Monday 5 January 2009

१ इनसे जब हम मिलें ..पूज्य श्री सत्य-प्रकाश महाराजश्री!

1 ..पूज्य श्री सत्य-प्रकाश महाराजश्री (हास्य-व्यंग्य)



हमने सोच ही लिया कि .....'समाज में अपनी पहचान बनाने के लिए , हमें घर से बाहर तो निकलना ही पड़ेगा!... अब देखिये तो जरा!... ये जो नेता लोग है, ये क्या करतें है? अगर ये लोग घर में बैठे रहेंगे तो इन्हे कौन पहचानेगा भला?... कोई कुत्ता भी घास डालने इनके दरवाजे पर नहीं आएगा! ... सोरी!... ये तो ज्यादती हो गई!... कुत्ते कभी घास डालने दरवाजे पर नहीं आते! ... तो बात नेता लोगों की चल रही थी ....तो वोट मांगने के लिए ये नेता लोग जब घर से निकलते है ... तो डयूटी पर जाने जाने वाले सिपाही की तरह नहीं, बल्कि भीख मांगने के लिए कटोरा लेकर निकल पड़े भिखारी की याद दिलवातें है!



अरे , अरे! हम नेताओं की बात पता नहीं क्यों छेड़ते है?... हमारी हंमेशा से यह आदत रही है!... हम तो घर से बाहर निकलने की बात कर रहे थे तो नेताजी याद आ गए !... तो हम घर से निकल कर सबसे पहले मन्दिर गए!... जगह अच्छी होती है!..... हमें बचपन से शिक्षा भी यही दी गई थी कि कोई भी काम शुरू करने से पहले भगवान के सामने नत-मस्तक होना बहुत जरुरी होता है!... आपके द्वारा शुरू किया जाने वाला काम शुभ है या नहीं... ये सोचना दूसरे लोगों का काम है ...और आप जो करने जा रहे है, उस काम को डंडे के जोर पर शुभ कहलवाना आपकी अपनी कैपेसिटी पर निर्भर करता है!... नेता बनने के लिए यही कैपेसिटी काम आती है!



आख़िर हमारे अस्तित्व को हमारे सिवाय भी लोग जानें.... यह बहुत जरुरी था! ... देर से सही , हमें अक्कल तो आ ही गई!...उसी समय हमारे दरवाजे की घंटी बजाकर, भरी दोपहर को हमारी नींद में खलल डालने एक नेताजी आ गए ... वो तो हास्य मुद्रा लिए, चमचों से घिरे हुए, हाथ जोड़ कर, देश का भला करने का वादा कर रहे थे !... अपने लिए अदद एक वोट ही तो मांग रहे थे!.... लेकिन हमारी नींद उडा गए! हमारे से वादा लेते गए कि हमारा वोट उनके अलावा कोई नहीं हड़प पाएगा!... हमें उपर से यह जता गए कि 'हम किस खेत की मूली है!'... हमें बुरा तो जरुर लगा , लेकिन नेताजी की हास्य मुद्रा के कम्बल ने तुरन्त-फुरंत .... बुरा लगने की आग को बुझा भी दिया!



...तो अब हमने ठान ही ली कि अब तो घर से बाहर निकल कर ही दम लेंगे... दुनिया को दिखा देंगे की हम किस खेत की मूली है! बहुत सालों से हम 'मामूली' बने बैठे है! अब ऐसा ज्यादा दिन नहीं चलेगा! .... बगैरा बगैरा सोचतें हुए हम सबसे पहले मन्दिर पहुँच गए!... ' जय हो प्रभु! ....नेताओं का ज्यादा सही..हमारा थोड़ा भी भला करेगा... तो भी चल जाएगा प्रभु!



......वहां प्रवचन हो रहा था!... प्रवचनकारी थे 'पूज्य श्री सत्य प्रकाश महाराजश्री !... वैसे तो सभी महाराजश्री 'पूज्य 'होने का दम भर रहे होते है!... क्यों कि हम और हमारी कैटेगरी के,उन्हें पूज्य कहते है!.... हम वहीं पर एक कोना खाली देख कर बैठ गए और प्रवचन सुनने लग गए! ....बीच बीच 'वृन्दावन बिहारी लाल की जय' के साथ साथ 'महाराज श्री सत्यप्रकाशजी की जय' बोलना भी हमारे लिए लाजमी था!


........जारी

6 comments:

नीरज मुसाफ़िर said...

जायका जी, नमस्कार.
सही बात है कि मन की भडास निकालनी हो तो नेताओं को जी भरकर बकिये. पढ़कर मजा आया.

राज भाटिय़ा said...

जाय्का जी, नमस्कार, आप ने बाते बहुत सुंदर लिखी, चलिये हम भी आप के इन बाबा जी की 'महाराज श्री सत्यप्रकाशजी की जय' बोल देते है, एक बाबा हमारे भी है, हम उन की ज्य भी हमेशा बोलते है..'महाराज श्री झुठप्रकाशजी की जय'
हम आप कितना ही बोल ले इन को कोई फ़र्क नही पडने वाला, बहुत से बेवकुफ़ अब भी इन की सेवा मै लगे रहते है.
धन्यवाद

प्रदीप मानोरिया said...

आपने बेहद सत्य को उजागर करते हुए सबकी भावनाओं को प्रस्तुत किया बेहद सुंदर

ताऊ रामपुरिया said...

आपने अच्छे शब्दों मेम व्यंग किया है पर इन महाराजों को कौन सर पर बैठाता है? आप और हम ही ना. सच मानिये इन बाबाओ की सारी दुकानदारी ही भय बेचने की दुकान है.

सो जब तक खरीद्ने वाले रहेंगे तब तक इनकी दुकान भी रहेगी. याद किजिये एक चन्द्रास्वामी नाम के बाबा की भी दुकान थी वो शायद आजकल बंद होगई. शाय्द उनका माल बिकना बंद हो गया, अब ये सब कुछ हम पर ही निर्भर करता है.

रामराम.

डॉ .अनुराग said...

दिलचस्प अंदाज है....जारी रखे

अविनाश said...

पढ़ के मज़ा आया. आपने पूरी भडास निकाल दी
धन्यवाद