Monday 27 October 2008

अगर बेटियों से है प्यार

...अगर बेटियों से है प्यार!


बेटियाँ किसे प्यारी नहीं होती?.... प्यार तो पुराने जमाने में भी लोग बेटियों से करते ही थे... लेकिन समाज में हालात ही कुछ ऐसे थे कि बेटियों को उनके हिस्से का प्यार नही मिल पाता था !... कुछ रस्मो-रिवाज बेटियों कि खुशियों के आड़े आ जाते थे ! .... और फ़िर दहेज़-प्रथा भी बेटियों की खुशी को ग्रहण लगाने का काम करती थी !... लेकिन आज मैं दहेज प्रथा के बारे में नहीं कहने जा रही; मैं बेटियों की खुशी को ग्रहण लगाने वाले कुछ 'अपनों' के बारे में कहने जा रही हूँ!


...ऐसे अपने ...जो सिर्फ़ अपने होने का स्वांग मात्र रचाते है... उनके मुख में राम और बगल में छुरी होती है!... उन्हें पहचानने का हमारे पास कोई साधन नही होता... हम उन पर आँखें मूंद कर विश्वास कर लेते है कि वे अच्छे है!... और जब बेटियों के साथ कोई न कोई हादसा हो जाता है.... तब तक बहुत देर हो चुकी होती है!


...अब ज्यादा लंबी भूमिका बांधे बगैर मैं यहाँ बता ही दूँ कि ये आपके नजदीकी रिश्तेदार है!... इनमें ज्यादातर महिलाएं होती है! ..... चाची, ताई, मौसी, मामी, बुआ .....और ऐसी ही नजदीकी रिश्तेदारी की आड़ में ये महिलाएं शादीशुदा बेटियों की गृहस्थी में आग लगाने का काम करती है! ...इन्हें बेटियों के ससुराल वालों से दूर रखने में ही बेटियों की भलाई है!... मान लिया कि सभी महिलाएं ऐसी नही होती... लेकिन इनमें से बुरी महिलाओं कि पहचान करना भी तो मुश्किल होता है.... जैसा कि मैंने शुरू में कहा!


....कई घर ऐसी रिश्तेदार महिलाएं उजाड़ चुकी है... तो समय रहते ही सावधानी रखने में कोई बुराई नही है !... नई नई गृहस्थी जिनकी बसी है या बसने जा रही है ; ऐसी बेटियों को जहाँ तक सम्भव हो सके... इनसे बचाएं रखे!


... हाल ही में मैंने एक टूटता हुआ घर देखा और यह सब लिखने से मैं अपने आप को रोक नहीं पाई ! ... फ़िर भले ही इसे बात का बतंगड़ क्यों न कहा जाए ?

Sunday 19 October 2008

आज हम खुशवंत सिंहजी पर मेहरबान

S...आज हम खुशवंत सिंहजी पर मेहरबान... S

खुशवंत सिंहजी का परिचय देने वाले हम कौन होते है?... फ़िर भी बात का बतंगड़ बनाना ठान ही लिया है, तो इनका परिचय अपने शब्दों में दे ही देते है!

खुशवंत सिंहजी ! पहली बात तो यह कि कुदरत आप पर मेहरबान है और आप सरदारजी है!... तो ,बाई डि-फॉल्ट खुश मिजाज है!... लोगों को देख कर आप खुश होते हो, या ना हो.......लेकिन लोग तो आप कि झलक पाते ही हास्य की मुद्रा में आ जाते है!

दूसरी बात ये है कि आप अंग्रेजों के जमाने के पत्रकार है !....जेलर नहीं है!

तीसरी बात हमें सबसे ज्यादा पसंद है... वो यह की आप हिन्दी में अपनी कलम चलातें है!

चौथी बात यह कि आप कि उम्र 85 के अन्दर बाहर होते हुए भी आप रंगीन मिजाज है!...आप की रंगीली-रसीली चटपटी हरकतों का पुलिंदा खोला जाए ...तो एक पोस्ट लिख कर काम नहीं चलने वाला! ... अभी ज्यादा नहीं, चार-पाँच साल पहले ही आप ने एक भरी सभा में .... एक पाकिस्तानी डिप्लोमेट की जवान और खुबसूरत बेटी का ...........छोडिये भी, हम भी कैसी बात ले बैठे! ....लेकिन उस समय जो हंगामा हुआ था; वो तो हमे अच्छा नही लगा खुशवंत सिंहजी !... आप तो बुझुर्ग है और तब भी थे!...इस कदर आप की पगडी उछालना लोगों को शोभा नही देता .....क्या?

...तो इनका परिचय देने के बाद हम यह कहने जा रहे है कि 18 अक्टूबर 2008 के हिन्दुस्तान अखबार में हम इनका एक लेख पढ़ कर बाग़ बाग़ हो उठे! लेख था ' बुरा मानो या भला : कौन होगा अगला प्रधानमन्त्री !

....अब सरदारजी कह रहे है कि.... हालिया प्रधानमन्त्री मनमोहन सिंहजी जब भी, जो भी कहते है...ठीक ही कहते है ...कि अभी बहुत समय बाकी है, अभी से नए प्रधानमन्त्री के बारे में सोचना ठीक नहीं है!...वगैरा, वगैरा! तो इस पर पब्लिक को यहाँ क्या आपत्ति हो सकती है ?

....लेकिन खुशवंत सिंहजी को मनमोहन सिंहजी में इतनी खुबियाँ नजर आई कि उनका वर्णन करना मुश्किल है!...वैसे खुशवंत सिंहजी पत्रकार है... तुरंत पलटी मारनी भी इन्हे आती है!....आगे कहते है कि मनमोहन सिंहजी में खामियां भी है .......और सुनो!....खामियां भी खुशवंत सिंहजी ऐसी गिनावातें है कि उन्हें हम और आप खामियों का दरज्जा दे ही नही सकतें!...कहतें है कि मनमोहन सिंहजी नारेबाजी नही करतें, चिल्लाकर नही बोलतें... ये तो खामियों की आड़ में फ़िर खूबियाँ ही गिनवा दी न सरदारजी ने!

इस लेख में लालकृष्ण आडवाणीजी की भी खूबियां और खामियां इन्होंने गिनवाई है ; जो सिर्फ़ खामियां ही है!...

...तो पता चला की खुशवंत सिंहजी एक हाथ से कोंग्रेस की पीठ सहला रहे है और दूसरे हाथ से बी. जे .पी. का कान मरोड़ रहे है!

खैर! .....खुशवंत सिंहजी जैसे मंजे हुए पत्रकार तटस्थ रहकर लेख लिखतें, तो पढ़ने में जो मज़ा अब आया....वो तब तो ना आता न?... और फ़िर हमारी भी तो सोचो...हम बात का बतंगड़ कैसे बना सकतें थे?

Thursday 16 October 2008

सास बहू डे

सास-बहू डे... याने कि कड़वा चौथ!

बस!...हमने डिक्लेर कर दिया सो कर दिया!... आज के दिन को ,कड़वा चौथ को.... हमने सास-बहू डे डिक्लेर कर दिया!... अब देखिए!..मदर्स डे होता है, फादर्स डे होता है, टीचर्स डे होता है...और बहुत से दिन 'डे' होते है! तो सास-बहू का अलग ना सही, ज्वाइंट एक दिन मनाने में हर्ज ही क्या है?

...ऐसा तो नहीं है कि सिर्फ़ भारत में ही सास-बहुएं रहती है: और दुनिया के दूसरे हिस्सों में ये प्राणी नही पाये जाते!....दुनिया के कोने कोने में सास-बहुओं का बसेरा है भाई लोगो!... सास-बहू का जीवन ,एक दूसरे के साथ के बिना अधुरा ही है!... लड़ने-झगड़ने के लिए और बाद में समझौता करने के लिए, ये दोनों जीव... एक दूसरे की राह तकतें है!

...अब कड़वा चौथ को ही लीजिये !.... सभी जानतें है कि इस दिन महिलाएं पति की लम्बी आयु के लिए व्रत रखती है!... कुछ लोग मानतें है कि जन्मो जनम उसी पति की प्राप्ति के लिए भी यह व्रत राम-बाण का काम करता है!... तो आपने क्या समझना , यह तो आप पर निर्भर है!.... लेकिन इस दिन सास बहू को ...और बहू सास को अनेक उपहार देती है!...मसलन कि सास अपनी बहू को गहनें , साडियां, मिठाइयाँ, रुपये-पैसे ...वगैरा वगैरा देती है!...तो बहू भी सास को कई कीमती उपहार दे कर खुश कर देती है!....खैर! लेना देना तो चलता ही रहता है!

...तो इस कड़वा चौथ के दिन ही सही, सास-बहू एक दूसरी के लिए प्रेम-भाव से लबालब हो उठती है!....तो इस दिन का क्यों न फायदा उठाया जाये? ... और सास-बहू डे के तौर पर इसे इंटरनैशनल बनाया जाये?... सास-बहू सिर्फ़ एकता कपूर के सिरियलों की प्रोपर्टी नही है!... हमारे ही समाज का एक अहम् हिस्सा है!... तो मैंने तो सोच लिया की कड़वा चौथ को ' सास-बहू' डे के तौर पर मनाया जाये...क्या आप मुझ से सहमत है?

Tuesday 14 October 2008

हमने देखा बिग बॉस

हमने देखा बिग-बॉस... क्या आपने भी देखा?

ये तो हम कहने नहीं जा रहे कि आप ये टी.वी.शो अवश्य देखें! .... कलर्स चेनल पर, बिना समय की पाबंदी के आने वाला ये बिग शो .... हमारा मनोरंजन करने में तो नाकामियाब ही रहा!... फ़िर भी हमने यह शो देखा है; तो इसे अपनी तरफ़ से मनोरंजन के रंग में डूबोना हम अपना फर्ज ....मजबूरी में ही सही... इस समय समझ रहे है और जो कुछ देखा , उसे लिख कर आप तक पहुँचा रहे है!

..तो हमने यह शो -बिग-बॉस - टोटल पाँच से छः बार देखा है!...सात बार भी हो सकता है...वो क्या है की हम बचपन से ही गणित में कमजोर रहे है...तो हमारी कमजोरी हम समझतें है कि आप जरुर एडजेस्ट कर लेंगे!

बिग-बॉस में काम करने वाले कलाकार भी बहुत नामी-गिरामी है!...इसमें मोनिका बेदी है! मोनिका बेदी का प्रोफ़ाइल आप फुर्सत में चेक कर सकतें है!.... तो मोनिका बेदी एक मासूम से चेहरे वाली , दुबली-पतली लेकिन चुस्त और घाट घाट का पानी पी कर आई हुई अदाकारा है!...यहाँ कल ही हमने इसे रोटियां सकते हुए देखा और हमारे मुंह में पानी आ गया!... लगता है कि आगे ये लड़की टी. वी. सीरियलों में दमकती नजर आएगी!

दूसरे नामी-गिरामी कलाकार है .... राहुल महाजन! जाने माने दिवंगत नेता प्रमोद महाजन के सुपुत्र होने के बावजूद ....ये अपने ख़ास बलबूते पर भी खबरों में बने रहे है!... बिग -बॉस के घर में ये कैसे पहुँच गए....हमें नहीं मालूम! ..लेकिन इनकी शकल अब पहले से बेहतर नजर आ रही है! अब इनका वजन भी कुछ घट गया है.... सो बड़े ही स्मार्ट नजर आते है!... प्यार का स्वांग रचाने में लगता है कि इनकी मास्टरी है!..लगता है टी.वी. सीरियलों में इन्हे हाथोहाथ उठा लिया जाएगा!

..अब पायल रोहतगी की बात करें तो ये हस्ती भी जानी मानी है!... शकल से ही लगता है कि दूसरों को बेवकूफ बनाना इनका पहला शौक रहा होगा!... राहुल महाजन के साथ चक्कर चलने का खूब नाटक कर रही है!...साथ में अपने आप को उसकी अच्छी दोस्त बताकर सस्पेंस भी पैदा कर रही है!... न्यूज में रहने के लिए यह सब तो करना ही पड़ता है!... है न पायल ?

अब संभावना कि बात करें तो यह एक बडबोली और मुंहफट होने का दिखावा कर रही है!...असल में अगर है भी तो हमें क्या मालूम!...राहुल महाजनका इनके ऊपर भी बड़ा होल्ड है!... लेकिन यह राहुल के विरोध में बोल कर अपना रोष प्रकट कर रही है!...हो सकता है रोष सच्चा भी हो... झूठा भी हो! ...हमें कैसे पता चलेगा?..तो यह भी टी.वी.सीरियलों में डटें रहना चाहती है!...संभावना से इनकार करने वाले हम कौन होते है?

..बिग-बॉस के घर में सभी काम कर रहे है और मौज-मस्ती भी कर रहे है!...आगे आगे देखियें होता है क्या!

Friday 10 October 2008

२ बात का बतंगड़ बनाना मेरी पुरानी आदत

२. बात का बतंगड़ बनाना...मेरी पुरानी आदत !

मैं अब पड़ोसी के नौकर के साथ सट कर खड़ी थी! नौकर को कोई तकलीफ नहीं थी...क्यों की मैं छोटी बच्ची थी! मुझे लगा की नौकर की पैंट की जेब ....मेरी तरफवाली... कुछ फूली हुई है! मैंने हाथ लगाया तो कुछ सॉलिड सी भी लगी... अब मैं नौकर की दूसरी तरफवाली जेब की तरफ, उसीकी टांगों में से होती हुई चली गई...

...यहाँ की जेब का तो उससे भी बुरा हाल था! ...जेब में इतना कुछ था की जेब, अब फटी और तब फटी! ...और मैंने जेब से साथ पंगा लेना शुरू कर दिया... जरासा जोर लगाया और जेब ने मुंह खोलना शुरू कर दिया...मुजे अब मज़ा आ रहा था!... नौकर सांप का वर्णन करने में मस्त था!

" अजी सांप बिल्कुल बालों के रंग सा ...काला था!...लंबा भी कोई 7 फ़ुट से ज्यादा ही था... अलमारी के उपरसे, मेरे ऊपर कूद पड़ा साहब!... मेरी तो धिग्दी बंद हो गई... आंखे बंद हो गई... मुझे लगा की मैं अब मरा...तब मरा!... जब मैं होश में आया तो पता चला साहब की मैं जिन्दा हूँ!... अब मैं जा रहा हूँ... मुझे नहीं करनी इस घर में नौकरी !..मुझे अपनी बाकी तनख्वाह भी नहीं चाहिए मैं जा रहा हूँ... " कहते हुए नौकर ने अपनी अटैची उठाई!

... इधर मेरे हाथ अपना काम कर रहे थे ...नौकर की पैंट की जेब तक अब मेरा हाथ पहुंच चुका था!...कि मेरे हाथ में घड़ी लग गई!...जो मैंने बाहर निकाल ली!....फ़िर एक सोने की चेन और अंगुठी मेरे हाथ लगा गई!...अब नौकर चलने की तयारी में कदम उठा ही रहा था कि मैं घूम कर उसकी पहले वाली जेब के पास पहुच गई और उसकी जेब कस कर पकड़ते हुए लटक सी गई... अब नौकर को मेरी हरकत का पता चल गया और उसने मुजे धक्का मारते हुए निचे गिरा दिया...और तेज तेज कदमों से भीड़ मेंसे रास्ता निकालता हुआ चल पड़ा!

...हमारे पड़ोसी और इकट्ठा भीड़, अब सांप पकड़ने वाले मदारी को बुलाने के बारे में बहस कर रही थी! ...इच्छाधारी सांप के बारेमें भी एक सज्जन कहानी सुना रहे थे...अब पड़ोसी का नौकर भीड़ मेसे बाहर निकल चुका था और अब गया...तब गया होने वाला था!

...कि मैं अब उठ कर खड़ी...चिल्लाने लगी..." चोर, चोर ..पकडो... पकडो!"

...मेरी तीखी आवाज लोगों के कानो से टकराने में देर नहीं लगी...लेकिन भीड़ मेंसे कोई बोला... " बेवकूफों! पहले सांप को पकड़ने के लिए मदारी को बुलाओ ... बाद में चोर पकड़ने के लिए पुलिस को बुलाओगे तो क्या फर्क पड़ेगा?...और फ़िर चोर तो इस बच्ची ने शायद ही देखा है... किसी कहानी के चोर की बात कर रही होगी! कोई बड़ी बात तो है ही नहीं! नौकर ने तो सांप का पुरा ब्योरा दिया है! "

..."सांप तो नौकर के सिवा किसीने भी नहीं देखा ...लेकिन चोर को तो देखो!...वो जा रहा है! ..... यह उसकी जेब से मैंने घड़ी और अंगुठी निकाल ली है! ...कहते हुए मैंने वो दोनों चीजे लोगों को दिखाई और जाते हुए नौकर की तरफ़ उंगली उठाई !

... अब सांप का और नौकर का ...पर्दाफाश हो चुका था!... नौकर पकड़ा गया उसकी जेब और अटैची से और भी कीमती चिज- वस्तुएं बरामद हुई और अब मदारी की जगह पुलिस को बुलाया गया!... मेरी तब बहुत वाहवाही हुई थी!... कहिए!... बात का बतंगड़ बनाना कई बार फायदेमंद भी साबित होता है कि नहीं?