Friday 24 April 2009

राज भाटियाजी...आए और चले भी गए!


राज भाटियाजी..... आए और चले भी गए!



'हरियाणवी ताउनामा '.... ताउजी की अमृत-वाणी का रसास्वादन करने की तो भैया हमें आदत पड़ चुकी है!.... जैसे चाय के बिना दिन शुरू नही होता, वैसे ताऊ-नामे के बगैर ब्लोगिंग में शिरकत करना ना-मुमकिन तो नहीं, पर मुश्किल जरुर हो जाता है!.... क्या कहते हो ताउजी?


...... और फ़िर सभी तो यहाँ अपने है!... हर ब्लॉग की, हर ब्लोगर की अपनी एक अलग पहचान है!... हर ब्लॉग में एक नयापन मौजूद होता है!


..... राज भाटियाजी की हमसे भी सिर्फ़ फोन पर ही बात-चीत हुई। उनकी माताजी की तबियत अचानक ख़राब होने की वजह से वे म्यूनिख से उड़कर भारत आ पहुंचे और सीधे रोहतक चले गए अब उनकी माताजी की तबियत कुछ संभल गई है... उन्होंने यह खुश-ख़बर दी!.... १८ से २४ एप्रिल तक का प्रोग्राम वे बना कर आए थे!.... आज सुबह ९ बजे की लुफ्तांसा की फ्लाईट से म्यूनिख के लिए रवाना हो गए!


..... वे जब दिल्ली आ पहुंचे थे तब ऊहोने आने की सूचना मुजे फोन पर दी थी !.... बाद में मेरे यहाँ २३ एप्रिल के रोज आने का प्रोग्राम भी बनाया था....लेकिन वे २३ एप्रिल के रोज शाम के समय दिल्ली पहुंचे और दूरी की वजह से मेरे घर नहीं पधार सकें!.... उन्होंने फोन पर इत्तिला देते हुए, असमर्थता भी प्रकट की!.... यह सो समझ में आने वाली बात है कि उनके लिए तो अब भारत ही विदेश के समान है!... उनके लिए दिल्ली के रास्तों का सही पता लगाना भी तो भगिरथ कार्य है!.... वे लगभग ३० वर्षों से म्यूनिख (जर्मनी) में रह रहे है!


......... सुबह ८ बजे उन्होंने एयर-पोर्ट से फोन किया ..... और मुझे अपना निमंत्रण याद दिलाया कि 'मैंने उनके यहाँ प्रोग्राम के मुताबिक अवश्य पहुंचना है! '.... मैंने उन्हें ' शुभ-यात्रा' का संदेश दिया!.... समय का अभाव था; ज्यादा बात-चीत सम्भव भी नहीं थी!


...... मैं दिनांक २ मे के रोज लुफ्तांसा एयर-वेज से जर्मनी जा रही हूँ!... मैं अर्लांगन जा रही हूँ; जहाँ मेरा परिवार, मेरे बच्चे रहतें है!... करीबन तीन महीने जर्मनी में रहने का मेरा प्रोग्राम है!.... भाटियाजी के यहाँ मैं आमंत्रित हूँ!.... उनके और मेरे परिवार का परिचय भी तब आपस में होगा!.... ऐसे में लगता है कि दुनिया कितनी छोटी होती जा रही है!


........जर्मनी मै पहली बार जा रही हूं; ....बहुतसी जगहों पर घुमने का प्रोग्राम बना हुआ है!... कुछ समय से व्यस्तता के कारण मैं कुछ लिख नहीं पाई! .... लेकिन अब ऐसा नहीं होगा और बिच बिच में यहाँ अपनी उपस्थिति जरुर दर्ज करवाती रहूंगी!


........ अब भले ही इसे 'बात का बतंगड़ समझा जाए'.... लेकिन आनंद-दायक तो है! ही!