डब्बू को उसे वापस करना नहीं है. हम फिर जंग के मूड में आ गए....

"नामिका!..यहां से अभी चुपचाप निकल जा; वरना...." हम ने बोलना शुरु किया.

" वरना क्या?.. अपनी जबान संभाल; वरना..." नामिका भी शुरु हो गई.अब वह डब्बू का हाथ पकड़े हुए थी.

...हम दोनो 'वरना','वरना' ...कहते रह गए और उधर TOM और JERRY ने हमारे पिल्ले Lovely के साथ मिल कर सोए हुए डब्बू को सिर और टांगो से पकड़ कर उठाया और लेकर....दरवाजे की तरफ भागे! नामिका भी उनके पीछे भागी...और सबने मिलकर सोए हुए डब्बू को नामिका की कार की पिछली सीट पर लिटाया.

....बस नामिका ने कार स्टार्ट की और TOM, JERRY और हमारे Lovely ने भी उसे 'बाय, बाय,...टा,टा' कर दिया.

हमने देखा..हमारे साथ खड़ा धामी हंस रहा था. उसने धीरेसे अपना मुंह हमारे कान से लगाते हुए कहा,

"jayaka darling, डब्बू गया तो जाने भी दो, मै हूं ना!"

....हम हारे हुए जुआरी की तरह खड़े थे. नामिका के साथ अगला दांव खेलने के लिए अपने आप को तैयार करते हुए हमने भी धामी के गाल पर चुंटी काटते हुए कहा,

" Yes dear ! तुम तो डब्बू से भी अच्छे हो!...उसकी तरह कुंभकर्ण तो नहीं हो!"

Friday, 22 February 2008

TOM AND JERRY SHOW-Part-16

जायका के घर में...
'TOM AND JERRY SHOW'-Part-16

अब हम बुरी तरह से फंस चुके थे! अपने की घर में हमारे लिए सोने की कोई जगह बची नहीं थी। हम बार बार अंदर-बाहर किए जा रहे थे...कभी bed-room में तो कभी drowing-room में आ जा रहे थे। अब हमें पछतावा हो रहा था की कहाँ से इस डब्बू को उठा लाये? अच्छा भला नामिका के घरमें रह रहा था! हमारा कोई boy-friend नहीं था तो इसका मतलब यह तो नही की; कहीं से भी कचरा उठा कर के घर में घुसेडा जाए!

... एकदम से हमारे गेट पर कार रुकने की आवाज़ आई और हम इस समय ' कौन आया !' देखने के लिए खिड़की की तरफ भागे। अब तो रात के बारह बजने में तीन मिनट बाकी थे!
...अरे ये तो नामिका कार में से उतर रही है और साथ में धामी भी है... अरे उनके साथ तो TOM बिल्ला भी है!
' हे भगवान! क्या अब ये लोग भी सोने के लिए यहाँ आ धमके है?... दरवाजा खोलेगी मेरी जूती! '
....हम आराम से बैठे रहे और हमारी डोर-बेल बजती रही... 'डब्बू तो अब उठनेसे रहा ! ... हूं! अपने आप नामिका अपने लाव-लश्कर के साथ वापस चली जाएगी! हम क्यों खोले दरवाजा?'
..हम सोचते हुए खिड़की के पास खड़े ही थे की उधर दरवाज़ा खुल जाने की आवाज़ हमारे कानों से टकराई। हम हैरान रह गए की दरवाज़ा आख़िर खोला किसने?.... देखा तो दरवाज़ा JERRY चूहे ने खोला था। दरवाज़ा खुलते ही सबसे पहले TOM बिल्ला अंदर आ गया और JERRY उसका पीछा करता हुआ.... ये भागा और वो भागा...
" यहाँ क्या करने आई हो नामिका?... तुने ख़ुद तो डब्बू को हमें सौंप दिया था?" हम भी नामिका के ऊपर हाथ मारते हुए शुरू हो गए।
... नामिका ने हमारा हाथ हटाने की बिलकुल भी कोशिश नहीं की...उलटा अपना हाथ हमारे गोले पर प्यार से फेरती हुई बोली...
" जायका! ये धामी मेरे घर रहने तो आ गया ... सबकुछ करने-समेटने के बाद जब ये सो गया , तो नींद में बोलने लगा कि 'मै तो जायका के घर रहने की सोच कर आया था...नामिका के साथ बेचारा डब्बू रह जाता तो मेरा क्या बिगड जाता?...मैने उसे बेघर कर दिया, उसके पेट पर मैने लात मारी!' ये कहते हुए धामी रोने लगा ....और सच कहती हूँ जायका! मेरा भी ज़मीर जाग उठा कि मैने डब्बू को घर से निकाल कर अच्छा नहीं किया. अब मै डब्बू वापस लेने आई हूं"
" आई बड़ी डब्बू को लेने!... अब डब्बू नहीं मिलनेका क्या?" हमने नामिका के गोले परसे अपना हाथ हटाकर सोए हुए डब्बू के सीने पर रख दिया...
" डब्बू मेरा है, मैं इसे ले कर ही जाउंगी!" कहते हुए अब नामिका ने भी अपना हाथ हमारे गोले परसे हटा लिया।
" अब ये डब्बू हमारा है; कोई इसे हाथ तो लगाकर देखे!... हमारे जैसा बुरा कोई नही है हाँ!" हमने नामिका की गर्दन पर हाथ रखते हुए कह दिया....अब हमारी इज्जत का सवाल था!

Monday, 11 February 2008

TOM AND JERRY SHOW Part-15

जायका के घर में॥
'TOM AND JERRY SHOW'..Part-15

" जायका, तुम तो कह रही थी कि यहाँ JERRY जैसा उस्ताद चूहा अपनी चुहिया के साथ रंग-रेलियां मना रहा है...लेकिन कहाँ है वो?" डब्बू इधर-उधर देखता हुआ पूछ रहा था।

" अब देख डब्बू! अभी वह यहाँ नहीं है तो क्या हुआ? ...नामिका के टॉम बिल्ले को देख तो कैसे पिंजड़े में बंद कर के चला गया! अगर तेरी समझदानी थोड़ी और बड़ी होती तो इस बात को तू आसानी से समझ गया होता!" हमने भी गुस्से में आ कर बोल दिया।

" अब तो मै यहां हरगिज़ नहीं रहूंगा। समझदानी तो तेरी छोटी है जायका!...जो तुने टॉम को पिंजड़े से बाहर हकाल दिया. ...पर मुझे क्या? मै तो जा रहा हूं!" डब्बू ने अटैची उठाने का नाटक किया.

" डब्बू,माय डार्लिंग! तुम कहीं नहीं जाओगे. मुश्किलसे तो मिले हो...जैसे भी हो! मतलब बहुत ही इंटेलिजंट हो!" हमने कहा और डब्बू ने अटैची नीचे रख दी।

...अब हम सोने की तैयारी करने बेडरुम की तरफ चले...'अरे! यहां हमारे बेड़ पर जेरी सोया हुआ है, ख़र्राटे ले रहा है!'...और हम घबराकर जोर से चिल्लाए,

" डब्बू, डब्बू!...जल्दी अंदर बेड़रुम में आओ!"

मै यहीं ड्रॉइंगरुम मे ठीक हूं!" डब्बू ने वहीं से जवाब भेजा.

" अरे! मै सोने के लिए नहीं बुला रही बेवकूफ!...यहां आ कर देख तो लो, जेरी चूहा यहां मेरे बेड़ पर सोया हुआ है!"

" तो क्या हुआ?...उसे मत जगाओ! जायका, तू भी यहां आ कर ड्रॉइंगरुम में ही सो जा!... अब मुझे नींद आ रही है! गुड नाइट जायका! अब सुबह बात करेंगे!" डब्बू की आवाज आई।

... हमने ड्रॉइंगरुम में जा कर देखा...डब्बू अब सचनुच ही सो चुका था. नामिका ने हमें एक बार बताया था कि डब्बू एक बार सो गया तो कुछ भी करों...कितने भी नगाड़े बजाओ, वह छ्ह घंटों से पहले कभी नहीं उठता! अब ये सुबह ही उठने वाला था...हम बुरे फुंस गए थे। हमें ना तो राम ही मिला और ना तो माया ही मिली!

उधर हमारे बेड पर जेरी चुहा सोया हुआ था और इधर डब्बू हलवाई सोया हुआ था। अब हमें ये तय करना था कि बेडरुम में जा कर जेरी चुहे के साथ सोया जाए या यहीं इस डब्बू के साथ?


...'डब्बू तो अब यहीं रहने आ गया है, ऐसी जल्दी भी क्या है?...चलो बेडरुममें चलकर देखते है कि शायद जेरी के साथ सोया जा सके!' सोचते हुए हम बेडरुम में आ गए और जैसे ही बेड पर चढ्ने लगे...हमने देखा जेरी के साथ उसकी गर्ल-फ्रैंड भी सोई हुई है!

" हे भगवान, अब हम कहां सोएंगे?" हम ऊंची आवाज में बोल गए.

Saturday, 2 February 2008

TOM AND JERRY PART-14

जायका के घर में...
'TOM AND JERRY SHOW'..Part-14

हम अब पैदल चलते हुए, डब्बू के साथ अपने घर तक पहुंच गए थे। हमारा Lovely भी हमारे साथ चलकर ही हमारे घर तक आ गया था। हमने बंद दरवाजा खोला और अंदर झाँक कर देखा...

... सन्नाटा था....जैसे डरावनी हिन्दी फिल्मों में होता है। रात के अब आठ बजने वाले थे और अंदर घुप अँधेरा था। हमने जैसे लाईट जलाई...जोर से 'म्याऊं ' की आवाज कानों से टकराई। अब हमें डरता हुआ देख कर डब्बू आगे बढ़ा और इधर-उधर देखने लगा। हम भी उसके पीछे पीछे ही चल रहे थे...Lovely पता नहीं कहाँ छिप गया था कमबख्त ! कुत्ते जैसी हरकत करता.... अरे जोर से भौकता तो हमें अच्छा भी लगता!...खैर! नया नया हमारे घर आया हुआ था और छोटा पिल्ला भी था...हमने उसे माफ़ कर दिया, कोई चारा था क्या?

" अरे ये क्या है? चूहे के पिंजड़े में बिल्ला?... अरे ये तो नामिका का 'TOM ' है।" हमने देखते ही बोल दिया।

" ठीक है; TOM है तो क्या हुआ?...इसे बिल्ला कहना ही ठीक है । नामिका का तो नाम भी इस घर में नहीं लिया जाना चाहिए.... क्या समझी जायका?" डब्बू ने हमें डांट लगाई। हमें गुस्सा भी आया ....पर सोचा गुस्सा करनेसे डब्बू घर छोड़ कर चला गया तो!... बड़ी मुश्किल से कोई लड़का हाथ लगा है। ....और डब्बू के चले जाने का पता अगर नामिका को चल गया तो... वो हमारी बेवकूफी पर ठहाकें भी लगा सकती है, ऐसा नहीं होना चाहिए!

" जायका! क्या सोच रही हो?...मेरी बात का बुरा मान गई क्या? ...मैं तो ऐसे ही...मुझे तो आदत है ज़रा ऊँचा बोलनेकी कि इस वजह से ..." डब्बू हमें समझाने के सूर में बोला और हमें पता चला कि अब डब्बू के रहने के लिए भी यही एक घर बचा है।

" नहीं डब्बू, हमें ज़रा भी बुरा नही लगा... तुम्हारी बात बिल्कुल सही है; अब इस घरमें नामिका का नाम गुंजना भी नहीं चाहिए। उसने चलो तुम्हारी insult कर दी....कोई बात नहीं, लेकिन हमारी तो ना करती!" हमने कहा और डब्बू की शकल देख कर लगा कि हम कुछ ग़लत कह गए थे। ...पर डब्बू ने बुरा नहीं माना और हमारे kitchan की तरफ गया....

Kitchan में आज हमारा milk का पतीला भरा हुआ था। 'JERRY ' ने आज हमारा मिल्क पिया नहीं था. मगर JERRY कहीं नजर नहीं आ रहा था.

" डब्बू, क्या हम TOM को पिंजड़े में से बाहर निकल दें?" हमने डब्बू से पूछा , ....पर उसके कुछ कहने से पहले बाहर निकाल भी दिया।

....आज हम बहुत खुश थे।हमें बेवकूफ समझने वाली नामिका का मंगेतर आज हमारे घर पर रहने के लिए आ चुका था.

Sunday, 27 January 2008

'TOM AND JERRY ShOW' Part-13

जायका के घर में...
'TOM AND JERRY SHOW'..Part-13


नामिका की नज़र सबसे पहले मेरे उपर ही पड़ी. वह लाल लाल आंखों से मुझे घुर ही रही थी कि मेरा पिल्ला 'Lovely' डायनिंग टेबल से एकदम से कूद कर मेरे उपर आ गिरा। मैने उसे अपने दो हाथों मे संभालते हुए कहा...


" Lovely, अब तुम खाना खा चुके हो...चलो अब घर चलतें है!" कहते हुए उसे मै दुलारने लगी.यह् देख कर नामिका की आंखों की लाली कुछ कम हो गई, समझा लो कि गुलाबी हो गई....


"तुम यहां क्या कर रही हो जायका?...तुम्हें तो इस समय अपने घर पर होना चाहिए...तुम्हारे घर पर तो' TOM AND JERRY SHOW ' चल रहा है..."नामिका ने हैरानी से मेरी तरफ देखे हुए पूछा।


नामिका का मोर्चा मेरी तरफ है...इस मौके का फायदा उठा कर डब्बू ने कांच की टूटी हुई प्लेट के टूकडे उठा कर डस्टबिन में फेंक दिए और डायनिंग टेबल भी कपड़े से साफ कर दिया. वाकई डब्बू एक कुशल रसोईया था. मै मन ही मन सोचने लगी' काश! कि डब्बू को मै अपने Lovely के साथ अपने घर पर रख सकू!'


" क्या बात है जायका?...क्या सोच रही हो? मेरे सवाल का जवाब नहीं दिया अब तक!" नामिका अब तक कुर्सी अपनी तरफ खिंच कर, डायनिंग टेबल पर एक हाथ रख कर बैठ भी गई थी.


" हम क्या कर रहे है यहां?..अरे वाह! हम तो जानेमन,...तेरी ही राह देखते हुए कबसे यहां समय गुज़ार रहे है. क्या अब घर जाया जाए?..." मैने अपनी रिस्टवॉच में नज़र गड़ाई...वैसे तिरछी नज़र तो डब्बू के चेहरे पर ही टिकी हुई थी.


"नहीं...लेकिन क्या तू डर रही है जायका?" नामिका ने पूछा.


..यहां अगर हम चूहों से डरने लगे तो हो गई छुट्टी! लेकिन अब 'डर रहे है' यह दिखाना भी तो लाजमी था...नहीं तो गडबड भी हो सकती थी.


" मुझे तो सचमुच ही डर लग रहा है. क्या तू मेरे साथ नहीं चल रही! खैर!उस धामी का ही मोबाईल नंबर दे दे मुझे! उसे अपने साथ अपने घर ले चलूँ!" कहते हुए हमने पर्स में से अपना मोबाईल बाहर निकाला।


" अहं जायका! मेरा काम बन गया!...धामी तो अब यहां मेरे साथ रहने आ रहा है. वह मोटवानी के घर अपना सामान लेने गया है. थोड़ी देर में पहुंचने वाला ही होगा. मुझे तो डब्बू की चिंता थी कि वह कहां जाएगा?..अब तू ऐसे कर डब्बू को अपने साथ अपने घर ले जा...क्यों डब्बू?...कैसा इंतज़ाम है?"नामिका ने टेबल पर पड़ा हुआ पानी का गिलास उठा कर मुंह से लगाया.पानी मेरे 'Lovely' का जूठा था....लेकिन पानी तो नामिका गटक गई थी। मै और डब्बू अब एक दूसरे की शकल देख रहे थे.

" ठीक है; मैं जायका के घर चला जाता हूं...अब वापस तेरे यहां कभी नहीं आऊँगा!...by, by नामिका !" कहते हुए डब्बू ने अपनी अटैची उठा ली और हमारा हाथ पकड़ कर हमें घसीटता हुआ दरवाजे से बाहर आ गया।


"रुको भाई! इतनी जल्दी भी क्या है?... मै कार में छोड़ आती हूं तुम दोनों को!..." नामिका हमारे पीछे पीछे आ रही थी।


" नहीं! हम पैदल ही चले जाएंगे!..क्यों जायका?"...डब्बू अब एक मर्द की भाषा बोल रहा था; जो हमें बेहद पसंद थी!

Sunday, 20 January 2008

TOM AND JERRY SHOW Part-12

जायका के घर में...
'TOM AND JERRY SHOW'..Part-12

" जयु, एक परांठा और ले..ले..." डब्बू का झाँका अब खुल गया था और उसने हमें 'जयु' कहना शुरू कर दिया था।

" नहीं यार डब्बू... हमारा पेट वैसे ही आगे निकला हुआ है; ज्यादा खाना खाने से 'फट' करके फटाका भी बोल जाएगा तो हम क्या करेंगे? " हमने मज़ाक किया और डब्बू हमारे पेट की तरफ देखने लग गया।

" नही, नहीं...डब्बू ! तुम हमारे गोल,गोल...मतलब की..." मतलब हम दब्बू को समझा ही रहे थे कि .... वह खुद ही समझ गया और उसने वही किया जो वह नामिका के साथ करता था...

" नही डब्बू! तुम अभी नामिका के घर में हो.... हमारे घर जब रहने आ जाओगे; तब आगे क्या करना है, तुम्हे हम खुद बता देंगे....फिल-हाल हमारी कटोरी में मटर-पनीर भर दो! " हमने डब्बू के मुंह में पनीर का बड़ासा टुकड़ा सरका दिया और डब्बू धन्य हो गया।

...डब्बू ने अपने मर्दानी हाथों से हमारे lovely को भी पेटभर खाना खिला दिया। नामिका के घर आने का कोई ठिकाना नहीं था।क्या पता रात को भी वो न आए!.....ऐसा होता है तो और क्या चाहिए हमे!

" डब्बू! अब लगता है कि इस घर में नया cook ' धामी ' आने वाला है! तुम अपना सामान पैक कर लो और हमारे साथ.... हमारे घर चलने की तैयारी कर लो!" हमने अपना बड़प्पन दिखाना शुरू कर ही दिया।

" जयु! तेरे घर में फ्रिज़ और टी.वी. तो है.... पर माइक्रोवेव और वाशिंग मशीन नहीं है!.... ये तो नामिका बता रही थी।" डब्बू ने पूछ-ताछ शुरू कर दी।

" क्या नामिका ने ये नहीं बताया कि मेरी तनख्वाह उससे डबल है? " हमने भी उलट सवाल किया।

" हां! ये भी बताया था... लेकिन ..."

" लेकिन क्या? " अब हमें गुस्सा आने लगा था।

" गुस्सा मत खाओ जयु! ... मैं आने के लिए तैयार बैठा हूँ...लेकिन..." डब्बू ने फिर' लेकिन ' कहकर वाक्य अधूरा ही छोड़ दिया और हम जो समझना था; वह समझ गए!

" ठीक है डब्बू!... हम माइक्रोवेव, ऑटोमैटिक वाशिंग-मशीन और तुम जो भी कहोगे..सब खरीद देंगे!...बस, एक बार हमारे घर रहने आ जाओ बस! " हमने डब्बू को पटाने की पूरी कोशिश करते हुए कहा।

" क्या... कार भी खरीदोगी?" डब्बू को यकायक याद आया की हमारे पास कार तो है नहीं!

...हम कुछ कहने जा ही रहे थे कि...बाहर कार रुकने की आवाज आई। नामिका आ गई थी। डब्बू अब घबरा गया और टेबल पर से झूठी प्लेटे... जल्दी-जल्दी और जल्दी...उठाने लगा..पर...

...कांच की एक प्लेट नीचे गिर कर टूट गई और..... नामिका की घर में एंट्री हुई!...

Thursday, 17 January 2008

TOM AND JERRY SHOW Part-11

जायका के घर में..
'TOM AND JERRY SHOW'..Part-11

...अब हम धीरे धीरे दरवाजे की तरफ बढ़ रहे थे। हमारे दोनों हाथ, उस सफ़ेद बालों वाले और नीली आंखों वाले सुंदर पप्पी को उठाए हुए थे। पप्पी का नामकरण भी अब तक हमने कर दिया था। उसका नाम हमने ' Lovely' रखा था। Lovely में Love, beauty, friend-ship, लगाव, लगट ...सब कुछ आ जाता था।

" आ गई जानेमन!...आज तो मैंने मटर-पनीर बनाया है।" डब्बू kitchen में खड़ा , गैस पर रखी कढाई में कड़छी मार रहा था. उसकी पीठ हमारी तरफ थी। शायद वह हमें नामिका समझ कर 'जानेमन' कह गया था...लेकिन हमने भी ना समझी का नाटक करते हुए... डब्बू को पीछे से दो हाथ डालकर, पेट से कसकर पकड़ लिया।

...हमारा lovely हमारे हाथ से छूट कर, छलांग लगाता हुआ kitchen की स्लैब पर जा पहुँचा और वहां पड़ा हुआ ब्रैड का स्लाइस मुंह मे दबाया।

"अरे! अरे! नामी....ये कुत्तेका पिल्ला यहाँ कहाँ से आ गया?....हट्...हट् ! भाग बे पिल्लै!..." कहते हुए डब्बू ने हमारे lovely को मारने के लिए बेलन उठाया...

" खबरदार डब्बू! ये मेरा lovely है। कुत्ते का पिल्ला नहीं है समझे?... इसे कुछ कहा तो देख लेना; तेरी मम्मी और बहन की वो हालत मैं ..." हमने भी गुस्से में आ कर डब्बू को उसकी माँ-बहन की याद दिलवा ही दी।

" अरे! जायका darling...ये तो तुम हो! ...मैं तो नामिका समझा था। मुझे लगा ही था कि नामिका इतनी प्यार से कैसे पेश आ गई!...और ये तो तुम्हारा lovely है!" कहते हुए डब्बू ने जोर-जोर से हमारे....हम नहीं बताएंगे; क्यों कि डब्बू तो नामिका का boy-friend है! हमारे साथ प्यार से पेश आ भी गया तो क्या हुआ?

" नामिका कहाँ है? ... नज़र क्यों नहीं आ रही?..." डब्बू मारे ड़र के इधर उधर देखता हुआ बोला. अब डब्बू कुछ होश में आ गया था कि ये सब क्या हुआ!

" अरे डब्बू! नामिका यहाँ हो तो नज़र आएगी ना? ....वो तो आई नहीं है। वो तो धामी को साथ ले कर कार में ..."

" क्या कह रही हों जायका?... धामी और नामिका ?...दोनों एक साथ?...कार में गए? ....." डब्बू ने कई सवाल एक साथ पूछे और अपना सिर पीट लिया।

" अरे डब्बू! ...फिर क्या हुआ?.... मैं हूँ ना! " कहते हुए मैंने डब्बू के दोनों गालों पर अपने दो हाथ रख दिए!

"... लेकिन मेरी शादी तो नामिका से होने जा रही है जायके!" डब्बू अब रोने वाली आवाज़ में बोला।

" हुई तो नही है... नहीं करेगी तो मैं कर लूंगी तुझसे शादी! तू इतना घबराता क्यों है डब्बू Darling!....अब ऐसे कर; फटोफट खाना लगादे टेबल पर.... बड़ी भूख लगी है। हमारे पेट में चूहे..." हमने डब्बू से खाना खिलाने के लिए बोल तो दिया... पर चूहे का नाम लेते ही हमे हमारे घरमें चल रहे ' TOM AND JERRY SHOW' कि यकायक याद आ गई.

Tuesday, 15 January 2008

TOM AND JERRY SHOW Part-10

जायका के घर में..
'TOM AND JERRY SHOW'..part-10

...हम सोचे जा रहे थे कि कहां फंस गए!...यहां आ कर तो हमारा कीमती समय बरबाद हो गया.चलो! नामिका को तो उसका पुराना 'बॉय friend ' धामी मिल गया; पर हमें यहां क्या मिला?
हम नामिका के पीछे चल रहे थे; नामिका आगे चल रही थी.हम लोग अब नामिका की कार में बैठने वाले ही थे कि नामिका ने पीछे मुड़कर देखा....धामी हमारे पीछे चला आ रहा था.

" धामी dear तुम? और मै ये क्या देख रही हू? तुम जायका के पीछे?..." नामिका घोर आश्चर्य के साथ बोल पड़ी और हमने भी पीछे मुड़कर देखा और धामी की तरफ मस्त सा smile फैंका!

" नामि darlig! मै तो यह पूछने आया था कि कल अगर हम जायका के घर पर ही मिले तो कैसा रहेगा?.." धामी भी हमारी तरफ देखकर वैसा ही smile फैंकता हुआ बोला, कि हमने उसकी तरफ फैंका था. हमारे मन में ऐसी गुद्गुदी हुई...ऐसी गुदगुदी हुई कि हम बता नहीं सकतें.

"जायका! मै कुछ कह रही हूं; तेरा ध्यान कहां है?.." नामिका की तरफ अब हमारा ध्यान गया।

"अब तू सीधी अपने घर चली जाना।मै धामी के साथ कहीं जा रही हूं... समझी?" नामिका की बात हमारी समझ में तब आई जब कार में नामिका के साथ धामी बैठ गया और कार फू..ररर ये गई....वो गई।


अब हम अकेले थे और सोच रहे थे कि घर में चलने वाले टॉम ऎंड जेर्री SHOW' का समापन अब खुद ही करना पड़ेगा; नामिका की हेल्प अब नहीं मिलेगी! हम सड़क पर खड़े ही थे कि हमारे पांव के पास कुछ गुदगुदाहट और कुछ फुसफुसाहट हमने महसूस की! नीचे नज़र डाली तो वही सफेद बालों वाला छोटासा पप्पी था। हमारी तरफ बड़े प्यार से देख रहा था।

...हमने पलभर के लिए ची सोचा और उस पप्पी की तरफ अपने कोमल हाथ बढाए। पप्पी ने हमारे हाथ में अपना राईट पंजा दिया। हमारे साथ शायद वह friendship का हाथ बढ़ा रहा था। क्या करतें ?...हमने भी उसकी दोस्ती कबूल कर ली और उसे उठा लिया.

...अब हम उस पिल्ले को अपनी गोद में उठाए पैदल ही पड़े. चलते चलते हमें पता ही नहीं चला कि हम नामिका के घर कब पहुंच गए...

'अरे! नामिका तो धामी के साथ गई हुई है और घर पर डब्बू उसका इंतजार कर रहा है। शायद यह बढियासा खाना बना कर ही उसका इंतजार कर रहा होगा! चलो, अब आ ही गए है तो क्यों न अंदर जाया जाए.... डब्बू के हाथ का बढिया खाना ही क्यों न खाया जाए!'

Wednesday, 9 January 2008

TOM AND JERRY SHOW Part-9

जायका के घर में...
'TOM AND JERRY SHOW'..Part-9

...सचमुच ही आफ़त खड़ी हो गई . हमारी बेवकूफी ने यहाँ भी अपना रंग दिखा ही दिया... हमने अपने पांव पर हमेंशा की माफ़िक पत्थर मार ही लिया। आदत से मज़बूर जो थे! हमें क्या जरुरत थी यह बतानेकी कि नामिका की शादी डब्बू हलवाई से होने जा रही है? डब्बू क्या हमारा चाचा लगता था?..... या जिसके सामने हमने नामिका की पोल खोली वो धामी हमारा मामा लगता था?....


...मोटू उर्फे मोटवानी तो हमारे हाथ से फिसल ही गया था...धामी तो हमें एक Cartoon से ज्यादा कुछ नहीं समझ रहा था और हमारी हमेशा मुसीबत में काम आने वाली friend नामिका को हमने नाराज़ कर दिया था! ...अब हमें चिंता खाए जा रही थी कि हमारे घर में चल रहे TOM AND JERRY SHOW का क्या होगा?


" अब कभी मुझे अपनी शकल मत दिखाना, समझी?" नामिका ने पहले काफी लंबा लेक्चर सुनाने के बाद हमें लेक्चर कि आख़िरी लाइन सुनादी। हम चुप-चाप सुने जा रहे थे।

" नामिका, अब बस भी कर! ज़ायका ने यही कहा न कि तेरी शादी डब्बू से होनेवाली है? ....ये तो नहीं कहा कि हो चुकी है? ....अब तो मैं कोलकाता से वापस आ गया हूँ! अब डब्बू से क्या लेना देना? ..." ये कहकर धामी ने हमें काफी राहत पहुंचाई। हम मान गए धामी को....

" लेकिन डब्बू इतना अच्छा खाना बनाता है कि...मैं उसे कैसे छोड़ सकती हूँ?" नामिका ने अपनी problam धामी को समझाई।

" खाना तो अब मैं भी अच्छा बनाना सीख गया हूँ... मैं भी नौकरी की ही तलाश में हूँ! मैं अभी तो मोटवानी के घर पर ही रह रहा हूँ! कितना अच्छा खाना बनाता हूँ, उसीसे पूछ ले नामिके! .... क्या ये ज़ायका कहीं नौकरी करती है? या मेरी माफ़िक ही है?" धामी ने अपने आप को डब्बू के साथ मिलाते हुए हमारे बारे में भी पूछ लिया.....

" हाँ! ये जायका और मैं एक ही ऑफिस में काम करती है... इसकी तनख्वाह मेरे से डबल है... पर छोड़ धामी dear! ... ये बहुत ही कंजूस है, मक्खीचूस है!" नामिका को धामी का हमारे बारे में पूछना नागवर गुज़रा!


" ये क्या तेरे घर के पास ही रहती है?" धामी हमारी आंखों से आँखे मिलाता हुआ बोला। हमने भी शरमाने का नाटक किया। हम पहले स्कूल और बादमें कोलेज में कई नाटक खेल चुके थे....हमें कई इनाम भी मिले हुए थे।

" ज़ायका के घर में एक बहुत बड़ी मुसीबत डेरा जमाए हुए है। हमें अब जल्दी तेरे घर चलाना चाहिए नहीं जायका!" नामिका आँखे मीच-मिचा कर हमें इशारा करती हुई बोली।

" इतनी भी कोई जल्दी नहीं है; यहीं कुछ देर और धामी के साथ बैठ कर..." हमारा बोलना बीच में ही कांट कर नामिका ने धामी से कहा...

"अब हम चलते है धामी darling! कल शाम यहीं पर मिलते है..."

" ठीक है... सोच लेना, खाना मैं भी बहुत बढ़िया बनाता हूँ...कल जायका को भी साथ ले कर आना यहाँ...by, by, I love you..." कहते हुए धामी ने नामिका को अपनी तरफ खिंचा। हमने दूसरी तरफ मुँह घुमा लिया।...पर हमें kiss करने की आवाज तो आ ही गई! हम कान में उंगली डालना भूल गए थे!

Tuesday, 8 January 2008

टॉम ऎंड जेरी शो पार्ट-8

जायका के घर मे...
'TOM AND JERRY SHOW '..Part-8

..और उस मोटू मोटवानी का दूसरा हाथ हमारी तरफ आगे बढ़ा... हौले, हौले वह हमे दुलारने लगा था। हमने आँखें बंद की हुई थी! सबकुछ बहुत ही अच्छा लगा रहा था। हमारा एक हाथ तो मोटवानी के हाथ में जमा हुआ था ही ; अब हम दूसरे हाथ से मोटवानी को सहलाने लगे!

..अब हमारा हाथ मोटवानी के घने बालों पर घुम रहा था। उसके लंबे बाल नामिका के बालों की तरह घने तो थे, पर वो वाली नरमी नहीं थी। हमें इस समय सिर्फ गरमी चाहिए थी; नरमी की क्या ज़रूरत थी? हमें मोटवानी पहले भले ही अच्छा न लगा रहा हो... इस समय तो वह हमें इतना मज़ा दे रहा था, इतना मज़ा दे रहा था की हम नामिकाको भूल ही गए थे। यही मज़े हम उससे लूटते रहते थे....लेकिन मोटवानी जैसा मज़ा वो कहाँ दे सकती थी कमबख्त!


"...मोटे darling! बोलो...कुछ तो बोलो!... हमारे कान तुम्हारी आवाज़ सुननेको को तरस रहे है darling!.... तुम्हारे होठोंसे तो हम पी ही रहे है...चुक, चुक,चुक चुक...अहाहा! क्या मज़ा आ रहा है...अमृत सा घुल रहा है हमारे मुख में... ऐ जालिम मोटू, मोटवानी darling! हम तो अब उम्र भर तेरे संग ही रहेंगे. बता तो सही हमारा बदन छू कर तुम कैसा महसूस कर रहे हो?"

...और एकदम से हमारे गाल पर किसीने चूंटी कांटी।....." अरे ओ मोटे, ये भी कोई प्यार करनेका ढंग है?"
चिल्लाते हुए हमने आँखे खोली...

" अरे ये तो तुम हो नामिके! मोटवानी कहाँ गया? कितना अच्छा लग रहा था... तुम यहाँ क्यों आई ? " हम इधर उधर देख रहे थे। हमारे सामने एक सफ़ेद बालों वाला छोटासा कुत्तेका पिल्ला खड़ा था; नामिका भी थी और उसका friend धामी भी था! धामी हंस रहा था और नामिका लाल-पीली हो रही थी!

" तुम आराम से सो रही हो जायके! मोटवानी को थोडी देर के लिए सही... अपना बनाकर अपने पास रखना तो तुम्हे आया नहीं! उसको अभी अभी किसी और लड़की ने पटाया और उसकी मोटर साइकिल पर पीछे बैठ कर उड़न छू हो गई... वो तो धामी ने देख लिया और मुझे बताया तो मैं यहाँ आई! तुने तो मेरा भी मज़ा किरकिरा कर दिया...बेवकूफ कहीं की!" हमें डांट लगते हुए ,नामिका ने फिर मूड बनाने के लिए धामी का हाथ जोरसे थाम लिया।

..अब हमारी समझ में आया कि हमें यकायक नींद आ गई और हमारा हाथ मोटवानी के हाथ से छुट गया। फिर क्या था... मोटवानी ने इधर उधर देखा होगा! उसे दूसरी लड़की नज़र आ गई जो हंस कर उसे बुला रही होगी! फिर क्या होना था?.... वही हुआ जो हमेशा होता आया है... अरे ये लड़का भी हमारे हाथ से निकल गया।

..कहीं से बालों वाला छोटासा पिल्ला हमारे पास आ गया और नींद में हम उसे मोटवानी समझ कर प्यार करने लगे तो... वह भी हमें प्यार करने लगा और ये सब हुआ!

"नामिका! अब घर चलतें है। ... छोड़ धामी को! ...तेरी तो अब उस डब्बू से शादी होनेवाली हैं!" हमने नामिका को याद क्या दिलवाया.... हमारे लिए तो आफत खड़ी हो गई!

Thursday, 3 January 2008

TOM AND JERRY SHOW Part-7

जायका के घर में..

'TOM AND JERRY SHOW'..Part-7

'...आहाहा! garden में तो मज़ा आ रहा है। दिल करता है , बस यही रह लूँ; फूलों कि हसीन क्यारियाँ और उपरसे मेरे मन चाहे गुलाब के फूलों का तो कहाना ही क्या?.... गुलाबी, लाल, पीले, ऑरेंज , व्हाइट .... कितने सुंदर फूल है यहाँ पर ....धरती पर मानों स्वर्ग उतर आया है आहाहा! और उधर तो लगता है कि.... '

" किस तरफ देख रही हो जायका? उन दो लड़कों की तरफ, जो Khallas-boyes लग रहे है ? " कहते हुए नामिका ने मुझे चुंटी तो कांटी ...पर गलत जगह पर कांटी और मैं उखड गई। जवाब में मैंने उसकी, उसी जगह पर इतनी जोर से चुंटी काँटी कि तिलमिलाकर उसने चीख मार दी.... उसकी चीख सुनकर वो जो दो लड़के Khallas-boyes कुछ ही दूरी पर खडे बतियाँ रहे थे; अब पास आ गए....

" हाय sweet heart नामिका! ये तो तुम हो... और ये लड़की कौन है जो तुझे छेड़ रही है?" लंबा लड़का हमारी तरफ घुर कर देखता हुआ बोला। जाहिर था कि वह नामिका को जानता था। उसका ex boy-friend भी रहा होगा ....पर मुझे क्या! ...लेकिन उसकी यह ज़रूरत कि वो नामिका को sweet heart कहे और हमें उससे छेड़छाड़ करने वाली लड़की बताएं...

" ऐ मिस्टर, तुम्हारी ज़रूरत कैसी हुई हमारे बीच आने की?... हम अभी police को बुलाते है, पकड़ कर अंदर कर देगी तब पता चलेगा कि 'ये लड़की कौन है!' "... कहते हुए हमने 100 number पर फ़ोन करने के लिए पर्स से अपना mobile निकाला....

" पागल हो गई क्या?... ये धामी है, मेरा बहुत अच्छा दोस्त है... मतलब कि पहले था। चार महीने पहले कोलकाता चला गया था... आज इतने दिनों बाद मिला है!" कहते हुए नामिका ने उसे गले लगाया। दूसरा ठींगू लड़का हमारी तरफ देख रहा था... शायद हमें गले लगाने की सोच रहा होगा ,पर उसने ऐसा नहीं किया.... हमारी शकल ही ऐसी थी कि लड़कें हमसे दो हाथ दूर रहना ही पसंद करते थे।

.... दस मिनट तक नामिका, उस धामी के साथ अटखेलियाँ करती रही और दस मिनट तक हम उस ठींगू कि आंखों में आंखें डाले खड़े रहे कि अब पास आया, तब पास आया! .... लेकिन वह नही आया और फिर हमारा हाथ mobile कि तरफ गया!


" जायका! mobile अब पर्स में वापस रख दे darling! " नामिका ने हमें darling कहा और हम फिर से पानी, पानी हो गए।

"हां! तो नामिका बता अब यही खड़े रहना है या कुछ और भी करना है?" हमने नामिका से सीधा सीधा पूछा।

"अरे यार, ऐसा करते है... धामी और मैं तो friend तो है ही; हम दोनों उस तरफ चले जाते है..... उस बरगद के पेड़ के पीछे लगता है कि कोई नही है..... और..." नामिका बोलते बोलते रूक गई।

"जायका! ये मेरा दोस्त मोटवानी है! ... तुम्हे कैसा लगा?... तुम दोनों ही ठींगुजी हो!... तुम दोनों अपनी जोड़ी आराम से बना सकते हो! " धामी ने सलाह दी और हम मान गए। अब तक हमारा लंबा या नाटा, काला या गोरा, दुबला या मोटा... कोई भी boy-friend नहीं था... फिर मोटवानी भी तो लड़का था, ऐसी वैसी चीज़ थोडे ही था!


..हम ने मोटवानी से हाथ मिलाया... पर मन में तो घर में चल रहा ' TOM AND JERRY SHOW' ही हिलोरें ले रहा था। नामिका अब धामी के साथ बरगद के पेड़ के पीछे चली गई थी। बार बार लग रहा था कि जा कर उसे देख आए कि वहां का सीन क्या है... पर मोटवानी हमारा हाथ पकडे हुए था... और कुछ कर भी नहीं रहा था कमबख्त !