Tuesday, 31 August 2010

ए. आर. रहमान का संगीत और बवंडर!

एक कलाकार ही तो है... ए.आर. रहमान!

......एक वह दिन भी था जब संगीतकार ए. आर. रहमान को हमी लोगों ने सिर पर उठाया था!... उन्हें महान संगीतकार का दर्जा दिया था!...क्यों कि उन्हों ने तब ऑस्कर अवार्ड भारत की झोली में डाला था! ...तब हमें लगा था कि ये तो देश का गौरव है...देश की शान है.....इनका कद तो बहुत उंचा है!

....और आज यही संगीतकार हमें बौना नजर आ रहा है!...क्यों कि कॉमनवेल्थ गेम्स के लिए तैयार किया गया उनका गीत... 'ओ...यारो ये इंडिया ...बुला लिया!' ....कुछ बड़े लोगों को पसंद नही आया!....छोटे लोगों को पसंद आया कि नही... यह कौन पूछने जाता है!

.... बात १५ करोड़ रुपयों की मांग की भी है!...कहते है की उन्हें साढ़े पांच करोड़ दिए गए है!... ये बात तो अंदर की है!... वैसे उन्हें कुछ भी देने की जरुरत नही थी! ....अगर कॉमनवेल्थ गेम्स देश के लिए हो रहे है तो ...देश के लिए काम करने वाले किसी को भी मेहनताना नही मिलना चाहिए!....फिर ए. आर. रहमान को ही क्यों साढ़े पांच करोड़ रुपये दिए गए?

...चलो दे भी दिए...तो उन्होंने जो भी संगीत दिया उसे अच्छा मान कर स्वीकार कर लेना चाहिए!.... आपने उन्हें गीत-संगीत का जिम्मा सोंपा था... जो उन्होंने निभाया!.....उनकी शकीरा के संगीत से तुलना किसलिए की जानी चाहिए?... रही बात हिंदी की!.... गलती ही निकालनी है तो हिंदी के किसी भी गाने की कहीं से भी निकाली जा सकती है!.... इंग्लिश गानों की भी निकाली जा सकती है!... यहाँ साहित्य की कड़ी परीक्षा नही हो रही....यह नजर-अंदाज करने वाली बात है!


...और ध्यान देने वाली एक बात यह भी है कि ....हर कलाकार अपनी दूसरी कृति , पहली कृति से भिन्न ही बनाएगा!... दूसरी कृति में पहलेवाली कृति की अपेक्षा करना गलत है! ...यही बात ए. आर. रहमान की रचना को भी लागू होती है!

.....मुझे लगता है कि इस बात को ले कर बवंडर उठाना ठीक नही है!

Friday, 6 August 2010

एक उपन्यास' उनकी नजर है हम पर!'

' उनकी नजर है..हम पर ' का लोकार्पण!

कुछ दिनों के अवकाश के बाद मैं लौट आउंगी !... एक बहुत जरुरी काम आ पड़ा है!...ऐसा कई बार हुआ है!...मैं छुट्टी ले कर यहां से गई भी हूँ और वापस आई भी हूँ! !...मेरे साथी ब्लोगर्स भी ऐसा ही कर रहे है! ....मेरी नजर है ...उन पर!

...जाते जाते बता कर जा रही हूँ कि मेरे द्वारा लिखित उपन्यास का नाम है 'उनकी नजर है ..हम पर! ' इस का 11 अगस्त 2010 के रोज लोकार्पण होने जा रहा है!... यह उपन्यास परग्रहियों का हमारी धरती पर उतर आने से संबधित है!... खैर! परग्रहियों को मैंने, आपने या विदेशियों ने भी अब तक देखा नही है; इसके बावजूद भी उनके बारे में बहुत कुछ कहा गया है, लिखा गया है और फिल्में भी बनाई गई है!..

...मेरी कल्पना ,अब तक की परग्रहियों के बारे में की गई कल्पना से अलग है!... इस उपन्यास के परग्रही टेढ़ी-मेढ़ी शकलों वाले, नाटे , मोटे ...... लाल, नीले या हरे रंग के नही है! ... वे उपरसे दिखने में तो हम जैसे ही है ...लेकिन हमारे से अलग किस तरह से है...इसका वर्णन इस उपन्यास में मिलेगा... वे किस ख़ास काम से यहां आए हुए है इसका भी खुलासा होगा!...वे हम से दोस्ती भी निभाएंगे और दुश्मनी भी!

इस उपन्यास को हिन्दयुग्म प्रकाशन का सहयोग प्राप्त हुआ है!... श्री शैलेश भारतवासी प्रकाशक है!... सच पूछो तो शैलेशजी की ही मेहनत के परिणाम स्वरूप इस उपन्यास को 'लोकार्पण ' का सौभाग्य प्राप्त हुआ है!

.... मैं तो बस! झोली फैलाए...आप सभी से शुभ-कामनाएँ मांग रही हूँ! ... ऊपर वाले से प्रार्थना कीजिए कि मेरी इस रचना को सफलता की सीढियाँ चढ़ना नसीब हो!

...मैं यहां आप सभी के लिए प्रार्थना करती हूँ कि आप को अपने इच्छित कार्य में ज्वलंत सफलता मिलें!