अगर महिलाएं समझ सकें...
...आज महिला दिवस पर महिलाएं और पुरुष सभी अपने विचार व्यक्त कर रहे है!...महिलाओं की प्रगति कैसे हो, महिलाओं को समाज में सम्माननीय स्थान कैसे प्राप्त हो, महिलाओं की सुरक्षा के लिए सरकार कौनसे कदम उठाएं और इस दिशामें महिलाओं को स्वयं को क्या करना चाहिए.....यही मुद्दे चर्चा का विषय बने हुए है!
...अभी अभी मैंने एक महिला लेखिका द्वारा लिखा हुआ लेख पढ़ा!...पूरे लेख में पुरुषों की जितनी बुराइयां हो सकती है, वह की गई है!...पत्नियों पर पति कितने अत्याचार करतें है, मानसिक और शारीरिक कितनी प्रताडना करतें है..यह सब विस्तार पूर्वक अच्छे ढंग से दर्शाया गया है...अगर इस लेख को ..सिर्फ एक लेख के ही नजरिए से पढ़ा जाए तो इसे बेहतरीन. उम्दा, उत्तम प्रस्तुति करण ...इत्यादि शब्दों से नवाजा जाना चाहिए!...लेकिन यथार्थ के नाम पर यह बहुत ही कमजोर है!...यह लेख पढ़ कर लगता है कि पुरुषों का मुख्य काम सिर्फ स्त्रियों को अपमानित करना, दबा कर रखना, उनकी अवहेलना करना और उन से मुफ्त में घर के काम करवाना ही है!..
...क्या हमारे समाज का पुरुष वर्ग ऐसा ही है?...पिता, भाई, पति..सभी स्वार्थी है और स्त्रियों को सिर्फ भोग्या समझ कर उनके साथ व्यवहार करतें है?...उनके दिल में लाड, प्यार, मोहोब्बत जैसी नाजुक भावनाओं का अंश मात्र नहीं है?...हां!...आए दिन स्त्रियों पर होने वाले बलात्कार की ख़बरें दिल दहला देने वाली होती है...निर्भया के साथ दुराचार करके उसके प्राण हरण करने वाले नर-पिशाचों को फांसी की सजा मिलनी ही चाहिए...यह भी घिनौना सच है!...लेकिन ऐसे कुकर्म करने वाले व्यक्ति क्या पुरुष कहलवाने के लायक होते है?....उन्हें तो जानवर या नर-पिशाच कह कर ही संबोधित करना चाहिए!...वे अपराधी होते है...सजाके लायक होते है!...पुरुषोचित गुण उनके अंदर कहाँ मौजूद होते है?...उनको ले कर समस्त पुरुष जाति पर लांछन लगाना ठीक नहीं है!
...पति-पत्नी में झगड़े और मन-मुटाव होते रहते है....सामंजस्य भी स्थापित हो जाता है!...पहले कुछ दशकों के मुकाबले अब परिस्थिति में बदलाव आ चुका है!..स्त्री शिक्षा को समाज की तरफ से और सरकार की तरफ से अधिक महत्व दिया जा रहा है!...स्त्रियों के लिए विविध कार्यक्षेत्र भी खुले हुए है!....एक सुरक्षा के मामले को ले कर समाज और सरकार बराबर चिंतित है...इस समस्या का हल भी जल्दी ही ढूंढा जाएगा ऐसी उम्मीद करना कोई ज्यादती नहीं है!
..ज़रा गौर करें!...बहाद्दूरी,हिम्मत, धैर्य, उदारता, मन की स्थिरता, मन की कठोरता ..ये सभी गुण एक अच्छे पुरुष में मौजूद होते है..क्या इन गुणों का अनुकरण करने की शिक्षा स्त्रियों को नहीं दी जानी चाहिए?
अपना ही उदाहरण पेश करती हूँ!....एक समय मेरे जीवन में ऐसा आया था...मैं अवसाद से घिर गई थी...एक राजकीय पार्टी की कन्वीनर के तौर पर नियुक्त थी...उस समय स्व.चिमनभाई पटेल( बाद में गुजरात के मुख्य मंत्री निर्वाचित हुए थे!) से मिलना होता रहता था!...उन्होंने मुझे एक दिन सलाह दी कि" अरुणा,तुम अपने आप को स्त्री मत समझो!..पुरुष समझो!...तुमारी समस्या का यही निदान है!"...मैंने उनकी सलाह सिर आँखों पर उठा ली ...और अपनी मानसिकता को बदल डाला...मेरे अंदर एक नई जागृति आ गई!...तब मुझे लगा कि जिसे बहुत बड़ी समस्या मानकर मैं हैरान-परेशान थी, असल में मेरी कोई समस्या थी ही नहीं!
....महिला दिवस पर मैं यही कहना चाहूंगी कि अपराधी वर्ग को ले कर,पुरुषों को बुरा चित्रित करना गलत है...स्त्री भी पुरुषोचित गुणों का अपने अंदर विकास करके बहुत सी समस्याओं से समाधान पा सकती है!
...आज महिला दिवस पर महिलाएं और पुरुष सभी अपने विचार व्यक्त कर रहे है!...महिलाओं की प्रगति कैसे हो, महिलाओं को समाज में सम्माननीय स्थान कैसे प्राप्त हो, महिलाओं की सुरक्षा के लिए सरकार कौनसे कदम उठाएं और इस दिशामें महिलाओं को स्वयं को क्या करना चाहिए.....यही मुद्दे चर्चा का विषय बने हुए है!
...अभी अभी मैंने एक महिला लेखिका द्वारा लिखा हुआ लेख पढ़ा!...पूरे लेख में पुरुषों की जितनी बुराइयां हो सकती है, वह की गई है!...पत्नियों पर पति कितने अत्याचार करतें है, मानसिक और शारीरिक कितनी प्रताडना करतें है..यह सब विस्तार पूर्वक अच्छे ढंग से दर्शाया गया है...अगर इस लेख को ..सिर्फ एक लेख के ही नजरिए से पढ़ा जाए तो इसे बेहतरीन. उम्दा, उत्तम प्रस्तुति करण ...इत्यादि शब्दों से नवाजा जाना चाहिए!...लेकिन यथार्थ के नाम पर यह बहुत ही कमजोर है!...यह लेख पढ़ कर लगता है कि पुरुषों का मुख्य काम सिर्फ स्त्रियों को अपमानित करना, दबा कर रखना, उनकी अवहेलना करना और उन से मुफ्त में घर के काम करवाना ही है!..
...क्या हमारे समाज का पुरुष वर्ग ऐसा ही है?...पिता, भाई, पति..सभी स्वार्थी है और स्त्रियों को सिर्फ भोग्या समझ कर उनके साथ व्यवहार करतें है?...उनके दिल में लाड, प्यार, मोहोब्बत जैसी नाजुक भावनाओं का अंश मात्र नहीं है?...हां!...आए दिन स्त्रियों पर होने वाले बलात्कार की ख़बरें दिल दहला देने वाली होती है...निर्भया के साथ दुराचार करके उसके प्राण हरण करने वाले नर-पिशाचों को फांसी की सजा मिलनी ही चाहिए...यह भी घिनौना सच है!...लेकिन ऐसे कुकर्म करने वाले व्यक्ति क्या पुरुष कहलवाने के लायक होते है?....उन्हें तो जानवर या नर-पिशाच कह कर ही संबोधित करना चाहिए!...वे अपराधी होते है...सजाके लायक होते है!...पुरुषोचित गुण उनके अंदर कहाँ मौजूद होते है?...उनको ले कर समस्त पुरुष जाति पर लांछन लगाना ठीक नहीं है!
...पति-पत्नी में झगड़े और मन-मुटाव होते रहते है....सामंजस्य भी स्थापित हो जाता है!...पहले कुछ दशकों के मुकाबले अब परिस्थिति में बदलाव आ चुका है!..स्त्री शिक्षा को समाज की तरफ से और सरकार की तरफ से अधिक महत्व दिया जा रहा है!...स्त्रियों के लिए विविध कार्यक्षेत्र भी खुले हुए है!....एक सुरक्षा के मामले को ले कर समाज और सरकार बराबर चिंतित है...इस समस्या का हल भी जल्दी ही ढूंढा जाएगा ऐसी उम्मीद करना कोई ज्यादती नहीं है!
..ज़रा गौर करें!...बहाद्दूरी,हिम्मत, धैर्य, उदारता, मन की स्थिरता, मन की कठोरता ..ये सभी गुण एक अच्छे पुरुष में मौजूद होते है..क्या इन गुणों का अनुकरण करने की शिक्षा स्त्रियों को नहीं दी जानी चाहिए?
अपना ही उदाहरण पेश करती हूँ!....एक समय मेरे जीवन में ऐसा आया था...मैं अवसाद से घिर गई थी...एक राजकीय पार्टी की कन्वीनर के तौर पर नियुक्त थी...उस समय स्व.चिमनभाई पटेल( बाद में गुजरात के मुख्य मंत्री निर्वाचित हुए थे!) से मिलना होता रहता था!...उन्होंने मुझे एक दिन सलाह दी कि" अरुणा,तुम अपने आप को स्त्री मत समझो!..पुरुष समझो!...तुमारी समस्या का यही निदान है!"...मैंने उनकी सलाह सिर आँखों पर उठा ली ...और अपनी मानसिकता को बदल डाला...मेरे अंदर एक नई जागृति आ गई!...तब मुझे लगा कि जिसे बहुत बड़ी समस्या मानकर मैं हैरान-परेशान थी, असल में मेरी कोई समस्या थी ही नहीं!
....महिला दिवस पर मैं यही कहना चाहूंगी कि अपराधी वर्ग को ले कर,पुरुषों को बुरा चित्रित करना गलत है...स्त्री भी पुरुषोचित गुणों का अपने अंदर विकास करके बहुत सी समस्याओं से समाधान पा सकती है!
10 comments:
isi nazariye ko badalna hai ... ek hi patra mein sabko nahi rakh sakte
...धन्यवाद रश्मि प्रभा जी!सही कहा आपने!...नजरियाँ बदलने की जरुरत है, तभी महिलाओं की समस्याओं में कमी आ सकती है!
सही नजरिया । अच्छे बुरे पुरुष होते हैं वैसे ही अच्छी बुरी महिलाएं भी होती हैं । महिलाओं को अपने अंदर वह स्वाभिमान वह दृढता लानी होगी ।
..धन्यवाद आशा जी!..कि आप को यह आलेख पसंद आया!..सही कहा आपने महिलाओं को अपने मानसिकता में परिवर्तन लाने की जरुरत है..अन्यथा उनकी सहायता के लिए कितने भी क़ानून बनाएं जाए...उनका लाभ वे नहीं उठा पाएंगी!
बहुत उम्दा प्रस्तुति...बहुत बहुत बधाई...
@मेरी बेटी शाम्भवी का कविता-पाठ
कोई नई किताब लिख रहीं हैं क्या, बहुत दिनों से ब्लॉग पर कुछ लिखा नही।
कोई नई किताब लिख रहीं हैं क्या, बहुत दिनों से ब्लॉग पर कुछ लिखा नही।
aap ne theek kaha hai.
kbhi mere blog 1- "Unwarat.com" par bhi aaiye.
2-kahaniya Unwarat.com(bchcho kaa konaa.)padhne ke bad apne vichaar avshy vyakta kre
Vinnie
Excellent post! This article is very good and useful. I am very interested in your blog.
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I am very thankful to you for providing such a great information. It is simple but very accurate information.
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