Monday 31 August 2009

अच्छाई को उजागर करती है... बुराई!

अच्छाई को उजागर करती है.... बुराई!

ऐसा ही होता आया है और होता भी रहेगा कि 'बुराई अच्छाई को उजागर करती रहेगी !' ...... अब देखिए... अगर अच्छाई को दुनिया के सामने लाना है तो, इसके लिए बुराई की मदद लेनी ही पड़ेगी! ऐसे कई उदाहरण इतिहास में भरे पड़े है,जहाँ अच्छाई के चाँद को रोशनी बिखेरने के लिए काली रात का दामन थामना ही पड़ा है!

...... सर्व मान्य और सर्वत्र प्रचलित 'रामायण' का उदाहरण ही इसके लिए पर्याप्त है!.... अगर रावण बुराई पर न उतर आता तो रामकथा की अहमियत कितनी रह जाती?.......सीता का अपहरण अगर रावण न करता तो राम को लंका की तरफ़ प्रयाण क्यों करना पड़ता?.... राम-रावण युध्ध क्यों होता?.....फ़िर हनुमान से राम का मिलन कैसे होता?.... हनुमान का नाम हम तक कैसे पहुँच पाता?....रावण को युध्ध में राम क्यों परास्त करता?.....रावण राम के हाथों अपनी जान क्यों गंवाता ?......ऐसे कई सवाल जहन में आते है....जब जब 'रामायण'की कथा मैं सुनती हूँ!

..... लगता है कि रावण के बुरे आचरण को ले कर ही 'राम' की मर्यादा पुरुषोत्तम की भव्य और साफ़-सुथरी छबी समाज के सामने आई!...... अन्यथा क्या होता?....राम चौदह बरस का वनवास समाप्त कर के वापस अयोध्या लौट गए होते और अपना राज-पाट संभाल लिया होता....सीता की अग्नि-परीक्षा फ़िर किसलिए होती? .... सीता का त्याग करनेकी भी फ़िर क्या जरुरत पड़ती?.... कौन धोबी ताने मारता कि वह रावण के घर में रहकर आई है?...... लव और कुश भी अयोध्या के सर्व सुविधामय राज-महल में जन्मे होते..... क्या उनका कभी युध्ध में अपने पिता राम से सामना होता?

...... फ़िर रामायण कहीं सिमटकर रह गई होती.....और फ़िर 'राम ' को भगवान मान कर लोग कैसे पुजतें?....कैसे राम-मन्दिर बनतें?.....ऐसे कई राजाओं की कहानियाँ होगी जो सीधे रास्ते पर चलकर खत्म हो गई होगी,और आज हम उनका नाम और अत-पता कुछ भी नहीं जानते!....आगे चलकर क्या हुआ राम के दोनों बेटे लव और कुश का?.... उनसे शायद कोई रावण नहीं टकराया , जिससे कि उसके साथ मुठ--भेड़ करके वे अपने नाम के साथ 'महानता' का दुमछल्ला जोड़ लेते!

....... 'महाभारत ' की कहानी भी कुछ ऐसा ही बयां करती है!.... कौरव अगर चुप-चाप पॉँच पांडवों को पाँच गाँव दे देंते तो हमें पता भी न चलता कि कौन कौरव थे और कौन पांडव थे!.....श्री कृष्ण को करने के लिए फ़िर महान काम कौन सा रह जाता?.....श्री कृष्ण को तब गीता का उपदेश देने की जरुरत भी न पड़ती...यह बात अलग है कि आज हम 'भगवत गीता' जैसे महान ग्रन्थ से वंचित रह जाते .... क्या इसका इसका श्रेय कौरवों को नहीं जाना चाहिए?....क्या उनके बुरे मामाश्री शकुनी को नहीं जाना चाहिए?

....... दशहरे का महान पर्व हम 'बुराई पर अच्छाई की जीत' के प्रतिक स्वरूप मनातें है!.... तो भाई लोगो, ... ज़रा सोचिये, अच्छाई को उजागर करने के लिए भी तो बुराई की जरुरत पड़ती है!.... अंधेरे पर काबू पाने के लिए ही तो 'इलेक्ट्रिसिटी ' की खोज हुई!.... अगर अँधेरा ही न होता तो?....



                                               
सोच कर ही आंखों के आगे अँधेरा छाने लगता है!.... आगे हम लिखें तो क्या लिखें?

9 comments:

विनोद कुमार पांडेय said...

बुराई के अस्तित्व को जो ख़त्म करे वही अच्छाई है.
अब इसके लिए बुराई को पहले ही आना पड़ता है..

बढ़िया लेख!!

ओम आर्य said...

एक बेहतरीन लेख........

ताऊ रामपुरिया said...

आज दशहरे का महान पर्व हम 'बुराई पर अच्छाई की जीत' के प्रतिक स्वरूप मनातें है!.... तो भाई लोगो, ... ज़रा सोचिये, अच्छाई को उजागर करने के लिए भी तो बुराई की जरुरत पड़ती है!.... अंधेरे पर काबू पाने के लिए ही तो 'इलेक्ट्रिसिटी ' की खोज हुई!.... अगर अँधेरा ही न होता तो?....

वाकई सार्थक बात है.

रामराम.

राज भाटिय़ा said...

आप की हर बात से सहमत है, बहुत सुंदर ढंग से आप ने सारी बात समझा कर लिखी

अशरफुल निशा said...

Sahi kaha aapne.
Think Scientific Act Scientific

Kamlesh Sharma said...

very well written post...Fine...

ताऊ रामपुरिया said...

इष्ट मित्रों एवम कुटुंब जनों सहित आपको दशहरे की घणी रामराम.

Satish Saxena said...

बहुत खूब ! आज के समय में बुराई बन्दन ही शुरू करना चाहिए अन्यथा सज्जनों को जीने ही कौन देगा !
शुभकामनायें !

Asha Joglekar said...

अच्छाई और बुराई एक ही सिक्के के दो पहलू जो ठहरे । दोनों का साथ होना लाजमी है ।
जायका जी बहुत दिनों से आपकी कलम आराम कर रही है । वापिस आइये ।