Sunday, 27 July 2008

baat kaa batangad banaana meri purani aadat

1. बात का बतंगड़ बनाना...मेरी पुरानी आदत!



यह मेरे लिए कोई नयी बात तो है नही... मैं बचपन से ही बात का बतंगड़ बनाती आ रही हूँ! जब मैं आठ साल की बच्ची थी.... यह मत समझना की मैं तब पांचवी कक्षा में पढ़ती थी !....लेकिन तब मैं paanchvi पास वालों से ज्यादा tej थी !... अब देखिए कि मैंने बात का बतंगड़ कैसे बनाया!

शोर मच-मचा गया की पड़ोस के घर में साँप देखा गया....देखने की बात भी उनके नौकर ने प्रसारित की थी! ...रविवार का दिन था...सभी आसपास के पड़ोसी घर में बैठे बोर हो रहे थे.... उस जमाने में इडियट बौक्स ने (....अजी अपना टी.वी.) जनम लिया नहीं था!....सभी भागे भागे बाहर निकल आए... नया शोर मच गया.... ' कहाँ है साँप? ...कहाँ है साँप?'



...अब लोग इकठा हुए थे तो मेरा भी घर से बाहर निकल कर आँगन में आ कर खड़ा होना लाजमी हो गया!... एक तो रविवार; स्कूल की छुट्टी!...कुछ नहीं करो तो मज़ा भी नहीं आता न?... ऐसे में अगर साँप देखने को मिल जाता है, तो इससे बढ़ कर खुशी कौन सी हो सकती है bhaiyaa !

...सबसे पहले तो मई लोगों के पांवो के बीच से रास्ता निकालती हुई पड़ोसी के नोकर तक जा पहुँची!...क्या करें ; हाईट जो छोटा था!

...अब साँप को मैंने कहाँ और कब देखा!..यह मैं अगले पार्ट में bataaugii !...तब तक के लिए इजाज़त!...क्यों की 'बात का बतंगड़ ' बनाने के एक ताजा सिलसिले में मुझसे मिलने या समझ लो की झगडा करने कुछ लोग आए हुए है!