Saturday 10 September 2011

हाय रे दोस्ती!...(व्यंग्य)



'दोस्ती ' टेम्पररी चीज होती है! ( व्यंग्य )

हमारी समझ में जो आया है वह यही है कि भैया! दोस्ती एक टेम्पररी चीज होती है !...

....अब आप फ़िल्मी कहानियों में उतर कर देखो तो दोस्त और दोस्ती को इतनी गहराई तक ले जाते है कि पूछो मत!...फ़िल्मी दोस्त और उनकी दोस्ती के कद को देखते हुए हम गैर फ़िल्मी लोग, अपने आप को बौनो की कैटेगरी में डालने के लिए मजबूर हो जाते है!...लगता है हम अपने दोस्त के लिए कुछ भी तो नहीं कर रहे ....कैसे मनुष्य है हम!...हम तो मनुष्य कहलवाने के भी लायक नहीं है!....और हमारा दोस्त भी यही सोचता है कि 'मै कितना स्वार्थी हूँ...मैंने तो दोस्ती के नाम को डुबो कर ...नहीं यार!...कलंकित करके रख दिया!'

...अरे फ़िल्मी कहानियों में तो एक दोस्त के लिए दूसरा दोस्त....अपनी प्रेमिका, कोठी, बंगलें, कारें और माँ-बाप तक को किनारे करने में देर नहीं लगाता!....जान तो बहुत ही सस्ती चीज होती है!....उसे भी दोस्ती के नाम कर दिया जाता है...लेकिन हम अपनी बात करें तो....हमारे लिए तो भैया यही सब चीजें प्रेमिका वगैरा वगैरा ...जी जान से प्यारी होती है!...दोस्ती के नाम हम इनमें से किसीका भी त्याग नहीं कर सकते!...दोस्ती के नाम पर हम बस! कभी कभार दोस्त के साथ चाय-पानी गटक सकते है,फिल्म देखने जा सकते है या फोन और इंटरनेट का इस्तेमाल कर सकते है!...कुछ यारदोस्त लोग कपडे या पैसे उधार लेते या देते है....लेकिन उधारी के चक्कर में जब चीज वापस करने की नौबत आती है तो दोस्ती के दूध का दही बनते देर नहीं लगती!

...याद आया! अपने महान बीग बी..अमिताभ बच्चन जी...और महान राजकीय हस्ती अमर सिंह जी भी दोस्ती की नौका में कुछ ही समय पहले सवार थे...अमर सिंह जी ने तो बच्चन जी को बड़े भाई का दरज्जा दे रखा था!..दोस्ती की धूम मची हुई थी!...जहाँ भी जाते थे ...साथ साथ जाते थे...अमर सिंह जी का मुंबई का एड्रेस...बच्चन जी का घर' जलसा' या 'प्रतीक्षा' था!...सभी को याद होगा कि अमर सिंह जी ने कुछ ही साल पहले बच्चन जी के बेटे को बर्थ डे गिफ्ट के तौर पर एक बहुत महंगी कार भी दी थी...भैया! इस बात का बवंडर उठना चाहिए तो नहीं था ...लेकिन उठा था!...अब कार तो कोई भी हो...महंगी तो होगी ही...लेकिन लोगो को कहने, बोलने,लिखने या फोटोएँ दिखाने से कौन रोक सकता है? ...दोस्त्ती को लोग समझे तो कुछ बात बने!....तो उस कार की इतनी एडवरटाइज हो गई कि पूछो मत!


...लेकिन समय ने पलटा खाया....ऐसा हुआ कि इन दोनों दिग्गजों की दोस्ती का बल्ब हमने टूटते हुए देखा...बहुत कुछ हुआ ! आखरी खबर के मुताबिक़ अमर सिंह जी दिल्ली की तिहाड जेल में पहुचाएं गए...वे बीमार भी थे ...उनके बहुत से करीबी उनसे मिलने तिहाड़ जेल पहुँच भी गए ...लेकिन ऊं हूँ!..बच्चन जी नहीं गए...अब दोस्ती के बारे में हम और क्या कह सकते है?

...और भी बहुतसी फ़िल्मी हस्तियाँ और राजनीतिज्ञों के बारे में ऐसा ही देखने और सुनने को मिला....जो समय की नजाकत पहचान कर कभी दोस्त तो कभी दुश्मन के किरदार में नजर आते है!....तब हम इस नतीजे पर पहुंचें कि आम आदमी भी गया- गुजरा नहीं है!....वह भी दिग्गजों वाली हैसियत रखता है!दोस्ती की कहानियाँ सिर्फ नाटक या फिल्मों की शोभा बढाने के लिए ही होती है!...बहुत सी अन्य चीज-वस्तुओं की तरह दोस्ती भी एक टेम्पररी चीज होती है!

( फोटो गुग्गल से ली हुई है!)

Wednesday 11 May 2011

राम को 'ओरामा!' और शाम को 'ओशामा'..क्यों न कहे?






ओसामा, ओबामा या सुदामा...


सभी में समाया 'आमा'!

...एक जगराते में..याने कि जागरण में...हमारा जाना हुआ!....जगराता 'माता' का था...लेकिन जैसे कि आप सभी जानते है, सिर्फ 'माता' का नाम या भजनों से काम नहीं चलता!...जगराते में शिवजी, कृष्ण कन्हैया, राधा, राम-लक्ष्मण-सीता और अनेक देवी-देवताओं को एंट्री दी जाती है!..अब तो श्री सत्य साईबाबा भी शामिल हो चुके है....लगता है आगामी कुछ सालों में महात्मा गांधी और अंबेडकर भी शिरकत करें!

...तो हम जागरण याने कि जगराते का आनंद लूट रहे थे!....एक के बाद एक देवी-देवताओं का आगमन होता रहा...जयजय-कार होती रही!...वातावरण भजनों के रस से सराबोर होता रहा!....ऐसे में हमारी फिल्में कमाल दिखाती है...फ़िल्मी गानों की धुनों पर श्रोतागण भजनों का खूब आनंद गटकते है!....जागरण में राम-सीता के वनवास का वर्णन किया जा रहा था....राम सीता माता से अपने प्यार का इजहार कर रहे थे...महाराज श्री ने भजन छेड़ दिया और श्रोता गण प्रेम-रस में डूब गए...राम जी , जानकी मैया से कह रहे थे....

" सौ साल पहले मुझे तुमसे प्यार था, मुझे तुमसे प्यार था...आज भी है और कल भी रहेगा!..वाह , वाह...श्रोता गण मंत्र-मुग्ध हो रहा था..तालिया बजा रहा था!...राम-सीता के अलौकिक प्रेम की कहानी को गले से नीचे उतार रहा था..कुछ श्रोता महाराज श्री के साथ गा भी रहे थे...

...इसके बाद...संत मीरा बाई के एक भजन को चांस दिया गया...श्रोता गण झुमने लगा!...'राधा का भी शाम हो तो मीरा का भी शाम ....अब मीरा और राधा के बिना श्याम तो अधूरे ही माने जाते है...सो कृष्ण कन्हैया की कहानी आलापी गई!...वाह, वाह!...राधा का कृष्ण-प्रेम क्या कहने!..अब बारी आई कृष्ण और सुदामा की!

...कहानी शुरू हुई उनके बचपन के प्यार की!...करते करते जवानी तक पहुंच गई!...समय ने करवट बदली कृष्ण द्वारकाधीश बन गए!,,, उन्हें राजगद्दी मिल गई! ...लेकिन सुदामा के समय ने करवट बदली ही नहीं!..वह पहले भी फटेहाल थे और शादी के बाद, बच्चे पैदा होने के बाद भी ....बेचारे गरीबी से झुझते रह गए!...अब भाग्य पर किसका बस चलता है, जो सुदामा का चलेगा?

...लेकिन सुदामा ने हिम्मत हारी नहीं ..वे अपने बचपन के सखा 'कृष्ण ' से मिलने द्वारकापुरी चले गए... हो सकता है ,बचपन का प्रेम कोई कारनामा कर दिखाए...

...और महाराज श्री ने एक फ़िल्मी कव्वाली की धुन का इस्तेमाल करते हुए भजन आरम्भ किया..." अरे पहरेदारों !...कन्हैयासे कह दो ...सुदामा महल के करीब आ गया है!...लोग तालियाँ बजा रहे है...महाराज श्री का गाने में भी साथ दे रहे है...अब हमने भी गाने में साथ देना शुरू कर दिया.....'सुदामा महल के करीब आ गया है!'

...रात गहरा रही थी और हमें नींद ने धर दबोचा ...अब सपने में हमें एक सुंदर सा महल दिखाई दे रहा था...चारो और लहलहाते खेत, हरेभरे पेड़ ...अहाहा..हा ...क्या सीन था! ...शायद यह पाकिस्तान के एबटाबाद का इलाका था...महल ओसामा का था ...महल पर एक हैलिकोप्टर मंडरा रहा था !...हैलिकोप्टर अमेरिका का ही होने का अंदेशा भी हमें हो गया ....इधर महाराज श्री गा रहे थे...सुदामा महल के करीब आ गया है...अब हमारे मुंहसे छूटते ही निकल गया...

"...अरे पाक वालों !..ओसामा से कह दो...ओ,ओ.....ओबामा महल के करीब आ गया है!"
..और जमा लोग भी नींद की ही गिरफ्त में थे ...वे भी हमारा साथ देने लग गए...'ओबामा महल के करीब आ गया है!'.....'ओबामा महल के करीब आ गया है!'

...और महाराज श्री भजन गाना छोड़ कर माइक पर चिल्लाए..." ये क्या तमाशा हो रहा है?...ये ओसामा ...ये ओबामा बीच में कहाँ से टपक पड़े?..."

और सोए हुए लोग जाग गए...हम भी जाग गए...अब भजन फिर पूर्ववत गाया जाने लगा...कन्हैया और सुदामा की जयजय-कार हुई...

...ठीक इस के दो दिन बाद...जगराते में देखा गया हमारा सपना सच हो गया और ओबामा ने ओसामा को धर दबोचा!....

...अब हम 'हे राम' को ...ओ रामा! कहेंगे ...और 'हे शाम' को ...ओ शामा! कहेंगे! किसी को हर्ज है?....अगर दूसरे ब्लोगर साथियों को सपने आते है और वे सच हो जाते है..तो हम भला पीछे क्यों रहेंगे...जय हो...ओरामा!...जय हो ओशामा!
( फोटो गूगल से ली हुई है!)

ZEAL: रूह को सहलाती सुरभित समीर.....[A caressing breeze]

ZEAL: रूह को सहलाती सुरभित समीर.....[A caressing breeze]

Thursday 5 May 2011

लंदन और आसपास की जगहें...

लंदन और आसपास के इलाकों के बारे में ..जानकारी चाहिए!

मैं अगले महीने जून में लंदन जाने का प्रोग्राम बना रही हूँ!...किसी पॅकेज टूर के अंतर्गत जाने की सोच रही हूँ!...मैं और मेरे हसबंड..दोनों ही यूरोप घुमने का प्रोग्राम बना रहे है!...क्या पॅकेज टूर इंडिया से ले कर जाना ठीक रहेगा या लंदन जा कर वहां से लेना ठीक रहेगा? ...लंदन में मेरे जेठजी के यहां चार-पांच दिन रहने का प्रोग्राम भी है!...क्या लंदन से पॅकेज टूर ले कर जर्मनी में प्रोग्राम की समाप्ति हो ऐसे भी पॅकेज मिल सकते है ?....जर्मनी में मैं अपनी बिटिया के यहां दो महीने रह कर इंडिया वापस आना चाहती हूं!...अगर पॅकेज टूर प्रोवाइड करने वाली ऐसी कोई कंपनी का नाम और फोन नंबर अगर मुझे मिल सकता है तो...आभारी रहूंगी!..लंदन निवासी ब्लोगर साथियों से मिलने की भी मेरी दिली इच्छा है... जर्मनी में श्री.राज भाटिया जी से भी मिलना चाहूंगी!...

...आप से अनुरोध है कि कृपया मेरा मार्ग-दर्शन करें!...

...यह जानकारी मैं समझती हूं कि सभी के लिए उपयुक्त रहेगी!

Friday 29 April 2011

खटक रही है कुछ कमी...

आखिर हमने कह डाला...

क्या कहें?...
या फिर कुछ भी न कहें?
या फिर चुप ही रहे?....
यारो! ...आप ही बताएं....
आप की चुपकी को ...
आप की 'हाँ ' समझतें है....
ना..ना...करते हुए भी....
चलिए!...हम कुछ कहतें है......


चर्चा मंच पर गए थे हम....
पता चला एक समारोह का...
पता चला कुछ....
सन्मानित होने वाले...
ब्लॉगर साथियों का.....
इक्यावन नाम पढ़ लिए हमने.....
एक नहीं....ग्यारह बार पढ़े हमने....

क्या बताएं....
कुछ गले में अटक सा गया...
कुछ नाम और जुड़ने चाहिए थे...
ऐसा हमें रह रह कर लगा....

याद आए राज भाटियाजी...
वे नदारद थे लिस्ट में से....
मनोरंजन से भरपूर....
जिनकी हर पोस्ट पाई है हमने....
उनका 'तिलियार लेक 'वाला मेला ...
यार लोग कैसे भूल गए?...

हास्य कवि अलबेलाजी....
लिस्ट में अगर होते....
हास्य की तरंगे ...
पैदा हो जाती आप सुक.....
उन्हें देखने सुनने वाले...
हास्य-रंग में रंग जाते.....

संजय भास्कर मुस्कुराएँ इस लिस्ट में....
न 'झील' को समझा गया इस काबिल....
ताउजी, ताउजी कहते हुए कहकहे लगाने वाले...
कैसे भूल गए...उस रामपुरिया ताऊ को...

जिसने इतनी भावपूर्ण रचनाएं प्रस्तुत की...
कैसे भूल गए उस वन्दना को....
आशा जोगलेकर भी है...
बला की कवियित्री ......
यात्रा वृत्तान्त भी बहुत से दिए है इसने...
हिन्दी और मराठी ब्लोगिंग में.....
बहुत बड़ा योगदान है, इसका भी तो....
क्यों नाम नहीं है इसका लिस्ट में...

डॉ.नूतन 'नीति' ने भी यहाँ...
जीता है हम सबका मन.....
इसके नाम का भी देखिए....
नहीं हुआ है चयन....
रचना दीक्षित को भी साथियों...
क्यों भुलाया गया?....
यही सब सोच सोच कर....
हमारा सिर घूम गया.....

लिस्ट में हमें....
कुछ ऐसे नाम मिलें...
जो अनजान थे हम सबसे...
चाहे सुनने में कितने ही हो भले...

हाँ!...अगर सन्मानित करना था....
सिर्फ इक्यावन नामों को...
तो भी मुश्किल तो कुछ भी न था....
ब्लोगिंग में योगदान देने वाले....
अथाग मेहनत करने वाले....
कुछ नयापन पेश करने वाले....
झुझारू, कर्मठ और लायक...
ब्लॉगरों का चयन जरुरी था...

झुझारू कर्मठ और लायक...
कुछ नया कर दिखाने वाले...और मेहनतू
ब्लॉगर है इस लिस्ट में....
इनकार नहीं है हमें...
बल्कि..बहुत खुशी है हमें....
उन सबको बहुत बहुत बधाई....
कल ३० एप्रिल को है ब्लॉगर संमेलन....
ब्लोगर मिलन की सुमधुर घड़ी आई....

चाहते है हम कारवाँ यूँ ही चलता रहे....
नए..पुराने साथी...साथ मिल कर यूँ ही....
ब्लॉग जगत का सुहाना सफ़र ....
मस्त बन कर तय करते रहे...



Monday 4 April 2011

...स्त्रियों पर होने वाले अत्याचारों की कहानी?

एक सीरियल'..ना आना इस देश मेरी लाडो!'



... सीरियल का नाम है..'ना आना इस देश मेरी लाडो..' ...जो मैं लगभग देढ साल से देख रही हूं!...क्या खूब नाम चुन कर रखा गया है सीरियल का!...कलर्स चैनल पर प्रतिदिन रात साढ़े दस बजे प्रसारित हो रहा है...शनीवार और रविवार अवकाश रहता है!


....इस सीरियल की शुरुआत में ही लिखा हुआ आता है कि यह किसी ख़ास परिवेश, धर्मं या जाति से संबंधित नहीं है ..इसमें स्त्रियों पर हो रहे अत्याचारों को ही दिखाया जा रहा है...वगैरा, वगैरा!


....जब से मैं देख रही रही हूं...इस सीरियल की कहानी एक 'भगवानी ' नाम की एक 'जालिम' महिला के इर्द-गिर्द ही घूम रही है!..विधवा है...पैसेवाली है,....यह अम्माजी के नाम से सर्वत्र जानी जाती है!....इसके तीन बेटे है...तीन बहुएं भी है!...नौकर, चाकर, देवर देवरानी और उनका बेटा और बेटी भी है!...भरा पूरा परिवार है!


....यही अम्माजी औरतों पर पूरजोर अत्याचार किए जा रही है!


...बहूएँ तो इसके नाम से कांप उठती है!...देवरानी की बेटी को घर में नौकरानी बना कर रखा हुआ है ..क्यों कि वह स्त्री है !..सबसे छोटे बेटे राघव की पत्नी सिया नई विचार धारा की है...सिया और राघव का प्रेम-विवाह है!...अम्माजी से वही सबसे ज्यादा प्रताड़ित होती दिखाई है!..घर में उसका बहुत बुरा हाल है!


...कहानी आगे बढ़ती है ...अम्माजी, देवरानी की बेटी की और उसकी सहेली की इसलिए हत्या करवाती है...क्यों कि वे दोनों सगोत्र के लड़कों से शादी करना चाहती थी!..लडकों की भी अम्माजी हत्या करवा देती है...कहानी की कमजोरी तो देखिए कि अम्माजी पर कोर्ट में केस भी चलता है पर वह निर्दोष छूट जाती है!


...आगे चल कर पता चलता है कि अम्माजी ने अपनी बेटी पैदा होने पर उसका त्याग कर दिया था...वही बेटी डाकू 'अंबा' बन कर अम्माजी से टक्कर लेती है...वाह भाई वाह!....इस समय अच्छा लगता है कि अम्माजी को मात मिलने वाली है...लेकिन अफ़सोस कि नहीं मिलती!...


.....अम्माजी की बहू 'सिया' जब जुडवा बेटियों को जन्म देती है..तब अम्माजी उन बेटियों को जान से मार डालने के लिए कई हथकंडे अपनाती है...लेकिन कामियाब नहीं होती!...न हुई तो क्या हुआ?....बेटियों को बचाने की कोशिश में बहू' सिया' मृत्यु के मुख में चली जाती है!...और अपनी पत्नी और बेटियों को बचाने वाला अम्माजी का बेटा राघव भी मृत्यु को प्राप्त हो जाता है...खैर ..दोनों बेटियां बच जाती है! ...एक बेटी 'दीया'अम्माजी के यहां पल रही है और दूसरी बेटी' जिया' अंबा पाल रही है!


....समय आगे बढ़ता है..अम्माजी अब गांव से दिल्ली आ चुकी है...यहां भी ठाठबाठ से रह रही है...कमाई का जरिया तो बेईमानी ही है!...अम्माजी की बेटी अंबा भी अब डकैती का काम छोड़ कर दिल्ली आ कर बस गई है!..वह शादियों के प्रबंधन का काम कर रही है!...इसकी भी कमाई अच्छी हो रही है!..अम्माजी और अंबा ..एक दूसरी के बारे में कुछ भी जानती नहीं है!..कहानी को आगे बढाने के लिए यह भी जरुरी था!


....अम्माजी के बेटे गलत काम में शुरू से ही साथ देते आए है...बेटा गजेन्द्र और जोगेंद्र अम्माजी के कहने पर और अपनी इच्छा से भी कई हत्याए कर चुके है ...नौकर 'यशपाल' भी खूंखार भेड़िए जैसा है...यह अम्माजी के इशारों पर अब तक कई खून कर चुका है...क़ानून की गिरफ्त में अब तक अम्माजी का कोई भी मोहरा नहीं फंसा है.... कहानी लेखक को बधाई!


...इधर अम्माजी के बेटे गजेन्द्र के बेटे ..याने कि अम्माजी के पोते की शादी अमेरिका निवासी लडकी से होने जा रही है...लेकिन अम्माजी की मरजी के खिलाफ कैसे हो सकती है?..अम्माजी बहुत अकलमंद तो है ही ...अब तक तो अक्ल का इस्तेमाल करके ही सैकड़ों अपराध कर चुकी है!...वह ऐसी चाल चलती है कि लडकी ही ऐन शादी के फेरों के समय शादी करने से इनकार कर देती है और अमेरिका वापस चली जाती है!...अम्माजी जो चाहती थी वही होता है!...लेखक को फिर एक बार बधाई देने का मन कर रहा है!..जय हो अम्माजी की!


...लेकिन शादी का प्रबंधन संजोग से ( ...ऐसे संजोग तो कहानियों में आते ही है ) अंबा के हाथ में है...इस वजह से अंबा के घर पल रही राघव और सिया की बेटी 'जिया ' इस शादी में उपस्थित है...वैसे भी वह अपनी जुडवा बहन 'दीया' की सहेली भी है...दोनों एक ही कोलेज और कक्षा में पढ़ रही है!...लेकिन असलियत जानती नहीं है!


....शादी के प्रबंधन के लिए एक युवा लडकी 'नेहा' भी कार्यभार संभाल रही है!..उस पर अम्म्माजी के पोते यानी कि देवर के बेटे की बुरी नजर है


...कहानी में अब गांठे लगाने का काम लेखक ने आरंभ कर दिया है!... .


..तो होता यह पोता 'नेहा' को बस में करने कि कोशिश करता है...लेकिन उसके हाथो इस बुरे काम को अंजाम देते वक्त 'नेहा' कि ह्त्या हो जाती है!...अम्माजी अब पोते को कानूनी शिकंजे से बचाने के दावपेच खेलती है!....देवर का बेटा हुआ तो क्या हुआ...उसका पुरुष होना और अम्माजी के खानदान से होना ही काफी है!....'दिया' ने खून होते हुए अपनी आँखों से देखा है.. तो इस दरमियान 'दिया' की गवाही अहम् होती है!...लेकिन दिया को कोर्ट जाने से रोकने के लिए अम्माजी गुंडे -बदमाश भेजती है !


...बहुत लड़ाई झगड़े और खून खराबा इस समय दिखाया गया है....और दिया को बचाते हुए अम्माजी की बेटी 'अंबा' जान गवां बैठती है!...बहुत ही दारुण प्रसंग दिखाया गया है!


....यह है इस सीरियल की अबतक की कहानी!...स्त्रियों पर होने वाला अत्याचारों की पराकाष्ठा जरुर दिखाई गई है...लेकिन क्या सही में हमारा समाज ऐसा है?.....क्या अम्माजी जैसी स्त्रियों का समाज में अस्तित्व है?...अगर अपराधी प्रवृत्ति की स्त्रिया हमारे समाज में है, तो क्या क़ानून उनका कुछ नहीं बिगाड़ सकता?....क्या इस सीरियल को दिखा कर लेखक और टी.वी. चैनल वाले यही कहना चाहते है कि यह सब हंमेशा के लिए ऐसे ही चलता रहेगा? ...इसमे कभी कोई बदलाव आएगा ही नहीं?


...अगर आगे की कहानी में भी अम्माजी कत्लेआम करती ही जाएगी तो औरतों के खिलाफ होने वाले अत्याचारों को दिखाने की क्या जरुरत है?


...सीरियल के सभी कलाकार अपनी अपनी भूमिका के लिए अच्छे है!


.....महेन्द्र सिंह धोनी की क्रिकेट टीम ,भारत का दुनिया में डंका बजा चुकी है...क्रिकेट का 'वर्ल्ड कप ' हमारा हो चुका है!...चारों तरफ खुशियों के परचम लहरा रहे है....ऐसे में नया संवत्सर अपने पावन कदम रख चुका है!...सभी को नवरात्री की ढेरों शुभ-कामनाएं!

Saturday 19 March 2011

होली आई...होली गई!



...मेरी होली मजेदार रही...और आपकी?







रंगों के बहाने रंगीन सपने...
चित्रित करने आती है होली....
रूठो को मनाने का मौका...
हमें दे जाती है होली....
कुछ भी कह दो, कुछ भी बोलो...
गाली भी लगती है भली...
गुजराती,पंजाबी, मराठी नहीं...
यहाँ मजाक की चलती है बोली...
ढोल.ताशे, मृदंग की थाप पर...
हमें खूब नचाती है होली....

....क्या कहने!...बहुत अच्छा त्यौहार है....खुशी खुशी मनाओ !...और हमने मनाई होली!...मैंने करीबन दस साल के अंतराल के बाद समाज के साथ घुल मिल कर मैंने होली मनाई! बहुत अच्छा अनुभव रहा!

...इस बार समाज में आए हुए बहुत बड़े परिवर्तन को देखा!..होली पक्के और हानिकारक रंगों से नहीं खेली जाती!...और यह देख कर खेली जाती है कि सामने वाला रंग खेलने की मानसिकता लिए हुए है या नही!...कोई अभद्र व्यवहार किसीके साथ नहीं करता... कोई अपशब्दों का प्रयोग भी नहीं करता........मैंने यही सब देखा और लगा कि समाज में वाकई कितना परिवर्तन आ चुका है!...

...दस साल पहले की ऐसी ही होली ने रंगों को बदरंग कर डाला था और आपस के झगड़ो की वजह से पुलिस तक हमारी सोसायटी में बुलाई गई थी!...होली का हूड्दंग आफत बन गया था!

....वैसे हर त्यौहार का अपना एक अलग महत्त्व है...एक अलग कहानी है!...लेकिन खुशी तो हर हर त्यौहार अपने साथ ले कर आता ही है!...होली की मेरे सभी ब्लौगर मित्रों को तहे दिल से बधाई!...सभी ने होली का मजा लूटा ही होगा!

....मैं अपनी उम्र की बात करूं तो यह ६०+ चल रही है!...प्लस कितना करना है, यह मैं आप पर छोड़ देती हूं ....क्यों कि मैं मानती हूँ कि जब तक मेरा दाहिना हाथ कलम चलाता रहेगा मेरी उम्र ६० ही वर्ष की रहेगी और जिस दिन हाथ कलम को छोड़ देगा उस दिन मेरे १०० साल पूरे जाएंगे! जीवन की गाडी अपनी रफ़्तार से चल रही है!


चन्द्र धरती के पास आ रहा है...अब तक फिर दूर जाने की राह पर होगा!...जापान तबाह हो चुका है...पता नही इसका जिम्मेदार चाँद है या नहीं!..कोई 'ना' कह रहा है!...कोई 'हाँ' कह रहा है ...और भी तबाही की आशंकाए जताई जा रही है!
...तो चलिए ,देखें की आगे क्या परोसा जाने वाला है!

अब फिर अपनी बात कहूं तो ....एक नॉवल लिख चुकी हूं...उनकी नजर है हम पर... दूसरा भी लिख चुकी हूं ..लेकिन अभी उसे छपवाने की जल्दी मुझे नहीं है!..लगता है हर काम अपने समय पर खुद- ब-खुद हो जाता है!...हां! प्रतियोगिताओं में बढ़ चढ़ कर हिस्सा लेना मेरा बचपन का शौक है ..जो अब तक जारी है!...फिर वह कविता लिखने की प्रतियोगिता हो, कहानी प्रतियोगिता हो, निबंध हो ...या कोई अन्य हो!...बहुत बार जीतने की खुशी मुझे मिली है और हारने की भी मिली है!..जी हां!...मैं हार को भी खुशी मान कर ही गले लगाती हूँ!

....चलिए फिलहाल तो आप सभी होली कैसी मनाई जाए...इस पर विचार विमर्श कर रहे होंगे!..और मुझे पता है कि कुछ ज्यादा स्मार्ट ब्लोगर्स होली मनाने से पहले ही...हमने ऐसे मनाई होली...कहकर मनगढ़ंत कहानी लिखने में मस्त हो गए होंगे!...माफ़ करना मनगढ़ंत कहानिया मैंने भी लिखी है....तो मेरा ऐसा सोचना जायज है कि नहीं?

...तो एक बार फिर ..आप सभी को होली मुबारक हो....