Wednesday 12 December 2007

हम ज्वैलरी खरीदने बाज़ार गये....


हमारी शादी का तो कोई अता-पता अब तक नहीं था....लेकिन कहींसे हमारी कमाई तो हो ही गई.किसी को मत बता इए कि हम आजकल ब्लोग लिख रहे है और इससए हमें मोटी कमाई भी हो रही है.

...तो हम कह रहे थे कि हम ज्वैलरी खरीदने बाज़ार चले गए.आहाहा! बाज़ार की जो रौनक थी हम क्या बताएं! यह दिल्ली के करोलबाग की मार्किट थी.हाय तौबा! इतनी भीड़ थी कि हमे लगा कि हम सही जगह पर आ गए.हम भीडक्का शुरु से ही पसंद करते आए है.


एक शॉप में हम दखिल हुए.हमारे कंधे पर मोटासा अमरिकी पर्स लटक रहा था;जो हमारी सहेली डेकोरिना ने अमेरिका से खास हमारे लिए ही भेजा था.शादी का तौफा कह कर भेजा था...पर यहां शादी का कोई दूर दूर तक भी होने का अंदेशा नहीं था.

हम अब डायमंड सेट देखने लग गए...किमत सुनते ही हमें छींकें आनी शुरु हो गई.तो हम अब सोने के सेट देखने दूसरे का उंटर पर चले गए.यहां भी कोई बात बनी नहीं और हम आखिर में एक रींग-अंगुठी खरीद कर ज्वैलरी शॉप से बाहर आ गए.


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