Friday 18 June 2010

हंसने वाले के साथ..सब हँसते है!

हंसने वाले के साथ...सब हँसतें है!


...एक जमावड़ा था... किसी लड़की की एंगेजमेंट किसी लडके से होने जा रही थी... हम भी उस जमावड़े में आमंत्रित थे!....खाने-पीने के साथ बातों का दौर भी चल रहा था!... बात हंसने और रोने के बारे में चल पड़ी!...किसी भाईसाहब ने कहा..'अजी , हंसने वाले के साथ सब हंसते है..लेकिन रोने वाले के साथ कोई नहीं रोता!' ...भाई साहब का साथ देते हुए दूसरे भाई साहब और बहनजी ने 'हाँ जी!' ..'हाँ जी' ..कहना शुरू कर दिया! इस पर हमें क्रोध आया!...क्यों कि ऐसा कहते हुए उन भाई साहब ने हमारे कंधे पर अपना हाथ रखा दिया ! हमने उनका हाथ पकड़ कर हटाते हुए कहा..." ऐसा कुछ नहीं है...रोने वालों के साथ रोने वाले भी बहुतेरे होते है!"
इस पर भाई साहब अपनी बात पर अड़ गए ' रोने वालों के साथ कोई नहीं रोता!'

"...नहीं जी ऐसा थोड़े ही होता है?... आप रो कर तो देखिएं!..लोग आपके साथ रोना शुरू कर देंगे! ' हमने भाईसाहब की बात काटने के लिए ऐसा कहा!
" वैसे आप रोए कब थे... " हमने चुटकी ली!
' भला मैं क्यों रोने लगा?... मुझे तो रोना आता ही नहीं है .. मैं बस एक बार रोया था !" कहतें हुए भाई साहब ने फिर मेरे कंधे पर हाथ रखा...फिर मैंने उनका हाथ झटक दिया... लेकिन एकदम से भाई साहब चिल्लाएं.... "ओये!...मर गया रे !"... मैंने देख ही लिया की भाई साहब की भारी भरख़म श्रीमती ने उनका वही हाथ जोर से मरोड़ा था!

... अब सभी लोगों का ध्यान इस तरफ था... कि यहाँ क्या हुआ!

...भाई साहब... 'कुछ नहीं..युंही जरा... हे, हे, हे '... करने पर उतर आए!

" हाँ जी भाईसाहब आप रोएँ कब थे?" अब की बार मैंने फिर पूछा...

" जब मेरे गले में श्रीमती वरमाला डाल रही थी!..तब दहाड़े मार कर रोया था मैं!...लेकिन तब लोगों ने जोर जोर से हँसना शुरू किया था जी...रोया तो कोई नहीं था! " पत्नी की तरफ देखते हुए भाईसाहब बोले..इस समय पत्नी जरा दूर खड़ी थी!... नहीं तो फिर उनके चिल्लाने की आवाज दुगुनी रफ्तार से आती!
" भाई साहब रोने वाले के साथ रोने वालों को हम फिर कभी ढूंढेंगे.... अभी आप अपनी कोई ताजा कविता ही सुना दीजिए!".....भीड़ में से कोई बोला!
भाई साहब अपने आप बहुत उच्च कोटी का कवि समझतें है, यह मुझे मालूम था!... मैंने भी आँखे मटकाकर कहा ' सुनाइए न!' ....और भाई साहब की बांछे खिल गई!
..." सुनिए, सुनिए..मेरी बिलकुल ताजा कविता.... आप को अंदर तक हिला कर रख देगी ... कविता का शीर्षक है.....' सूनी सड़क पर...."

.....और वे अपनी रोत्तल आवाज में कविता सुनाने लग गए...उनकी पत्नी फ़ौरन वहां से दफा हो गई .... शायद पत्नी को भगाने के लिए वह हंमेशा यही नुस्खा इस्तेमाल करतें होंगे!

रफ्ता, रफ्ता...

एक साइकिल...
सड़क पर...


जाती हुई...





मेरी नज़रों से...

हुई ओझल...

क्यों कि मैं....

उस समय ...

jaa रहा था....

बिलकुल अकेला...

और पैदल...

सूनी सड़क पर...

मेरे सामने से...

तेज रफ़्तार...

लाल रंग की कार...

गुजर गई...

मुझे धक्का दे कर...

गिरा दिया...

सूनी सड़क पर....

मैं गिरा...

मैं उठा,

मैं खड़ा हुआ...

मैंने झाडे कपडे....

करता और क्या...

सूनी सड़क पर....

मुझे लगा...

जनम जनम से....

भिखारी हूँ मैं...

बुद्धू भी हूँ मैं...

वरना...

रेलवे-स्टेशन

और मंदिर छोड़कर...

कटोरा लिए हाथमें...

यहाँ क्यों भटकता...

सूनी सड़क पर...

वह साइकिल वाला...

कमबख्त...

फिर आया...

छिना कटोरा मेरा...

फिर हुआ नज़रों से ओझल...

अब मैं बैठा...

सिर पकड़ा...

जार, जार, रोया...

सूनी सड़क पर...

अब बिना कटोरे...

भिखारी!

कौन कहेगा मुझे...

कौन देगा भीख...

भूखा ही मर जाऊँगा...

राम तेरी माया...




अब समझ में आया.....

आंसू बहाता ,

जा रहा हूँ मैं...

सूनी सड़क पर....

...भाई साहब रोए जा रहे थे...शायद वह अपने आप को वही कविता वाला भिखारी ही समझ रहे थे!... कुछ लोग रोने में उनका साथ दे रहे थे!... माहौल गंभीर हो गया था... कि मैंने चुटकी ली....
" भाई साहब मैंने कहा था न कि रोने वाले के साथ भी लोग रोते है?"
...अब भाई साहब मेरी तरफ सरके...वे भिखारी के चोले से बाहर आ गए और फिर एक बार मेरे कंधे पर हाथ रखा!... मैंने फिर उनका हाथ झटक दिया...क्यों कि उनकी श्रीमती आँखे लाल किए बिलकुल सामने खड़ी थी!







































Monday 14 June 2010

बड़ी उम्र में मातृत्व!

स्त्रियों पर अत्याचार इस ढंग से भी ज़ारी है..
क्या कहने!...आज ही सुबह अखबार में पढ़ा...हिसार के सातरोड़ क्षेत्र में रहने वाली 66 वर्षीया भतेरी देवी ने तीन बच्चों को ... तिडवा ...बच्चों को जन्म दिया! अखबार के लिए भले ही यह खबर सनसनी जगाने वाली हो!... लेकिन एक स्त्री होने के नाते मुझे यह खबर विचलित करने के लिए पर्याप्त है!



...अब देखिए!... इसी अखबार में लिखा हुआ है कि भतेरी देवी को संतान प्राप्ति शादी के बाद कुछ वर्षों तक न होने की वजह से इनके पतिदेव ने दूसरी शादी रचाई... दूसरी पत्नी को भी संतान न होने के हालात में इस पतिदेव ने तीसरी शादी रचाई... नतीज़ा फिरभी शून्य रहा !.... इसके बाद ये हुआ कि इस पति महाशय की बाद की दोनों पत्नियां इनसे अलग हो गई!... और पहली पत्नी भतेरी देवी इनके साथ रहने लगी!... यह भी हो सकता है कि अब बुढ़ापा कैसे कटेगा सोच कर ही पतिदेव ने पहली पत्नी के साथ रहना शुरू कर दिया!...



...अब 66 साल के पति- पत्नी संतान के लिए कितने आशान्वित हो सकते है? ...फिरभी देखिये भतेरी देवी का इलाज चलता रहा और नैशनल फर्टिलिटी के डॉ अनुराग मिश्र ने उन्हें इस उम्र में मातृत्व दिलाया!



.... अब इस उम्र में तीन नवजात बच्चों की ...दो बेटे और एक बेटी की ...जिम्मेदारी भतेरी देवी कैसे उठा सकती है?.... उसका शरीर क्या इस उम्र के मातृत्व के लिए तैयार हो सकता है?... उसके पतिदेव तो चलिए इस उम्र में पिता बनकर ठाठ से घुम रहे है!... क्या इस उम्रमें पिता बनने में उन्हें कोई शारीरिक कष्ट हुआ या आगे होने वाला है?... भतेरी देवी के लिए बच्चों के जन्म से ले कर... आगे भी शारीरिक कष्टों की कमी नहीं है! ... इनके पतिदेव ने क्या यह सब सोचा?



... और भी इसी सन्दर्भ में एक उदाहरण है.... जींद की 70 वर्षिया राजोदेवी ने भी इसी सेंटर से , इस उम्र में मातृत्व प्राप्त किया!....



ऐसी खबरें अखबार वाले और असंभव को संभव बनाने वाले डॉक्टरों के लिए गर्व से सिर ऊँचा करने वाली है!... लेकिन उन स्त्रियों के बारे में भी तो सोचना चाहिए जिन्हें इतनी बड़ी उम्र में माताएं बनने के लिए मजबूर किया जाता है!.... मेरी निजी राय है कि बड़ी उम्र में भी मातृत्व अगर प्रदान करना हो तो भी... स्त्री की उम्र 50से ज्यादा न हो इस बात का ख़ास ध्यान रखा जाना चाहिए और यह नेक काम एक डॉक्टर ही कर सकता है!... स्त्रियों पर इस प्रकार से होनेवाला अत्याचार रोका जा सकता है!





Tuesday 8 June 2010

विज्ञापनों की भी अहमियत होती है!

मेरे ब्लॉग पर...विज्ञापन अंगडाइयाँ ले रहे है!

जी हाँ!... मैंने अपने ब्लॉग पर विज्ञापनों के लिए दरवाजे खोले हुए है!...
मुझे किसीने ई-मेल भेज कर जानना चाहा कि...." क्या आपकी धन कमाने की मनसा है, जो आपने विज्ञापनों को अपने ब्लॉग पर पनाह दी हुई है?"

.... उन महाशय को अलग से जवाब मैं दे सकती थी...लेकिन मैंने सोचा कि और भी कई साथी ब्लोगर्स यही सोच रहे होंगे ...लेकिन पूछने से कतरा रहे होंगे!...तो चलिए ब्लॉग लिख कर ही इसका खुलासा किया जाए!...

... सबसे पहली बात यह कि जो ब्लोगर्स कई सालों से हिंदी में ब्लॉग्स लिख रहे है वे अपना अनुभव बताते हुए कहते है कि ' हिंदी ब्लॉग्स द्वारा धन कमाना...रेत में से तेल निकालने के बराबर है! अपने पास रोजी-रोटी का अच्छा इंतजाम हो; तभी हिंदी ब्लौगिंग की तरफ मुड़ना चाहिए!... कमाई करने का इरादा हो तो, इंग्लिश में ब्लॉग लिखकर कमाई की जा सकती है! '

.... विज्ञापनों द्वारा भी कमाई करने के लिए फिरंगी भाषा का चोला ....मन माने या न माने...ओढ़ना पड़ता है!

... अब मेरे जैसे हिंदी की दिन-रात पूजा करने वाले ब्लॉगर्स ; फिरंगी भाषा का टिका तो माथे पर लगाएंगे नहीं!... कमाई करने की सोचना तो बहुत दूर की बात है!... रही विज्ञापनों को अपने ब्लॉग पर चिपकाने की बात!... तो मैं महज ब्लॉग की सजावट के लिए विज्ञापनों का इस्तेमाल कर रही हूँ! .... वैसे विज्ञापनों को मैं बुरा नहीं मानती!...किसी को कोई खरीदारी करनी हो तो वह जानकारी कहांसे हासिल करेगा?... या किसी को कोई चीज बेचनी हो तो वह क्या करेगा?... आज के जमाने में विज्ञापन की बहुत अहमियत है!

.... मुझे अब तक विज्ञापनों से कोई कमाई हुई नही है... न ही होगी!... लेकिन विज्ञापनों को मैं पनाह देती रहूंगी!... मैं पेशे से आयुर्वेदिक डॉक्टर हूँ ..और अब सिर्फ और सिर्फ हिंदी लेखन कार्य में व्यस्त हूँ! ...मेरा शौक हिंदी लेखन की प्रतियोगिताओं में भाग लेना भी है! अपनी चल-अचल संपत्ति के बारे में या विदेश यात्राओं के बारे में चर्चा करने की ये जगह नहीं है!... इसे अन्यथा भी लिया जा सकता है!

.... फिर एक बार कहने की गुस्ताखी करती हूँ की अपने ब्लॉग पर विज्ञापन मैं सजावट के लिए दे रही हूँ! ... मेरी कम्प्यूटर संबधित जानकारी मर्यादित है; फोटो या अन्य सामगी का सजावट के लिए इस्तेमाल करना मेरे बस की बात नहीं है!...

....हो सकता है बहुतसे ब्लॉगर्स मेरी ही तरह सोचते हुए विज्ञापनों को अपने ब्लॉग पर दे रहे हो!