Saturday 31 July 2010

किसीकी प्रशंसा करने में कंजूसी क्यों?

प्रशंसा किसे नही पसंद?

मुझे लगता है... किसी की प्रशंसा करना भी एक कला है,एक आर्ट है, या समझ लीजिए की एक गुण है!...इस गुण से सभी परिपूर्ण बेशक नहीं होते...लेकिन इस गुण को आत्मसात करना कोई कठिन काम नहीं है!...कुछ लोग कहते है कि ' मुझे किसीकी चमचागिरी करने की आदत नहीं है!... '

...चलिए मान लेते है कि आपकी यह आदत अच्छी है ...लेकिन इस आदत के चलते आपको कब कब, कहां कहां और कितना नुकसान उठाना पड़ा है... ज़रा बताएंगे आप? ...और फिर किसी की प्रशंसा करना चाटुकारी या चमचागिरी कैसे हुई?... किसी के लिए दो अच्छे शब्द बोल दिए, तो इससे आपकी प्रतिष्ठा पर आंच आने का सवाल पैदा ही नहीं होता!

... यहाँ मेरे साथ घटी एक घटना पेश करने जा रही हूं! जो प्रशंसा से ही संबंधित है!

......मेरे पड़ोस में एक परिवार रहता है... यह खन्ना परिवार है ..सास, ससुर, बेटा और बहू! ... बहू का पांच महीने का छोटासा बच्चा भी है! ... ऐसे ही दोपहर के समय मैं उनके घर चली गई!... वैसे दिल्ली जैसे महानगर में पास- पड़ोस में जा कर बतियाने का रिवाज तो खत्म सा हो गया है!... सभी अपने में मस्त होते है!... पॉश कोलोनिज में तो और भी बुरा हाल है!...कई कई दिनों या महीनो तक पता भी नहीं चलता कि आपके सामने वाले फ़्लैट में कौन रह रहा है!

... तो मैं खन्नाजी के यहां चली गई!... मेरा मिसेस खन्ना ने तहे दिल से स्वागत किया !... मैंने उनका और उन्होंने मेरा हालचाल पूछा!,,,, बहू बेडरूम में थी; उसे भी मिसेस खन्ना ने बाहर बैठक में बुलाया ...वह अपने छोटे बच्चे को ले कर आ गई और सोफे पर मेरे साथ बैठ गई! ...मिसेस खन्ना इतने में चाय वगैरा ले कर आ गई!...इधर उधर की बातों का सिलसिला जारी था!

" देखिए बहनजी! मेरी बहू ने पोते को कितनी अच्छी तरह से संभाला हुआ है!... उसकी देखभाल यह बहुत ही अच्छे तरीके से करती है.... बच्चे की मालिश , उसे नहलाना-धुलाना , समय पर दूध पिलाना, उसकी दवाइयाँ वगैरे का ध्यान रखना .... मुझे तो कुछ कहना ही नहीं पड़ता!" मिसेस खन्ना अपनी बहू की भूरी भूरी प्रशंसा कर रही थी!
अब बोलने की बारी बहू की थी! वह कहने लगी!
" आंटी!...डिलीवरी के बाद होस्पिटल से छुट्टी मिलने के बाद , मैं मायके ही गई थी!... वहां मैं सवा महीना रही !... मेरी मम्मी ने मेरे लिए मालिश वाली बाई लगवाई थी ... वह मेरी और मेरे बच्चे की मालिश करती थी! ... मेरी मम्मी मेरा बड़ा ही ध्यान रखती थी!... मेरी पसंद की चीजे बना कर खिलाती थी ....वहीँ से मैं सब सीख कर आई कि बच्चे को कैसे संभाला जाता है!"

...बहू ने बिच में एक बार भी अपनी सास का नाम नहीं लिया!... वह कह सकती थी कि 'सासू माँ की मदद ले कर ही मैं बच्चे की अच्छे से देखभाल कर पा रहीं हूँ!...

....मैं जानती थी कि बहू सिर्फ अपने बच्चे के साथ दिन भर अपने बेड-रूम में बंद रहती थी !... चाय बनानी या पानी का गिलास भी वह उठाती नहीं थी! घर में खाना बनाने से ले कर और घर-गृहस्थी के सारे काम सास याने कि मिसेस खन्ना ही करती थी!... सुबह से ले कर रात के ग्यारह बजे तक उसका काम चलता ही रहता था!...ऐसे में अगर बहू अपनी सास के लिए प्रशंसा के दो बोल बोल देती तो उसका क्या बिगड़ने वाला था?

..... यह बात मुझे ही नहीं , मिसेस खन्ना को भी चुभ गई!...क्यों कि बाद में बातों का सिलसिला ठंडा पड़ गया!... भारी मन से मैंने विदा ली और अपने घर वापस आ गई!.......न जाने लोग ऐसा क्यों करते है?... मैं सोच रही थी!...मिसेस खन्ना ने अपने बहू की प्रशंसा ही की थी!... क्या बहू का फर्ज नहीं बनता था कि बदले में ही सही...अपनी सास के लिए कुछ मीठे शब्दों का इस्तेमाल करे?...

.....किसीकी प्रशंसा करने के लिए पैसे तो खर्च नहीं करने पड़ते...फिर लोग दूसरों की प्रशंसा करने में कंजूसी क्यों बरततें है?... जब हम भगवान, अल्लाह या क्राइस्ट के सामने जाते है , तब भी पहले उसकी प्रशंसा करते है कि वह दाता है, महान है , शक्तिमान है , तारणहार है...वगैरा वगैरा!... इसके बाद उससे जो मांगना है, मांगतें है! ... फिर मनुष्य के लिए यह बात क्यों नहीं सोचतें कि प्रशंसा का भूखा तो मनुष्य भी है!

Monday 12 July 2010

है किसीके पास ऑक्टोपस?

हास्य-व्यंग्य ..भाईसाहब को ऑक्टोपस चाहिए....

....क्या है कि भाई साहब अब मेरे पड़ोस में रहने आ गए है... पहले दो गलियाँ छोड़ कर रहा करते थे..मकान भी अपना ही था ....लेकिन उनका अपने किराएदार से झगडा हो गया...उन्हों ने सोचा कि' इतना अच्छा , शरीफ और मोटी रकम किराए के तौर पर देने वाला किरायेदार ...दीया ले कर ढूंढने से शायद मिल भी जाए... लेकिन इतना कष्ट करे कौन?... इससे अच्छा है खुद ही किराए के मकान में शिफ्ट किया जाए!...'

.....मेरी ग्रहदशा उस समय अच्छी नहीं चल रही थी... पड़ोस के मकान से जैसे ही सामान अगले दरवाजे से बाहर जा रहा था...पिछले दरवाजे से भाई साहब का सामान अंदर दाखिल हो रहा था!... यह तो तब पता चला जब अंत में भाई साहब अपनी नेम-प्लेट बाहर टांग रहे थे...और हम पतिदेव के साथ सब्जी खरीदने बाजार जा रहे थे!

"चलो अच्छा ही हुआ कि हम आप के पड़ोस में आ गए!" भाई साहब मेरी तरफ देख कर बोले जो मेरे पतिदेव को जरा भी नहीं सुहाया!
" पता नहीं मैंने सुबह सुबह किसका मुंह देखा था... " पतिदेव दरवाजे पर ताला मढ़ते हुए बोले!
" अजी साहब!... मेरा भी दिन खराब ही रहा... मेरा अपना मकान मुझे खाली करना पड़ा.... मेरे किरायेदार को मैंने अपनी पत्नी के साथ बतियाते हुए रंगे हाथो पकड़ लिया... क्या ज़माना आया है...क्या बताऊ?" ..कहते हुए भाईसाहब मेरे नजदीक आए और मेरे कंधे पर हाथ रखते हुए मेरे पतिदेव को आगे की कहानी सुनाने लगे...
...मैंने घुर कर देखा तो उन्हों ने हाथ हटा लिया और आगे की कहानी अधुरी रह गई!

...और आज तो सुबह सुबह भाई-साहब के शोर- शराबे से ही नींद खुल गई!
हम क्या हुआ..देखने के लिए दरवाजा खोल कर बाहर निकले तो पता चला कि भाईसाहब का झगडा दूधवाले से हो रहा था!

" बड़ा ही बेशर्म है रे तू!.... तूने मेरा हाथ पकड़ा ही क्यों? ... इसका मतलब तू रोज ही मेरी पत्नी का हाथ पकड़ता है?...और क्या क्या करता है रे निर्लज्ज?" भाई साहब चिल्ला चिल्ला कर दूधवाले की खाट खड़ी कर रहे थे!

..हमने और वहां इकठ्ठे हुए दूसरे पड़ोसियोंने देखा कि भाई साहब,.. पत्नी का पीले रंग का लाल फूलों वाला गाउन पहने हुए है... हमारा हंसने का मन भी हुआ लेकिन मामला कुछ गंभीर लगा तो हंसी को अंदर ही समेट लिया!...पूछने पर पता चला कि उनका नाईट-गाउन बारिश कि वजह से सुखा नहीं था सो उन्होंने पत्नी का गाउन पहन लिया था और आज पत्नी की जगह खुद दूध लेने पतीला ले कर दूध वाले के सामने आ गए थे!

...दूधवाला भी गुस्से से लाल पिला हो कर बता रहा था कि " भाई साहब के हाथ से , दूध से भरा पतीला छूटने ही वाला था... इसलिए मैंने आगे बढ़ कर उनका हाथ पकड़ लिया और पतीले को गिरने से बचा लिया!... मैं कसम खाता हूँ अपनी भैस की... एक पैसे का भी झूठ बोला तो मेरी भैस नरक में जाए! "

" सच बोल अबे!... तूने मुझे जनानी समझा था या नहीं?... जनानी समझ कर मेरा हाथ पकड़ा था या नहीं?... " भाई साहब ने आवाज और ऊँची कर दी!

" अँधा हूँ मैं?...मुझे दिखाई नहीं देता....शेर की खाल ओढने से गधा शेर नहीं दिखता!... मैंने जनानी समझ कर नहीं बल्कि भाईसाहब समझकर ही आप का हाथ पकड़ा था!" दूधवाले ने अब मूंछो पर ताव दिया!

" अभी पता चल जाएगा!... अभी इसी जगह दूध का दूध और पानी का पानी हो जाएगा"....कहते हुए भाई साहब जमा हुए हम पड़ोसियों की तरफ घुमे...और ख़ास लहजे में बोले...

" अजी है किसी के पास ऑक्टोपस?... अभी फैसला हो जाएगा...ऑक्टोपस बता देगा कि दूधवाले ने मेरा हाथ जनाना समझ कर पकड़ा था या मर्द समझकर !..."

" ...लेकिन कैसे बताएगा ऑक्टोपस?" मैंने शंका जताई!

" सीधी सी बात है ... ये आपका हाथ है और ये मेरा हाथ है... अगर ऑक्टोपस ने आप के हाथ की तरफ इशारा किया तो समझ लीजिए कि दूधवाले ने मेरा हाथ ...मेरी पत्नी का हाथ समझ कर पकड़ा था...फिर मैं उसकी धुनाई करूँगा .... और अगर ऑक्टोपस ने मेरे हाथ की तरफ इशारा किया तो दूधवाले को राहत मिल सकती है!"

" ये रही आपकी पत्नी..इसका हाथ पकडिये और मेरी पत्नी का छोड़ दीजिये !" मेरे पति अब तक अंदर सो रही भाईसाहब की पत्नी को जगा कर बाहर ले आए !...और " मैं ऑक्टोपस लेने जा रहा हूँ..." कहते हुए चले गए...

...तीन घंटे हो चले है ..लेकिन मेरे पति अब तक ऑक्टोपस ले कर लौटे नहीं है!